उदयपुर। श्रीमद् दयानन्द सत्यार्थ प्रकाश न्यास के संस्थापक तत्कालीन अध्यक्ष स्वामी तत्त्वबोध सरस्वती की पुण्यतिथि पर आर्य सम्पादक सम्मेलन प्रारम्भ हुआ। इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्यी पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से वैदिक शिक्षाओं को घर-घर पहुंचाने पर चर्चा करना था।
सम्मेलन में देश भर से आर्य पत्र-पत्रिकाओं के सम्पादक, आर्य जगत् के मूर्धन्य विद्वान् एवं संन्यासी सम्मिलित हुए। आरम्भ सुबह 8.30 बजे यज्ञ से हुआ। उद्घाटन सत्र न्यास के अध्यक्ष महाशय धर्मपाल की अध्यक्षता में प्रारम्भ हुआ जिसमें मुख्य अतिथि सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा दिल्ली के प्रधान एवं न्यासी सुरेश चन्द्र आर्य थे। विशिष्ट अतिथि डीएवी प्रकाशन विभाग के प्रभारी एसके शर्मा, वैदिक विद्वान् डॉ. ज्वलन्त शास्त्री, सम्पादक वैदिक पथ, विनय आर्य, सम्पादक आर्य संदेश एवं देश के सम्पादक उपस्थित थे।
न्यास के कार्यकारी अध्यक्ष अशोक आर्य ने महर्षि दयानन्द सरस्वती की कर्मस्थली नवलखा महल में संचालित की जा रही एवं होने वाले प्रकल्पों की विस्तार से जानकारी दी। दिल्ली से आए विनय आर्य ने बताया कि हम सम्पादकों को पत्र-पत्रिका के प्रकाशन का उद्देश्यप अवश्यय ध्यान रखना चाहिए, इसके लिए उन्होंने कुछ सूत्र प्रस्तुत किए।
मूर्धन्य विद्वान् डॉ. ज्वलन्त कुमार शास्त्री ने कहा कि पत्र-पत्रिकाएं विचार पत्र हैं। इसमें सम्पादकों को ऐसे लेखों एवं विषय वस्तुओं का समावेश करना चाहिए जो ज्ञानवर्द्धक एवं प्रेरणादायक हो।
जोधपुर से आए दुर्गादास वैदिक, सम्पादक, महर्षि दयानन्द स्मृ ति प्रकाश ने कहा कि पत्र पत्रिकाओं के माध्यम से ऋषि की बात को घर-घर पहुंचाया जाता है, अतः वैदिक शोध को प्राथमिकता देनी चाहिए। एसके शर्मा ने मृत्युंजय मंत्र से स्वामी तत्त्वबोध सरस्वती को श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने पूनम सूरी के संदेश को ‘सत्य को प्रकट करना धर्म है पर वह कल्याणकारी हो से आरंभ करते हुए कहा कि हमारी पहचान एक इकाई के रूप में हो, इसमें पत्र-पत्रिकाओं का सहयोग अति आवश्य क है।
मुख्य अतिथि सुरेश चन्द्र अग्रवाल ने कहा कि हम सुनी हुई बातों को कुछ समय पश्चाइत भूल जाते हैं मगर पत्र-पत्रिकाएं ऐसा साधन है जिसके माध्यम से हम उनका लम्बे समय तक स्मरण रख सकते हैं। पत्रिकाओं के माध्यम से हम वेद की शिक्षाओं को आज की युवा पीढ़ी को कैसे आकर्षित कर उनको लाभान्वित कर सकते हैं, यह महत्वपूर्ण है। सम्मेलन में विद्वद्जनों एवं सम्पादकों ने एक स्वर में स्वीकार किया कि श्रीमद दयानन्द सत्यार्थ प्रकाश न्यास के कार्यकारी अध्यक्ष श्री अशोक आर्य द्वारा आर्य जगत में प्रथम बार इस अद्भुत और नई सोच को आर्य जगत के सम्मुख प्रस्तुत कर सबका एक मंच पर लाकर गहन विचार विमर्श का अवसर प्रदान किया है।