तेरापंथ महिला मंडल का दंपती शिविर
शिविरार्थियों ने झूठा नहीं छोड़ने का किया संकल्प
उदयपुर। साध्वी कीर्तिलता ठाणा 4 ने कहा कि प्यार के पुजारी बनें, वासना के नहीं। गाड़ी हमेशा दो पहियों से ही चलती है एक पहिये से नहीं। दांपत्य जीवन का एक भी पहिया डगमगाएगा तो जीवन सुखमय कभी नहीं रह पाएगा। एक गर्म प्रकृति का हो तो दूसरे को स्वतः नर्म रूख अपना लेना चाहिए, यही सुखी जीवन का रहस्य है।
वे अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल के निर्देशन में विश्व पर्यावरण दिवस पर तेरापंथ महिला मंडल के तत्वावधान में रविवार को विज्ञान समिति में दंपती शिविर: हाथ मिलाएं साथ बढ़ाएं विषयक आयोजित शिविर को संबोधित कर रही थीं। उदयपुर नगर सीमा में चातुर्मास प्रवेश पूर्व यह उनका पहला कार्यक्रम था। मुख्य अतिथि दीक्षा भार्गव थीं। शिविरार्थी दंपत्तियों ने खाने के बाद झूठा नहीं छोड़ने का संकल्प व्यक्त किया। कार्यक्रम में महावीर मुनि के मुख्य मुनि और साध्वी प्रबुद्धयशा के साध्वीवर्या नियुक्त किये जाने पर ओम अर्हम की ध्वनि से सभागार गंूज उठा।
साध्वी कीर्तिलता ने कहा कि हमेशा इन बातों का ध्यान रखें। खुशी में कोई वादा नहीं करें, क्रोध में किसी को कोई जवाब न दें। आवेश में कुछ पता नहीं चलता। जमाने के साथ बदलाव आए हैं। व्यक्ति पहले पैदल चलता था और अब प्लेन में जाता है। धर्म में भी बदलाव आया है। पहले राजस्थान में था अब विदेशों की धरती पर पहचाना जाने लगा है। जल्दबाजी में कोई निर्णय न करें। जब विश्वास और वचन टूटते हैं तो कोई आवाज नहीं होती लेकिन उसकी भरपाई भी नहीं हो सकती।
मुख्य अतिथि दीक्षा भार्गव ने कहा कि शादी निभाना ही नहीं बल्कि सुखपूर्वक निभाना हमारा मकसद है। पर्यावरण सिर्फ पेड़-पौधे ही नहीं बल्कि घर, समाज, शहर का वातावरण भी पर्यावरण ही है। घर का पर्यावरण सर्वाधिक जरूरी है। हम जो चाहते हैं, शत प्रतिशत नहीं मिल सकता। यह बात हमें गांठ बांधनी होगी। मैं जो कहूं, वो ही सब मानें, यह भी संभव नहीं। बचपन में मां के हाथ का खाना और अब पत्नी के हाथ के खाने में कम्पेरिजन न करें। हमारे शरीर का नर्व सिस्टम भी उस समय पहचान नहीं पाता था लेकिन अब अच्छी तरह पहचान जाता है। उस समय सिर्फ मां ही खाना देती थी। पत्नी का अनादर यानी मां-बहन सभी का अनादर होता है। सोच में बदलाव लाना जरूरी है।
साध्वी पूनम प्रभा ने सहिष्णुता की अनुप्रेक्षा के प्रयोग करवाए। साध्वी श्रेष्ठप्रभा ने परिवार को सुखी बनाने के लिए दंपती को एक-दूसरे के प्रति त्याग करना होगा। बिना कारण कोई काम नहीं होता। उन्होंने विवाह की रीतियों फेरे, हथलेवा आदि का उल्लेख करते हुए उनकी प्रामाणिकता सिद्ध की। शादी में मंत्रों का बड़ा महत्व होता है। आज तो पंडितजी को कहते हैं, जल्दी जल्दी करो। जल्दबाजी में मंत्रों का उच्चारण इधर-उधर हुआ नहीं कि मंत्रों का प्रभाव कुप्रभाव में बदल जाता है। इसे समझने की जरूरत है। शिविर का सफल संचालन साध्वी शांतिलता ने किया।
सभाध्यक्ष राजकुमार फत्तावत ने कहा कि सुखी दांपत्य जीवन स्वस्थ शरीर की आधारशिला है। दांपत्य सुखी एवं स्वस्थ रहना चाहिए। दोनों अपने इगो का त्याग करें तो विवाद ही नहीं हों। संकल्प करें कि अपने क्रिया कलापों से र्प्यावरण को प्रदूषित नहीं करेंगे। तेरापंथ समाज के दंपती अन्य के लिए आदर्श बन सकें, ऐसा कार्य करेंगे।
तेरापंथ महिला मंडल अध्यक्ष चन्दा बोहरा ने स्वागत उद्बोधन में कहा कि समाज श्रेष्ठ हो, इसके लिए दांपत्य जीवन श्रेष्ठ होना जरूरी है। आज के दिन कोई न कोई संकल्प अवश्य करें। अहिंसा यानी पर्यावरण और हिंसा यानी प्रदूषण है। कार्यक्रम का आरंभ मंगलाचरण से हुआ। आभार महिला मंडल की मंत्री लक्ष्मी कोठारी ने व्यक्त किया। कार्यक्रम में विज्ञान समिति के केएल कोठारी, तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष दीपक सिंघवी भी मौजूद थे।