उदयपुर। भारतीय किसान संघ के केंद्रीय सह संगठन मंत्री गजेंद्र सिंह ने कहा कि परम्परा और संस्कारों की उपेक्षा घातक है। ईश्वर पोथी-पुराण में नहीं, गरीब और दरिद्र में निवास करता है। नर सेवा ही नारायण सेवा है। श्रद्धा और विश्वास राष्ट्र की नींव के आधार हैं। स्वामी विवेकानंद के ऐसे ही ओजस्वी विचारों और सूक्तियों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि विवेकानंद का जीवन और शिक्षाएँ युगों-युगों तक प्रासंगिक रहेंगी।
मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय द्वारा विवेकानंद जयंती पर आयोजित ‘स्वामी विवेकानंद जयंती व्याख्यान’ मंे मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए गजेंद्र सिंह जी ने स्वामी विवेकानंद के जीवन के अनेक प्रसंगों को उद्घाटित किया। उन्होंने सूत्र के रूप में विवेकानंद की शिक्षाओं को जीवन में उतारने का आह्वान किया। भारत केवल भूखंड नहीं यह तपोभूमि है। विश्व कल्याण और विश्व बंधुत्व ही हमारा जीवन लक्ष्य है। परम्पराओं और संस्कारों का हमारे जीवन में कितना महत्त्व होेता है। यह बात हम विवेकानंद के चिंतन और शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में दिए गए उनके भाषण से सीख सकते हैं। उन्होंने कहा कि विवेकानंद ग्राम आधारित आर्थिक उन्नयन के पक्षधर थे। हमारा देश भी सही मायने में तभी तरक्की कर पाएगा जब हम ग्राम केंद्रित योजनाएँ बनायेंगे। ईश्वरानुरागी विवेकानंद ने अपने जीवन संकल्प में भारतमाता की आराधना को पहला स्थान दिया। परमपूज्य भारतमाता एक अवतारों की लीलास्थली है।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि प्रो. बी.पी. शर्मा, अध्यक्ष, पेसेफिक विश्वविद्यालय ने अपने वक्तव्य मंे कहा कि देश का आर्थिक उन्नयन और सामाजिक समरसता ही प्रत्येक युवा का जीवन लक्ष्य होना चाहिए। इसके लिए उन्होंने श्रद्धा और विश्वास, सत्यनिष्ठा के प्रति आग्रह और निःस्वार्थ बुद्धि का होना आवश्यक बताया। उन्होंने कहा कि विवेकानंद चिंतन ने संपूर्ण पाश्चात्य जगत को चमत्कृत कर दिया। विवेकानंद तात्कालिक भारत के आर्थिक व सामाजिक संदर्भों के प्रति भी सचेत थे। उन्होंने पँूजीपतियों को स्वदेशी उद्योगों के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि विवेकानंद चिंतन पर चर्चा तभी प्रासंगिक सिद्ध होगी जब हम विश्व के प्रत्येक व्यक्ति के योगक्षेम के प्रति चिंतित होंगे। उन्होंने कहा कि सहिष्णुता से भी अधिक सभी पंथ और संप्रदायांे के प्रति समान आस्था आज के समय की बड़ी आवश्यकता है। अपने इन्हीें विचारों के कारण विवेकानंद का चिंतन समसामयिक परिदृश्य में प्रासंगिक है। उन्होंने विवेकानंद चिंतन को रेखांकित करते हुए कहा कि सामान्यजन की उपेक्षा ही पाप है और दरिद्रनारायण की सेवा ही सबसे बड़ा पुण्य।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. जे.पी. शर्मा ने कहा कि विवेकानंद ने भारतवासियों को अपनी परम्परा और नैतिक मूल्यों के प्रति गौरव का अनुभव करने की शिक्षा दी। ओज और तेज के धनी विवेकानंद स्वयं संगीत, व्यायाम और स्वाध्याय का निरंतर अभ्यास करते थे। उन्होंने कहा कि शिक्षा वही है जो अंतस् को प्रकाशित करे। लिप्सा और विलासितापूर्ण जीवन और आध्यात्मिकता का अभाव मनुष्य के पतन का कारण है। विवेकानंद के विषय में सुभाष चंद्र बोस के चिंतन को याद करते हुए उन्होंने कहा कि पूर्व और पश्चिम, भूत और वर्तमान तथा विचार और कार्य में सामंजस्य की स्थापना मंे विवेकानंद का प्रमुख योगदान रहा है। विवेकानंद के सामाजिक सरोकार वाले पक्ष को उद्धृत करते हुए उन्होंने कहा कि आज के वातावरण में व्यक्तिवादिता के स्वर प्रमुख हैं। और समाज व राष्ट्र के हित दूसरे स्थान पर चले गए हैं। सच्चे अर्थों में समाज के साथ आने पर ही सरकारी नीतियों का क्रियान्वयन सफलता पूर्वक किया जा सकता है। विवेकानंद की आध्यात्मिकता में समाज व व्यक्ति के प्रति उनका संवेदनशील स्वरूप दिखाई देता है।
इससे पूर्व छात्र कल्याण अधिष्ठाता प्रो. मदनसिंह राठौड़ ने अतिथियों का स्वागत करते हुए विवेकानंद के चिंतन को अपने जीवन में अपनाकर आज के युवा अपनी दिशा निर्धारित कर सकते हैं।
इस अवसर पर विधायक फूल सिंह मीणा, कोटा विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति एम. एल. कालरा, प्रो. जी. सोरल, प्रो. बी.एल. आहूजा, प्रो. इशाक मोहम्मद कायमखानी, प्रो. माधव हाड़ा, प्रो. जी.एस. कुंपावत, प्रो. अनिल कोठारी, प्रो. हनुमान प्रसाद, प्रो. एम.एस. ढाका, डॉ. राजकुमार व्यास, डॉ. विनीत चौहान, डॉ. तरुण कुमार शर्मा, प्रमोद सामर, प्रो. एस. आर. व्यास, पुष्कर लौहार, हेमरजाज श्रीमाली, गजपाल सिंह राठौड़, शिक्षक संघ के शेरसिंह चौहान व महीपाल सिंह राठौड़, केंद्रीय छात्रसंघ कार्यकारिणी अध्यक्ष मयूरध्वज सिंह, उपाध्यक्ष धु्रव श्रीमाली, महासचिव जितेंद्र सिंह सहित कई संकाय सदस्य, शोधार्थी, विद्यार्थी एवं शहर के कई गण्यमान्य नागरिक उपस्थित थे। कार्यक्रम के अंत में प्रो. नीरज शर्मा ने आभार व्यक्त किया और संचालन डॉ. नवीन नंदवाना ने किया।