उदयपुर। पुष्य नक्षत्र के दिन उदयपुर के 21-बी दैत्यमगरी में स्थित नवनिर्मित कला आश्रम वेलनेस सेन्टर में सुवर्ण प्राशन शिविर का आयोजन किया गया, जिसमें कार्यरत आयुर्वेदिक चिकित्सकों की टीम द्वारा जन्म से 16 वर्ष तक के बच्चों का सुवर्ण प्राशन संस्कार कराया गया।
उपरोक्त शिविर सायंकाल 4 बजे से प्रारम्भ हुआ। शिविर का उद्घाटन कला आश्रम वेलनेस सेन्टर के चेयरमैन डॉ. दिनेश खत्री एवं निदेशक डॉ. सरोज शर्मा द्वारा दीप प्रज्जवलन कर किया गया। कला आश्रम वेलनेस सेन्टर द्वारा लगाये जा रहे इस प्रकार का शिविर उदयपुर में अपने आप का प्रथम एवं अनूठा शिविर था, जहां जन्म से 16 वर्ष तक के बच्चे उपरोक्त संस्कार एवं पद्धति से लाभान्वित हुए। कला आश्रम वेलनेस सेन्टर द्वारा अगले 27 दिनों के पश्चात उपरोक्त शिविर का पुनः आयोजन किया जायेगा क्योंकि सुवर्ण प्राशन हर माह के पुष्य नक्षत्र के दिन किया जाता है, जो कि हर 27वें दिन आता है। सुवर्ण प्राशन संस्कार में बच्चों को शुद्ध सुवर्ण, कुछ आयुर्वेदिक औषधि, गाय का घी और शहद का मिश्रण बनाकर पिलाया गया। सुवर्ण प्राशन के आधा घण्टा पहले एवं आधा घण्टा पश्चात बच्चों को खाली पेट रहने संबंधी निर्देश भी प्रदान किये गये।
डॉ. सरोज शर्मा ने बताया कि सुवर्ण प्राशन संस्कार बच्चों में किये जाने वाले 16 प्रमुख संस्कारों में स्वास्थ्य की दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण संस्कार है। सुवर्ण प्राशन को स्वर्ण प्राशन या स्वर्ण बिन्दु प्राशन के नाम से भी जाना जाता है। आधुनिक चिकित्सा पद्धति में जिस प्रकार बच्चों को रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने हेतु एवं विभिन्न बीमारियों के बचाव हेतु टीके लगाए जाते है, उसी प्रकार आयुर्वेद के काल से बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने हेतु सुवर्ण प्राशन संस्कार विधि का प्रयोग किया जाता है। यह एक प्रकार की आयुर्वेदिक रोग प्रतिरोधक क्षमता की प्रक्रिया है। बच्चों में 90 प्रतिशत बुद्धि का विकास 5 वर्ष की आयु तक हो जाता है, इसलिये जरूरी है कि उन्हें बचपन से ही सुवर्ण प्राशन संस्कार दिया जाये।
डॉ. दिनेश खत्री ने बताया कि बच्चों में सुवर्ण प्राशन करने का सबसे उचित समय सुबह खाली पेट सूर्योदय के समय होता है। सुवर्ण प्राशन लगातार 1 महीने से लेकर 3 महीने तक रोजाना दिया जा सकता है। सुवर्ण प्राशन सदैव किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक की देख-रेख में कराया जाना आवश्यक है। सुवर्ण प्राशन से बच्चों में पाचन एवं बुद्धि का विकास होता है। बच्चों के रूप एवं रंग में निखार आता है। त्वचा सुन्दर और कान्तिवान होती है। सुवर्ण प्राशन करने से बच्चे शारीरिक रूप से ताकतवर बनते है। बच्चों की सहनशीलता में वृद्धि होती है। इस विधि से बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है।