ताकत उत्साह एवं उमंग की भूमि है राजस्थान
रामदेवरा। एक ओर बाबा रामदेव की मौजूदगी और दूसरी ओर नटराज हनुमान और परम गुरू से साक्षात्कार में धर्म चर्चा। रामदेवरा संत कृपा सनातन संस्थान की ओर से आयोजित रामकथा कार्यक्रम की आनंद त्रिवेणी में दूर दूर से आये भक्तगण रामकथा के आनंद में सरोबार है। वे लौकिक जीवन के सूक्ष्म, चमत्कारी शब्द-भावों से रूबरू हो रहे हैं वही व्यासपीठ की शरण में खुद को समर्पित कर आल्हादित है।
बापू के प्रति अनंत श्रद्धा भाव, हजारों अनुयायियों की उपस्थिति महाकुम्भ सा नजारा साकार करती है। क्या अमीर… क्या गरीब… क्या संत… क्या फकीर… हरेक यहां शिष्य भाव से हरिकथा को सुनकर स्वयं को धन्य महसूस कर रहे है। कुछ ऐंसा ही नजारा बन रहा है रामदेवरा में।
दूसरे दिन रविवार को व्यासपीठ से हजारों जनमेदिनी को संबोधित करते हुए बापू ने कहा कि भगवान की कथा से कुछ ना कुछ अवश्यर मिलता है। उन्होंने कहा कि हमें हर हाल में अन्तःकरण से राजी होना चाहिए। यदि हम किसी की चर्चा या निन्दा नहीं करेंगे तो जगत में हमें किसी साधना को करने की जरूरत ही नही पडेगी। बापू ने कहा कि रामदेव पीर की परम्परा के बारे में मेरी जिम्मेदारी से कुछ कहने का मेरा वर्शो का मनोरथ था और आज वह मनोरथ पूरा हुआ। सनातन धर्म कृष्णम, राम या रामदेव पीर के बारे में यह नहीं कहता कि यह हमारे है बल्कि ये संपूर्ण विश्व के है। बाबा रामदेव जी की परम्परा में बीज पंथ या बीज मार्ग, महाधर्म, निजिया एवं निजार शब्द का उल्लेख मिलता है।
वायु की तरह हनुमान सबके हैं : मुरारी बापू ने कहा कि हनुमानजी धीर, वीर और पीर भी है। सभी को अपने धर्म और इष्टव देवों में श्रद्धा रखनी चाहिए लेकिन यदि हनुमानजी का आश्रय करोगे तो इष्ट भक्ति को और बल मिलेगा। हनुमानजी चारों युग में विद्यमान हैं। सतयुग में शिव के रूप में, त्रेता युग में हनुमान, द्वापर में अर्जुन की ध्वजा में बैठकर और कलयुग में हनुमान जी रामकथा को श्रवण करने के लिए मौजूद है। हनुमानजी ने प्रभु राम को वचन दिया था कि जब तक रामकथा गाई जायेगी तब तक वे धरती पर रहेंगे और उनका केवल हरि नाम में ही विश्वा स है। हनुमानजी वायु की ही तरह सबके है। वे पवन रूप में हमारें पीछे रहेंगे तो हमारे इष्ट एवं भजन को बल मिलता है। बापू ने धर्मावलम्बियों से कहा कि सभी सांसारिक उत्तरदायित्व निभाओं लेकिन जब भी समय मिले हनुमानजी को राम नाम अवश्यय सुनायें। हनुमानजी को धरती पर रोकने के लिए रामकथा का होना आवश्यमक है।
बीज मंत्र है राम नाम : साहित्यिक शब्दकोश में राम के कई अर्थ बतायें गये है। राम ने करूणा के कारण आखरी व्यक्ति को भी गले लगाया है। शब्दकोष में प्रेमी को, आत्मा को, जीव को, बल या ताकत, साहस, उमंग, घोड़ा, हिरण एवं अशोक वृक्ष को राम कहा गया है। तथाकथित लेवल के द्वारा किसी का शोषण न हो, यही महाधर्म है। रामदेव पीर ने भी यही किया इसलिए वे निष्कालंक कहलायें। उनको बीज का धणी भी मानते है। छोटे से छोटे आदमी ने भी रामदेव पीर की परम्परा को समझा है।
बीज का अर्थ निरन्तर विकसित होना है। संसार में जितने धर्म, नियम व व्रत है उन सब का बीज रामचरित मानस है। बीज मंत्र को तुलसी महामंत्र भी कहा गया है। गोस्वामी तुलसीदासजी ने भी रामचरित मानस को बीज कहा है। जो रोज विकसित होती है उसी का नाम बीज है। खेत में बोया बीज भी रोज बढ़ता है और वह वट वृक्ष का रूप लेता है। मानस में शिव ने राम नाम को ही बीज मंत्र माना है। बीज तो 24 हुए है लेकिन निश्कलंक परंपरा ने प्रकाशवान एवं ज्योतिवान बीज को ही पूजा है। योग, युक्ति, मंत्र एवं साधना को जब छिपाए रखेंगे तभी वह पलित होगी। पूर्णिमा का चांद अच्छी बात है और इसकी बड़ी महिमा भी होती है। पूर्णता में अहंकार का काला धब्बा लग जाता है और पूर्णिमा के चांद में भी धब्बा नजर आता है लेकिन बीज का चांद निष्क लंक होता है और इसलिए इसका विशेष महत्व होता है।
