दीक्षा कल्याणक का वरघोड़ा निकला, अन्जनशलाका विधान
उदयपुर। श्री मुनिसुव्रतस्वामी जैन श्वे.संघ न्यू भूपालपुरा की ओर से नवनिर्मित जिन शासन के 20 वें तीर्थंकर मुनिसुव्रत स्वामी भगवान के मन्दिर की भव्य अंजन शलाका एवं प्रतिष्ठा महोत्सव के तहत आज आचार्य हेमचन्द्र सुरीवर म़सा़, आचार्यश्री कल्याण बोधि सूरिश्वर एवं मुनि निपुणरत्न सूरिश्वर मसा की शुभ निश्रा में बुधवार को दीक्षा कल्याणक वरघोड़ा निकला। प्रतिष्ठा महोत्सशव में गुरूवार को मुख्य प्रतिष्ठा समारोह होगा।
उपाध्यक्ष गजेन्द्र नाहटा ने बताया कि मन्दिर से 14 स्वप्न के साथ वरघोड़े की शुरूआत हुई जिसमें हजारों महिला-पुरूषों के साथ ही बैण्डबाजा, हाथी, घोड़े, उंट गाड़ियां, बग्गियां और साथ में भव्य रूप से सुसज्जित रथ में श्रीजी को विराजमान कराया गया। श्रीजी ने रथ से ही सभी को वर्षीदान प्रदान किया। वरघोड़ा मन्दिरजी से होता हुआ न्यू भूलालपुरा के विभिन्न मार्गों से गुजरा जहां धर्मप्रेमियों ने जगह- जगह उसका पुष्प वर्षा एवं रंगोलियां सजा कर स्वागत किया। सैंकड़ों श्रावक- श्राविकाओं के जयकारों के बीच वरघोड़ा पुनः मन्दिरजी पहुंचा। इस अवसर पर दीक्षा कल्याणक महोतसव आयोजित हुआ।
संघ के अध्यक्ष बीएल चण्डालिया ने बताया कि आज शाम को गजेन्द्र नाहटा कुमारपाल राजा बनकर हाथी पर सवार हो कर मुनि सुव्रत स्वामी की आरती करने पंहुचे। प्रतिष्ठा स्थल पर अन्जनशलाका के पवित्र विधान की विभिन्न धार्मिक क्रियाएं हुई। विधान के दौरान प्रतिष्ठा की बोलियां लगी जिसमें श्रावकों ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया।
धर्मसभा में आचार्यश्री हेमचन्द्र सूरिश्वर महाराज ने प्रतिष्ठा का महत्व बताते हुए कहा कि मन्दिर में परमात्मा की प्रतिष्ठा करने का अर्थ है अपने अन्तर्मन में परमात्मा की स्थापना करना। जिस तरह से मन्दिर में साफ सफाई और स्वच्छता रखने के बाद ही परमात्मा को बिराजमान कराया जाता और प्रतिदिन मन्दिर को साफ सुथरा करके ही भगवान की पूजा की जाती है उसी तरह अपने अन्तर्मन को भी सभी बुराईयों से निकाल कर साफ और स्वच्छ रख कर ही परमात्मा को बिराजमान करना चाहिये। ऐसा नहंी होने पर आपके अन्तर्मन मेया मन्दिर में कभी भीं परमात्मा का वास नहीं हो सकता। इसके बाद मध्य रात्री से अधिवासना एवं अन्जनसलाका का विधान हुआ। विधान के दौरान श्रीजी के 250 अभिषेक हुए।