गांधी शिल्प बाजार की बिक्री का आकड़ा साढ़े सत्ताईस लाख पहुंचा
उदयपुर। कहा जाता है कि कला किसी की गुलाम नहीं होती ह। वह अपनी मर्जी से कहीं पर भी कभी भी किसी के भी घर में जन्म ले लेती है। वह बच्चों से लेकर वृद्धों तक में कभी भी पायी जा सकती है। कभी-कभी तो वह एक ही परिवार में सदियों से चली आती है। ऐसा ही कुछ जोधपुर के नजीर मोहम्मद के घर मे हुआ। इनके परिवार में बंधेज का कार्य पीढ़ीयों से चलता आ रहा है और हर पीढ़ी में इस बंधेज की कला में कुछ नयापन देखने को मिला।
64 वर्षीय नजीर मोहम्मद ने बताया कि उन्होनें सरकारी अधिकारियों के समक्ष एक बंधेज के साफे में 51 रंगो व उतनी डिजाईन का एक साफा तैयार कर शिल्प निर्माण के क्षेत्र में नेशनल अवार्ड के लिये अपना दावा प्रस्तुत किया लेकिन बदकिस्मती से वे अवार्ड तो प्राप्त नहीं कर सके लेकिन अपनी कला को एक नया अंजाम अवश्य दिया। नजीर मोहम्मद को अपनी कला के लिये राज्य स्तरीय पुरस्कार अवश्य प्राप्त हुआ। उदयपुर में इस बार रूडा द्वारा टाऊनहॉल में आयोजित दस दिवसीय क्राफ्ट शिल्प बाजार में गांधी शिल्प बाजार में सलवार सूट, दुपट्टा,साड़ी की विभिन्न बंधेज की नयी-नयी डिजाईन लेकर आये है। इस स्टॉल पर 500 रूपयें की साड़ी से लेकर 11 हजार तक साड़ी उपलब्ध है। इनके द्वारा बंधेज के रंग पक्के होते है। जाकिर मोहम्मद ने बताया कि उनके पिता नजीर मोहम्मद दुबई, मस्कट सहित विभिन्न देशों में बंधेज के उत्पादों की प्रदर्शनी लगाकर जोधपुर बंधेज को वहां पहुंचाकर बंधेज को ख्याति दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। रूडा के दिनेश सेठी ने बताया कि मेले में जनता के रूझान को चलते अब तक साढ़े सत्ताईस लाख की बिक्री हो चुकी है।