तपस्वी भाई-बहनों का सम्मान
ध्यान दिवस के रूप में मना ध्यान दिवस
उदयपुर। पर्यूषण महापर्व का सातवां दिन ध्यान दिवस के रूप् में मनाया गया। आरंभ ज्ञानशाला की प्रशिक्षिकाओं के मंगल गीत से हुआ। साध्वी श्रेष्ठप्रभा ने सबको ध्यान कराया। साध्वी श्रीजी की प्रेरणा से अनेक भाई-बहनों ने आठों दिन विशेष तपस्या की। सभा की ओर से तपस्वियों का अभिनंदन किया गया। इनमें 8 विचित्र जोड़े पति-पत्नी, मां-बेटे, पिता-पुत्री, सास-बहू, श्वसुर-बहू, देवर-भाभी, नानी-दोहित्र इत्यादि थे। कुल 26 तपस्वियों का अभिनंदन किया गया। सभी तपस्वियों का अभिनंदन तपस्या से किया गया।
साध्वी श्री कीर्तिलता ने अपने प्रेरक प्रवचन में कहा कि पानी की एक बूंद यदि धरती पर गिरती है तो वह मिट्टी में मिल जाती है। केले के पत्ते पर गिरकर कपूर बन जाती है। सर्प के मुंह मंे गिरकर विष बन जाती है। सर्प के मस्तिष्क में गिरकर मणि का रूप ले लेती है। कमल की पंखुड़ी पर ओस बन जाती है। सीप के मुंह में समाकर मोती का रूप् धारण करती है। समंदर में मिलकर विराट सागर बन जाती है। देखना यह है कि हमारी पात्रता कैसी है? जो विराट सागर की ओर बढ़ गया वह स्वयं सागर बन गया।
साध्वी श्री ने विशेष प्रेरणा देते हुए कहा कि समय आ गया है अपनी शक्ति को प्रकट करने का। जिनके साथ हमारी अनबन है, उसके पास जाकर क्षमायाचना करें, खमतखामणा करें। साध्वी श्रीजी ने सभी तपस्वियों की अनुमोदना में स्वनिर्मित पद्यों व गीतों का संगान कर पूरे सभा भवन को गूंजित कर दिया। बारह व्रत का प्रभारी अभिषेक पोखरना ने 12 व्रतों की प्रेरणा दी और बताया कि 11 सितम्बर को विशेष कार्यशाला होगी। सभाध्यक्ष सूर्यप्रकाश मेहता ने सूचना दी।
रात्रिकालीन स्पर्धाएं : तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष राकेश नाहर ने बताया कि गत रात्रि आइये, बताइये और ले जाइये नामक बाजार स्पर्धा का आयोजन हुआ। इसमें तीन अलग अलग काउंटर रखे गए जिस पर इनाम रखे गए थे। इनामों पर ही प्रश्न लिखे गए थे। जिस श्रावक-श्राविका को जो इनाम चाहिए, उसे उठाया और उस पर लिखे प्रश्न का जवाब देकर वह इनाम प्राप्त किया। संचालन सचिव राजकुमार कच्छारा ने किया।