उदयपुर। विश्व में पाये जाने वाले तीन लाख प्रकार के पुष्पीय पेड़ पौधों एवं डेढ़ लाख प्रकार के कीट पतंगों के बीच परस्पर अन्तर-निर्भरता के आलोक में पौधरोपण में अधिकतम सम्भव विविधता एवं पौधें के पारम्परिक सम्मिश्रण में संतुलन परम आवश्यक है।
यह बातें पेसिफिक विश्वविद्यालय में वानस्पतिक संपदा, पर्यावरण सन्तुलन एवं पौधारोपण विषय पर आयोजित संगोष्ठी में विचार मंथन से उभरकर आई। संगोष्ठी में उदयपुर, भीलवाड़ा, अजमेर, जोधपुर एवं अन्य अनेक स्थानों से पधारे पर्यावरणविदों एवं विषय विशेषज्ञों ने भाग लिया।
वृक्षारोपण इस प्रकार से किया जाना चाहिए कि सभी प्रकार के पक्षियों को ऋतु चक्र में प्रतिदिन आहार प्राप्त हो सके तथा सभी प्रकार के कीट पतंगों, तितलियों, मधुमक्खियों आदि को वर्ष भर पराग मिल सके। वृक्षारोपण करते समय नीम, अमलतास, अशोक, गुलमोहर, कचनार, आदि कुछ ही प्रकार के पौधों को स्थान देने से पारिस्थिकीय तंत्र में गम्भीर असंतुलन उत्पन्न हो रहा है। अनेक पौधे मिट्टी कि जलग्रहण क्षमता को बढ़ाते हैं अथवा जैविक कीट नियन्त्रण में सहयोगी कीट पतंगों को आश्रय प्रदान करते है, इसलिए पौधारोपण में ऐसी वनस्पतियों को दृष्टिगत रखा जाना चाहिये। दो ढाई फीट की झाड़ियों में घोसलें बनाने वाली ग्राउन्ड नैस्टिंग बर्डस से लेकर भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने वाले सूक्ष्मजीवियों के आवास पर्यंत सभी प्रकार की वनस्पतियों का समावेश पौधा रोपण में किया जाना अति आवश्यक है।
पहले तकनीकी सत्र के अध्यक्ष जोधपुर से पधारे प्रख्यात विशेषज्ञ डा. एनएस शेखावत ने अत्यन्त सारगर्भित प्रजेन्टेशन में बताया कि किस प्रकार हमारी प्रकृति वैदिक काल से ही जैव-समृद्ध रही है। परन्तु प्राकृतिक संसाधनों के असंतुलित दोहन से अनेक प्रकार के पेड़-पौधे, औषधीय जड़ी-बूटियाँ विलुप्त होती जा रही हैं। उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि वैदिक काल में चावल की चार लाख किस्में होती थीं जबकि आज चावल की कुछ ही किस्में बची है। जल का सही प्रबन्धन नहीं होने से भारत दुनिया का सबसे प्यासा देश बन गया है। द्वितीय तकनीकी सत्र के अध्यक्ष राजस्थान कृषि महाविद्यालय के डा. आर.एस. दुबे ने अनेक औषधीय पौधों एवं उनके लाभों के बारे में बताया। तृतीय तकनीकी सत्र की अध्यक्षता मदन मोहन मालवीय आयुर्वेदिक महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. जी.एस. इन्दोरिया तथा समन्वयन प्रो. अनिल कोठारी ने किया।
संगोष्ठी के प्रारम्भ में उद्घाटन सत्र में पेसिफिक विश्वविद्यालय के अध्यक्ष डा. भगवती प्रकाश शर्मा ने पर्यावरण संतुलन को बनाए रखने के लिए विविध प्रकार के वृक्ष लगाने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने ध्यान दिलाया कि हमारे आस-पास हर प्रकार की वनस्पतिक संपदा का होना जरूरी है जिसमें पक्षियों, कीट-पतंगों आदि सभी को प्रश्रय और आहार मिल सके। उन्होंने बताया कि प्राकृतिक सन्तुलन में इन कीट-पंतगों, पक्षियों आदि का भी महत्वपूर्ण योगदान है।
मुख्य अतिथि महाराणा प्रताप कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डा. उमाशंकर शर्मा ने ऐसे सामयिक विषय पर संगोष्ठी आयोजित करने पर आयोजक पेसिफिक विश्वविद्यालय को बधाई दी। उन्होंने कहा कि यह प्रसन्नता का विषय है कि आज की स्मार्टफोन, लैपटॉप पीढ़ी भी पर्यावरण के संरक्षण के प्रति सजग होती जा रही है। समापन समारोह के मुख्यवक्ता हनुमान सिंह राठौड़ ने कहा कि हमारी संस्कृति में प्रकृति के सभी अवयवों-पेड़-पौधों, जल, वायु, पानी आदि सभी के प्रति पूज्यभाव रहा है। इसीलिए जीवन यापन, पूजन विधि आदि में अनेक रीतियाँ भी इसी प्रकार की रही हैं, जिनमें स्वतः इनका संरक्षण होता रहा। जैसे-जैसे हमारे मन में इनके प्रति पूज्य भाव कम हो रहा है, इनका क्षरण होता जा रहा है।
सेमीनार डायरेक्टर प्रो. महिमा बिड़ला ने बताया कि इस एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन पेसिफिक विश्वविद्यालय, अमृता देवी पर्यावरण नागरिक संस्थान, जयपुर एवं हिन्दू अध्यात्म सेवा संगम द्वारा संयुक्त रूप से किया गया। संगोष्ठी संयोजक डा. देवेन्द्र श्रीमाली ने जानकारी दी कि संगोष्ठी के दौरान तीन तकनीकी सत्रों में 28 शोध-पत्रों का वाचन हुआ। संगोष्ठी में राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों से पधारे 120 डेलेगेट्स ने भाग लिया।