संघर्ष, लगन व सफलता की कहानी
उदयपुर। प्रकाश खारोल की कहानी एक मूक-बधिर विद्यार्थी के कड़े संघर्ष एवं सफलता की कहानी है। उदयपुर के अम्बामाता स्थित मूक-बधिर विद्यालय में दसवीं तक शिक्षा प्राप्त करने वाले प्रकाश का स्वप्न था कि वह इलेक्ट्रिकल इंजीनियर बने। वर्ष 2009 में जब प्रकाश ने प्राविधिक शिक्षा निदेशालय के तीन वर्षीय इंजीनियरिंग डिप्लोमा के लिए आवेदन किया तो उसे मना कर दिया गया।
उसे बताया गया कि निदेशालय के अधीन संस्थानों में मूक-बधिर विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए साधन व विशेषज्ञ प्राध्यापक नहीं है। अतः प्रवेश नहीं दिया जा सकता, प्रकाश उसके पिता बद्री लाल खारोल पारिवारिक मित्र वासुदेव चतुर्वेदी ने हार नहीं मानी। उन्होंने अगस्त 2009 में प्रधानमंत्री को अपील की, न्यायालय में वाद दायर किया, सामाजिक न्याय व अधिकारिता विभाग में ज्ञापन दिये। इस बीच वे उदयपुर के विद्या भवन पॉलीटेक्निक में भी पहुँचे, जहां प्राचार्य डा. अनिल मेहता ने कहा कि हम इसे प्रवेश देने को तैयार हैं। राज्य सरकार की तत्कालीन प्रशासनिक अधिकारी अदिति मेहता ने भी तकनीकी शिक्षा विभाग को कहा कि विद्यार्थी को प्रवेष दिया जाए। भारत सरकार ने राज्य के तत्कालिन तकनीकी शिक्षा सचिव को निर्देष दिया कि विद्यार्थी को प्रवेश दिया जाए।
प्रकाश के दो वर्ष के संघर्ष के बाद 25 जून 2011 को तकनीकी षिक्षा निदेशालय राजस्थान सरकार को निर्णय लेना पड़ा कि ऐसे विद्यार्थी को प्रवेश दिया जाये। न्यायालय निर्णय भी प्रकाश के पक्ष में रहा। राज्य सरकार ने प्रकाश को विद्या भवन पॉलीटेक्निक में प्रवेश जारी किया लेकिन विद्या भवन के पास भी मूक-बधिर विद्यार्थी को पढ़ाने के विशेषज्ञ व साधन नहीं थे। विद्या भवन ने अपने संकल्प के अनुरूप कि हर तरह के विद्यार्थी को पढ़ाया जा सकता है। विद्यार्थी को पढ़ाना व प्रशिक्षण देना प्रारंभ किया। पढ़ने के दौरान विद्यार्थी ने प्राविधिक शिक्षा मंडल से आग्रह किया कि मूक-बधिर होने के नाते उसे परीक्षा में अतिरिक्त समय दिया जाए। समाधान नहीं निकलने पर उसे वाद-दायर करना पड़ा तथा न्यायालय आयुक्त विशेष योग्यजन ने अगस्त 2014 में आदेश सुनाया कि विद्यार्थी को अतिरिक्त समय दिया जाए और अंतिम वर्ष में जाकर उसे यह सुविधा मिल गई, जिसका उसने लाभ नहीं उठाया। निर्धारित अवधि में ही पेपर पूर्ण किया।
प्रकाश की सफलता के पीछे उसकी लगन, विद्या भवन पॉलीटेक्निक के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग, उसके परिवार के अलावा एक युवा विजय बरगट का प्रमुख योगदान है। पड़ोस में रहने वाले, इंजीनियरिंग शिक्षा प्राप्त विजय ने भी संकल्प लिया कि वो प्रकाश को पढ़ने में सहयोग देगा, इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग पढ़ाएगा और उसने भी साथ में कड़ी मेहनत की और प्रकाश इलेक्ट्रिकल इंजीनियर बना। प्रकाश खारोल के नाम यह उपलब्धि बनी रहेगी कि उसने राजस्थान में तकनीकी षिक्षा में मूक-बधिर विद्यार्थियों का प्रवेश सुनिश्चित कराया। कोटा पॉलीटेक्निक के रूद्राक्ष शर्मा भी मूक-बधिर होकर इंजीनियर बन चुके हैं।
प्रकाश इलेक्ट्रिकल इंजीनियर के साथ-साथ ऑटोमोबाईल रिपेयरिंग, मोबाईल रिपेयरिंग का भी पूर्ण ज्ञान रखते हैं। राष्ट्रीय स्तर तक का क्रिकेट भी खेल चुके हैं। विद्या भवन पॉलीटेक्निक प्राचार्य डा. अनिल मेहता तथा शिक्षा सलाहकार कमल महेन्द्रु ने कहा कि समावेशी शिक्षा के उद्देश्या के अनुरूप विद्या भवन ऐसे विद्यार्थियों की मदद के लिए सदैव तत्पर रहेगा।