श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा के पर्यूषण का दूसरा दिन स्वाध्याय दिवस
उदयपुर। साध्वी कीर्तिलता ठाणा-4 ने तीन प्रकार के वृक्षों की चर्चा करते हुए तेरापंथ धर्मसंघ को आम की उपमा से उपमित किया। उन्होंने कहा कि जहां संघ होता है, वहां मर्यादाएं लक्ष्मण रेखा की भांति अनिवार्य हो जाती है। मनुष्य का मस्तिष्क एक अनमोल खजाना है। सौ शास्त्र मिलकर एक मस्तिष्क नहीं बना सकते लेकिन एक मस्तिष्क सौ शास्त्रों का निर्माण कर सकता है।
वे श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा के मंगलवार से आरंभ हुए पर्वाधिराज पर्यूषण के दूसरे दिन धर्मसभा को संबोधित कर रही थीं। उन्होंने कहा कि जिस जिस ने अपने दिमाग का सदुपयोग किया वह आइंस्टीन, भिक्षु, तुलसी बना है। जिस संघ में, जिस परिवार में मर्यादा नहीं वह परिवार न तो चल सकता है और न ही संघ चल सकता है। संघ की नीव को मजबूत करने के लिए मर्यादा व समर्पण की ध्वजा चाहिए। साध्वी श्रीजी ने मुनि अमोलकचंद स्वामी की रोमांचकारी घटना का उल्लेख करते हुए शील की महिमा बताई।
भगवान महावीर के 27 भवों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि नयसार का जीव देवलोक से च्यवन कर पृथ्वी, पानी व वनस्पति में उत्पन्न होते हैं और जो जीव अपने पुण्य को बचाकर रखते हैं वे मनुष्य योनि में जाते हैं। साध्वी श्रेष्ठप्रभा ने स्वाध्याय दिवस पर कहा कि स्वाध्याय आत्म दीपक है, अंतर ज्योति को प्रकट करने का। स्वाध्याय मस्तिष्क का रसायन है। इससे मस्तिष्क को पोषण मिलता है। स्वाध्याय मन के विकारों को मिटाता है। कार्यक्रम का शुभारंभ युवक परिषद के उत्साही युवकों से हुआ। रात्रिकालीन प्रतियोगिताओं में वाद-विवाद स्पर्धा का आयोजन हुआ। इसका विषय सोशल मीडिया था।
दोनों समय प्रतिक्रमण करना आवश्यक: मनीषप्रभसागर
वासुपूज्य मंदिर : श्री जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ के वासुपूज्य मंदिर में पर्वाधिराज पर्यूषण के तहत बुधवार को मुनि मनीषप्रभ सागर ने कहा कि पहले साधु फटे-पुराने वस्त्र धारण करते थे। श्रावकों व साधुओं के लिए भगवान महावीर एवं भगवान आदिनाथ ने निर्देश दिए कि वे सिर्फ धवल वस्त्र ही धारण करें। उन्होंने कहा कि प्रत्येक जैन श्रावक को दोनों समय प्रतिक्रमण करना चाहिए। उन्होंने कहा कि पूर्व में पंचमी तक ही पर्यूषण होते थे लेकिन बाद में इसे बढ़ाया गया। कल्पसूत्र में लिखा है कि चातुर्मास के दौरान प्रतिक्रमण करना जरूरी है,और इसका उल्लंघन नहीं करना चाहिए। पूर्व में कल्पसूत्र का वाचन साधु आपस में करते थे लेकिन बाद में इसका वाचन श्रावकों के समक्ष किया जाने लगा ताकि इससे होने वाले लाभों के बारे में उन्हें भी पता चले। उन्होंने कहा कि साधु श्रावकों के घर में ही रूकते थे और सिर्फ तीन दिन ही उस घर का आहार ग्रहण कर सकते थे। उसके बाद उन्हें दूसरे घर का आहार लेना पड़ता था। मुनिश्री को कल्पसूत्र बोहराने का लाभ दलपतसिंह,गोवर्धनसिंह दोशी परिवार ने लिया। मुनिश्री ने 5 ज्ञान पूजा, अष्टप्रकारी पूजा करायी।
सेक्टर 11: हिरणमगरी जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ सेक्टर 11 के अध्यक्ष मोहनसिंह दलाल ने बताया कि बुधवार को दैनिक कर्तव्य व पौषध व्रत पर साध्वी संजय शीला श्रीजी के प्रवचन हुए। इसके अतिरिक्त कल्पसूत्र बोहराने एवं 5 ज्ञान पूजा के चढ़ावे, प्रभावना वितरित की गई।