धरती धोरां री : मुरारी बापू ने राजस्थानी कवि कन्हैयालाल सेठिया के गीत धरती धोरां री पंक्तियों को उद्धत करते हुए कहा है कि राजस्थान में महाराणा प्रताप का चेतक, रामदेव पीर का घोड़ा तथा मीरा का मनरूपी घोडा हुआ है। राजस्थान में जमीन का सूखा है लेकिन मन हरा भरा है और यह भूमि ताकत, उत्साह एवं उमंग की भूमि है। भाला महाराणा प्रताप के हाथ में भी है तो बाबा रामदेव के हाथों में भी है इसलिए यह धरती वीरों, पीरों एवं मीरा री है। मीरा का जहर पीने के लिए स्वयं कृष्णि इस धरती पर आये हैं।
दुखः के आगे सुख है : मुरारी बापू ने प्रसिद्ध वैज्ञानिक आईन्सटीन के काल साक्षेप सिद्धांत के संदर्भ में कहा कि हम सिर्फ दुख को ही देखते है जबकि इसके पीछे खडे सुख को हम देख नही पाते है। सुख दुख, रात दिन, प्यास व तृप्ति, जन्म व मरण, अंधेरा व उजाला साक्षेप षब्द है। षालीन एवं विवेकी सुख हमारे अवकार की प्रतिक्षा में खडा है और हम उसका अवकार करेंगे तो ही वह आयेगा। कभी आगाज के डर से तो कभी अंजाम के डर से सुख तो दरवाजा अवश्य खटखटाता है। दुख जल्दी आ जाते है और उसी में हम डूब जाते है जबकि सुख भी दरवाजे पर खड़ा रहता है। राम रूप में सुख को अपनायेंगे तो दुख हमें सतायेगा ही नहीं। रामकथा ने हमेशा प्रेम का पाठ दिया है इसलिए कथा एक यज्ञ भी है।
नाम से बड़ा कोई भजन नहीं : मेरे पास राम नाम है जो बीज मंत्र ही है। राम के नाम से बडा कोई भजन नही है। आप जो कथा सुनते हैं वह जप, यज्ञ है और जप से बड़ा भजन कोई भी नहीं है। गोस्वामी तुलसीजी की पूरी साधना हरि नाम पर आधारित है। राम तो नाम का, रूप कृष्ण का, लीला बुद्ध पुरूष की और धाम कैलाश का श्रेष्ठस है। गणेश ने राम का आश्रय लिया तो वह प्रथम पूज्य बन गये। प्रभु का नाम जाप करने से ध्यान, यज्ञ, पूजा और अर्चना हो जाती है।
विविध संस्कृतियों का संगम : मुरारी बापू की रामकथा में राजस्थान सहित गुजरात, महाराष्ट्र्, मध्यप्रदेश सहित देश के अन्य शहरों, हिस्सों से आये श्रद्धालु यहां आनंद रस लूट रहे है। जिले के देहात से आता जन सैलाब भी कथा सागर में समाकर संस्कृतियों का मेल करा रहा है। कहीं ठेट देहात की बोली कानों में गूंज रही है तो कही गुजराती, मराठी व मेवाती प्रभु प्रसंगों की चर्चा का जरिया बनी हुई है।
संत कृपा सनातन संस्थान की ओर से आयोजित रामकथा के दूसरे दिन सीमा सुरक्षा बल के जवानों ने व्यासपीठ की आरती उतारी। कथा में राजस्थान सरकार के मंत्री अर्जुन गर्ग, जोधपुर सांसद गजेन्द्रसिंह, कथा संयोजक मदन पालीवाल, प्रकाष पुरोहित, रविन्द्र जोषी, रूपेष व्यास, विकास पुरोहित सहित कई गणमान्य अतिथियों ने व्यासपीठ पर पुश्प अर्पित किये तथा कथा श्रवण का लाभ लिया।
चारों ओर राम का रेला : मुरारी बापू की रामकथा के दूसरे दिन रविवार को श्रोताओं की आस्था में ओर प्रगाढ़ता दिखी। पाण्डाल, भोजनशाला, सड़कें एवं चहुंओर राम राम जपते श्रोताओं की टोलियां आ जा रही थी। कहीं विश्राम, कहीं भोजन तो कहीं कीर्तन में डूबे श्रोता आनंदोत्सव का आभास करा रहे हैं। आसपास के गांव में भी राम का रेला दिखाई देने लगा है। कथा से पूर्व गांव गांव से लोगों के पहुंचने को लेकर अच्छा खासा उत्साह देखा जा रहा है। दूर दराज से भी लोग हजारों की संख्या में कथा स्थल पहुंच रहे हैं।
कवि सम्मेलन आज : रामदेवरा में आयोजित मुरारी बापू की रामकथा के आयोजन की श्रृंखला में आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रमों के तहत सोमवार षाम को कवि सम्मेलन का आयोजन किया जायेगा। इसमें हास्य कवि डॉ. सुरेन्द्र शर्मा, प्रसिद्ध गीतकार दुर्गादानसिंह गौड़, अरूण जैमिनी, भगवान मकरन्द, महेन्द्र अजनबी, बुद्धिप्रकाश दाधीच सहित कई कविगण हिस्सा लेंगे।