उदयपुर। सार्वजनिक प्रन्यास मंदिर श्री महाकालेश्वर में बलीचा की गवरी नृत्य हुआ। गवरी का शुभारंभ विधिवत् पूजा अर्चना के बाद गजानन्द की सवारी कार्यक्रम हुआ।
भमरा-भवरी, कियावड अम्बाव, कालुकिर, गोमा मीणा, कृष्ण लीला, रेबारी, वरजु काजरी, बंजारा मीणा, नाई दाणी के विभिन्न शिव-पार्वती के रूप में गवरी खेली गई। प्रन्यास सचिव चन्द्रशेखर दाधीच ने गवरी के अन्त में सभी पात्रों का श्रीफल एवं माला पहनाकर अभिवादन किया। गवरी के मुख्य पात्रों का पैरावनी करवाई।
गवरी के अमृतलाल भगोरा एवं देवीलाल दाणा ने बताया कि यह धर्मिक लोकनृत्य रक्षाबंधन के दूसरे दिन से शुरू होता है। शिव के तांडव और गौरी के लास्य नृत्य से मिले जुले स्वरूप से जुड़े इस नृत्य के मंचन से पहले गांव की देवी से इसके आयोजन करने का आशीर्वाद मांगा जाता है। इस लोकनृत्य के शुरू होने के बाद आदिवासी लोग गवरी के मंचन के पूरे सवा महीने तक अपने घर पर नहीं जाते हैं। यही नहीं ये लोग पूरे सवा महीने हरी सब्जी, मांस-मदिरा और जूते चप्पलों नहीं पहनते। गवरी एक नृत्य-नाट्य है। इसके विभिन पात्र मंडलाकार के मध्य देवी के त्रिशूल की स्थपना कर अपने नृत्य का नियमित प्रदर्शन करते हैं। सिर्फ पुरुषों के भाग लेने वाले इस लोकनृत्य में स्त्री के पात्र का अभिनय भी पुरुषो द्वारा ही किया जाता है। इसमें मुख्य रूप से माता गौरजा देवी की पूजा की जाती है।