तेरापंथ महिला मंडल का नारी सशक्तीकरण पर सेमिनार
उदयपुर। भगवान ने दुनिया में दो तरह महिला और पुरुष की जात ही बनाई है। बच्चे का सशक्तीकरण तो गर्भावस्था में ही हो जाता है। नारी का अर्थ ही मानव हितों का लालन पालन करने वाली मां, पत्नी है। महिला और पुरुष दोनों एक ही गाड़ी के दो पहिये हैं। अपने सशक्तीकरण में नारी स्वयं बाधा है। इसकी शुरूआत खुद से करनी चाहिए। अपनी मानसिक शक्ति को पहचानें।
ये विचार सुविवि की पूर्व प्रोफेसर मनोविज्ञान विशेषज्ञ प्रो. विजयलक्ष्मी चौहान ने व्यक्त किए। वे मंगलवार को तेरापंथ महिला मंडल की ओर से तेरापंथ भवन में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में नारी सशक्तीकरण कार्यशाला पर आयोजित समारोह को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रही थीं। इस अवसर पर जैन समाज के करीब 50 संगठनों की अध्यक्षाओं को उपरणा ओढ़ाकर सम्मान भी किया गया।
उन्होंने कहा कि महिलाएं संवेदनशील, भावनात्मक विषयों को पहचानें। स्वस्थ शरीर में स्वस्थ ह्दय होता है। जिस तरह की हमारी सोच होगी, वैसा ही रक्त संचार होता है। संयुक्त परिवारों में बच्चे संस्कारवान होते थे जिसकी आज कहीं न कहीं कमी महसूस होती है।
विशिष्ट अतिथि एडवोकेट प्रमोदिनी बक्षी ने कहा कि नारी का विस्तृत रूप मां, बहन, सास, ननद, है जो कितने ही रूपों में जीती है। मां ही बच्चे की प्रथम पाठशाला है। अगर बच्चों को छूट देते हैं तो उनका ध्यान रखना भी महिलाओं का कर्तव्य है। बाल विवाह रोकने में महिलाओं की अहम भूमिका हो सकती है। महिलाएं अगर सोच लें तो बाल विवाह नहीं हो सकते।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए तेरापंथी सभाध्यक्ष राजकुमार फत्तावत ने कहा कि जैन समाज की महिलाएं आगे आई हैं। पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलती हैं। किस तरह परिवार को स्वर्ग बनाएं, कैसे बच्चों को संस्कारित करें, उनकी तरफ ध्यान देना महिलाओं का कर्तव्य है। यदि कर्मजा शक्ति मजबूत होगी, आपस में सहयोग करेंगी तो कोई कारण नहीं कि महिलाएं पीछे रहें। उन्होने कहा कि महिलाएं संकल्प कर लें कि अगर किसी की अच्छाई न कर सकें तो न करें लेकिन किसी की बुराई नहीं करेंगी। अगर पत्थर को भगवान मान सकते हैं तो घर बैठे माता-पिता, सास-ससुर रूपी भगवान मानने में कोई हर्ज नहीं होना चाहिए।
शासन श्री साध्वी धनश्रीजी ने कहा कि सद्गुणों को अपनाकर नारी समाज की उन्नति कर सकती है। सहनशीलता की धनी होती है। महिलाओं ने अनेक स्तम्भ खड़े किए हैं। महिलाएं पुरुषों से आगे निकल गई हैं। चारदीवारी में रहने वाली महिलाओं को आचार्य तुलसी ने आडम्बर, कुरीतियों से मुक्त कराया। सफलता का रहस्य समर्पण, सरलता, प्रसन्नता, सकारात्मक सोच, संघनिष्ठा और श्रम निष्ठा है। अशिक्षित स्थानों में भ्रूण हत्या को रोकने का नारी समाज को प्रयास करना चाहिए।
इससे पूर्व स्वागत उद्बोधन में महिला मंडल अध्यक्ष चंदा बोहरा ने विषय प्रवेश करते हुए कहा कि नारी अपने नैसर्गिक गुणों को न भूले। अन्याय, असमानता के विरुद्ध संघर्ष जारी रहे।
तेरापंथ युवक परिषद अध्यक्ष दीपक सिंघवी ने कहा कि तेरापंथी सभा की दो बाजुओं के रूप् में तेरापंथ महिला मंडल और युवक परिषद कार्य कर रहे हैं। महिलाएं देश के विकास में भी योगदान कर रही हैं। अपना परिवार छोड़, नए परिवार को संभालना किसी महिला के ही वश की बात है।
कार्यक्रम का कुशल संचालन करते हुए महिला मंडल सचिव लक्ष्मी कोठारी ने बताया कि समारोह में जैन समाज के करीब 50 महिला संगठनों की अध्यक्षाओं को सम्मान किया गया। कार्यक्रम में संरक्षिका पुष्पा कर्णावट, शशि चव्हाण ने भी विचार व्यक्त किए। अतिथियों का मेवाड़ी पगड़ी, माल्यार्पण, स्मृति चिन्ह भेंटकर सम्मान किया गया। आरंभ में मंगलाचरण शशि चव्हाण, सरिता कोठारी ने किया। सोनल सिंघवी एवं मीनल ने गीतिका जग जाएगा यह देश प्रस्तुत की।