उदयपुर। राष्ट्र संत गणिनी आर्यिका 105 सुप्रकाशमति माताजी ने कहा कि गुरू के बिना सभी कार्य किये जा सकते है लेकिन आत्म ज्ञान गुरू बिना प्राप्त करना संभव नहीं है।
वे आज आयड़ सिथत दिगम्बर जैन मन्दिर में आयोजित धर्मसभा को संबोधित कर रही थी। मनुष्य को यदि जीवन में त्याग, तपस्या, बलिदान को समझना है तो इसके लिए गुरू की शरण में जाना होगा। यदि आपके कोई गुरू नहीं है तो आगामी आने वाली गुरू पूर्णिमा पर गुरू अवश्य बनाना चाहिये।
माताजी ने कहा कि जीवन की सभी खुशियां माता-पिता से मिलती है। इसलिये जीवन में यही प्रयास करना चाहिये कि अपने नाम के आगे हमेशा उनका नाम चलें, इससे माता-पिता को भी अपार खुशी मिलेगी जीवन में सकारात्मक सोच व माता-पिता के आशीर्वाद से उचाईयां प्राप्त की जा सकती है। उन्होंने कहा कि दिगम्बर जैन परमपरा में आचार्य भगवन्त शान्तिसागर महाराज हुए, जिस कारण आज आप सभी हमें देख पा रहे है। यदि वे नहीं होते तो शायद दिगम्बर आम्नाय के साधु सन्त नहीं होते। सुहितमति माताजी ने उं का महत्व बताते हुए कहा कि उं में पंच परमेष्ठी और सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड समाहित है। किसी भी समय उं का उच्चारण कर आप उर्जा का संचार कर सकते है।
इससे पूर्व आज प्रातः साढ़े आठ बजे आयड़ स्थित चन्द्रप्रभु दिगम्बर जैन मन्दिर संस्कार यात्रा पहुंची जहां सैकड़ों श्रावक-श्राविकाओं ने संस्कारयात्रा एवं गुरू मां की भव्य अगवानी की। पायड़ से आयड़ के बीच में अनेक जगह गुरू मां का पाद प्रक्षालन किया गया। संस्कार यात्रा के राष्ट्रीय संयोजक आमप्रकाश गोदावत ने बताया कि आयड़ से 18 जून को प्रातः साढ़े सात बजे संस्कार यात्रा अशोकनगर में प्रवेश करेगी, जहां निलेश मेहता, रोशन चित्तौड़ा के नेतृत्व में तैयारियां जोर-शोर से चल रही है।