उदयपुर। रानी पद्मिनी पर संजय लीला भंसाली द्वारा बनाई जाने फिल्मय में ऐतिहासिक तथ्योंज से छेड़छाड़ के आरोपों को लेकर हुए समझौते के बाद अब मेवाड़ के इतिहासविद आगे आए हैं। राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एस. एस. सारंगदेवोत की अध्यक्षता में मंगलवार को हुई परिचर्चा में उदयपुर (मेवाड़) के इतिहासकारों ने सर्वसम्मति से फिल्म में पद्मिनी के चरित्र के प्रस्तुतिकरण की निन्दा की।
इतिहासकार डॉ. राजशेखर व्यास ने सुझाव दिया कि मेवाड़ के इतिहासकारों की कमेटी का गठन किया जाए तथा किसी भी पात्र पर कोई फिल्म का निर्माण हो तो वह इस कमेटी की सहमति से ही हो। इस प्रस्ताव का सभी इतिहासकारों ने समर्थन किया। डॉ. व्यास ने कहा कि यदि किसी पात्र के बारे प्राथमिक स्रोत से जानकारी नहीं है तो जन मान्यताओं पर भरोसा रखना चाहिए।
प्रताप शोध प्रतिष्ठान के प्रतापसिंह तलावदा, डॉ. राजेन्द्रनाथ पुरोहित, प्रो. मीना गौड़, डॉ. मोहब्बत सिंह राठौड़, डॉ. सज्जनसिंह राणावत आदि ने कहा कि ऐतिहासिक चरित्रों को फिल्म बनाने के नाम पर किसी भी स्थिति में विकृत नहीं किया जाए। मुख्य अतिथि प्रो. के. एस. गुप्त ने कहा कि किसी भी ऐतिहासिक पात्र की ऐतिहासिकता पर चिन्ता व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि वह हमारे पारम्परिक समाज वाले जन मानस में लम्बे समय से अस्तित्व में है। तय किया गया कि बैठक के निर्णय को भारत के राष्ट्रपति से लेकर जिला कलक्टर, जन प्रतिनिधियों तथा फिल्म के सेंसर बोर्ड को प्रेषित किया जाए।
बैठक में डॉ. गिरीशनाथ माथुर, डॉ. ईश्वरसिंह राणावत, डॉ. शक्तिकुमार शर्मा, डॉ. मलय पानेरी, प्रो. नीलम कौशिक, डॉ. जीवनसिंह खरकवाल, डॉ. कुलशेखर व्यास, डॉ. प्रियदर्शी ओझा, डॉ. अजातशत्रु सिंह शिवरती, डॉ. कृष्णपालसिंह देवड़ा, नारायण पालीवाल आदि ने भाग लिया। बैठक में सर्वसम्मति से समिति गठित की गई जिसमें प्रो. एसएस सारंगदेवोत, प्रो. के. एस. गुप्ता, सज्जनसिंह राणावत, डॉ. राजशेखर व्यास सहित 17 सदस्योंव का चयन किया गया। संचालन संस्थान निदेशक डॉ. जीवनसिंह खरकवाल ने किया।