राजस्थान ओप्थलमोलोजिकल सोसायटी की तीन दिवसीय सेमिनार
उदयपुर। वरिष्ठ रेटिना विशेषज्ञ दिल्ली के डॉ. अजय अरोड़ा ने कहा कि जिन लोगों के चश्में के नम्बर माइनस में होते है उन्हें मायोपिया कहते है और उनकी आखों का रेटिना खराब होने की संभावना बढ़ जाती है। ऐसे में उन्हें समय-समय पर अपने रेटिना की जांच कराते रहना चाहिये। रेटिना के खराब होने में मधुमेह की मुख्य भूमिका पायी जाती है।
वे आज राजस्थान ओप्थलमोलोजिकल सोसायटी की ओर से यूसीसीआई के चेम्बर भवन में आयोजित 39 वीं राज्य स्तरीय तीन दिवसीय सेमिनार रोसकोन-2016 के तीसरे दिन एवं अंतिम दिन रेटिना पर बोल रहे थे। उन्होेंने कहा कि रेटिना आंख के पीछे का हिस्सा हो कर मस्तिष्क का एक भाग होता है। जिसके खराब होने पर बदला नहीं जा सकता है। यह कैमरे के फोटोग्राफी की फिल्म की तरह होता है। यदि रेटिना के खराब हो गया है तो मोतियाबिंद का ऑपरेशन कराने पर भी पूरी रोशनी नहीं आ पाती है।
उन्होंने बताया कि रेटिना की जांच के लिए विशेषज्ञ द्वारा विशेष मशीन के जरिये जांच करायी जा सकती है। मेट्रोसिटी में 40 वर्ष के बाद हर चौथे या पांचवें व्यक्ति को डायबिटीज है है जिसमें से 14.18 प्रतिशत लोगों का डायबिटीज के कारण रेटिना खराब हो जाता है जिसे रेटिनोपैथी कहा जाता है।
कैसे पता लगे रेटिना खराब हो रहा है-शुरूआत में पढ़ने में दिक्कत होती है और नजदीक की वस्तु कम दिखाई देती है। धीरे-धीरे आंख की पूरी रोशनी जा सकती है। जिसमें ऑपरेशन से ही ठीक किया जा सकता है। वर्तमान में दवाईयंा व ऑपरेशन की नई सुविधाएं उपलब्ध होने से इन बीमारियों का समाधान किया जा सकता है। आंखों के आगे मच्छर जैसे तथा दिन में तारें जैसा दिखाई दे तो तुरन्त रेटिना विशेषज्ञ से सम्पर्क किया जाना चाहिये।
डॉ. अरोड़ा ने बताया कि रेटिना वह बीमारी है जिस के कारण पर्दे में छेद हो जाता है और रेटिना अपनी जगह छोड़ देता है। जिसका उपचार एमआईवीएस नामक ऑपरेशन से ही संभव होता है। छेद का ईलाज अब लेज़र ऑपरेशन से भी किया जाने लगा है।
रेटिना खराब होने के कारण- रेटिन अमूमनतः डायबिटीज,रोड़ एक्सीडेंट एवं मायोपिया के कारण खराब होता हैै। एशिया में कोरिया एंव जापान में 6 से 11 प्रतिशत लोग मायोपिया के शिकार है और भारत में यह आंकड़ा अनुमानतः 4 से 6 प्रतिशत है।
एमआईवीएस सर्जरी को कोस्ट इफेक्टिव बनाने के लिए डिवाईस का किया ईजाद- डॉ. अजय अरोड़ा ने बताया कि रेटिना के एमआईवीएस के ऑपरेशन खर्च को कम करने के लिए एएनटी यानि अरोड़ा नीडल ट्रोकार नामक डिवाईस का अनुसंधान किया। इसके उपयोग से ऑपरेशन की लागत काफी हद तक कम हो गई एवं गुणवत्ता में काफी सुधार हुआ है। इस डिवाईस के अनुसंधान को लेकर गत वर्ष डॉ. अरोड़ा को मुबई में साउथ ईस्ट एशिया का इनोवेशन अवार्ड भी मिल चुका है। डॉ. अरोड़ा ने बताया कि यदि वश्विक स्तर पर इस डिवाईस का इस्तेमाल किया जाता है तो जनता के सालाना 9.1 बिलीयन रूप्यें बचायें जा सकते है।
आज अंतिम दिन एआरसी सिम्पोजियम केटरेक्ट विषय पर आयोजित के सेशन के चेयमेरन डॉ. डी. रामामूर्ति, ओप्थलमोलेाजिकल मीलान्ज सेशन के चेयरमेन डॉ. जे.पी.काबरा,रेटिना सेशन के चेयरमेन डॉ. आर.क.ेशर्मा तथा करन्ट सिनेरियो,ओक्यूलर ट्रोमा पर आयोजित सिम्पोजियम सेशन के चेयरमेन डॉ. पवन शोरे के नेतृत्व में विभ्ज्ञिनन चिकित्सकों ने 32 शोध पत्रों का वाचन किया।
आयोजन समिति के चेयरमेन डॉ. अनिल कोठारी ने बताया कि इस तीन सेमिनार में राज्य एवं देश के विभिन्न हिस्सों से आये करीब 475 विषय विशेषज्ञों एवं नेत्र चिकित्सकों ने भाग लेकर इस क्षेत्र में हो रहे नवीन अनुसंधानों पर गहनता से चर्चा की। आयोजन सचिव डॉ. एलएस झाला ने बताया इस सेमिनार में ग्रामीण क्षत्रों में कार्यरत चिकित्सकों ने भी भाग लेकर इससे लाभान्वित हुए। झाला ने सभी अतिथि चिकित्सकों एवं प्रतिभागी चिकित्सकों के प्रति आभार ज्ञापित किया।