हिन्दी विश्व की दूसरी सबसे बड़ी भाषा : सारंगदेवोत
उदयपुर। हिन्दी दिवस बुधवार को शहर भर में हर्षोल्लास से मनाया गया। राजस्थान विद्यापीठ, बीएसएनएल ऑफिस सहित विविध स्थानों पर हिन्दी दिवस सम्बलन्धी आयोजन हुए जिसमें विद्वानों ने शिरकत की।
हिन्दी सम्पर्क की भाषा है और आज विश्व व्यापार को हिन्दी की आवश्यकता है इसी कारण दुनिया के कई देशों के लोग हिन्दी सीख रहे हैं। उन्होंने कहा कि हिन्दी वह है जो टाईधारी से लेकर धूल में काम करने वाले लोगों की बोली है। हिन्दी देश को संस्कारित करती है।
ये विचार जनार्दराय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय के संघटक साहित्य संस्थान की ओर से हिन्दी दिवस पर आयोजित समारोह को सम्बोधित करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार व मानद निदेशक एवं अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग परिषद् के संयोजक प्रो. नारायण कुमार ने मुख्य वक्ता के रूप में अभिव्यक्त किए। प्रो. कुमार ने विश्व के कई देशों मॉरीशस, फिजी, गुयाना, सूरीनाम, दक्षिणी अफ्रीका आदि में हिन्दी के लिए कार्य किया है तथा अनेक विश्व हिन्दी सम्मेलनों में भारत की भागीदारी की है। किसी भी राष्ट्र का गौरव उसकी राष्ट्रभाषा से जुड़ा हुआ है। राष्ट्र की एकता एवं अखण्डता के लिए राष्ट्रभाषा की महत्ती आवश्यकता है।
अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. एसएस सारंगदेवोत ने कहा कि रोजगार से पहले संस्कार आवश्यक है। निज भाषा होगी तभी उन्नति होगी। पिछली शताब्दिया फांसीसी, परशियन, अंग्रेजी, अरबी आदि की थी अगली शताब्दी हिन्दी की होगी। उन्होंने हिन्दी तुलना सत्यम शिवम् सुन्दरम् से की साथ ही चिंता जाहिर की कि दुनिया में 30 ऐसी भाषा हैं, जिन्हें बोलने वाला एक एक ही आदमी बचा है। जब तक हमारी मातृ भाषा के प्रति प्रेम एवं इसको बढ़ावा देने के लिए प्रयास नहीं करेंगे तब तक हिन्दी दिवस केा मनाने का कोई अर्थ ही नहीं रह जायेगा। उन्होने कहा कि हमारे देश में हर फासले के बाद वहां की बोलियां बदल जाती है वहा कि भाषा बदल जाती है। जब तक इनमें समानता नहीं आयेगी तब तक हिन्दी का विकास संभव नहीं हैं। हर प्रदेश की अपनी अपनी भाषा है और उसी भाषा के अंदर पुस्तकों का प्रकाशन होता है। अतिथियों का स्वागत निदेशक डॉ. जीवन सिंह खरकवाल ने किया। संचालन डॉ. कुलशेखर व्यास ने किया। धन्यवाद प्रो. मलय पानेरी ने दिया।
इनका सम्मान : डॉ. जीवनसिंह खरकवाल ने बताया कि समारोह में वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. नारायण कुमार, पुरूषोतम पल्लव, विष्णु प्रसाद भटृ का शॉल, उपरणा, पगड़ी, स्मृति चिंह एवं जनुभाई रचित शंकराचार्य की प्रति भेंट कर सम्मानित किया गया।