उदयपुर। आचार्य शिवमुनि महाराज ने महाप्रज्ञ विहार में आयोजित धर्मसभा में कहा कि तप, साधना आराधना यह सब तो पुण्य के साधन है लेकिन आत्म साधना का साधन है धर्म। अरिहन्त परमात्मा स्वयं तो मुक्त हैं, लेकिन वह हमें भी मुक्ति का मार्ग दिखाते हैं। जो उन्होंने प्राप्त किया है वह हमें भी दे रहे हैं लेकिन परेशानी यह है कि हम मूर्छा में रहते हैं, मोह, माया और अज्ञानता में जीते हैं।
उन्होंने कहा कि हम जिसे अपना मानते है परमात्मा ने उसे ठुकरा दिया। संसार को अपना मत मानो, तुम्हारे पास संसार में है क्या। यह शरीर ही जब तुम्हारा नहीं है तो औरों की बात क्या करना। धन से कोई कभी किसी की रक्षा नहीं कर सकता है। अगर ऐसा होता तो राजा-महाराजाओं ने अपार धन सम्पदा अर्जित की लेकिन क्या उनके प्राण बच सके। उन्हें ही संसार को छोड़कर जाना ही पड़ा। यह मतसमझना कि धन सम्पदा में ही सुख और शांति है। असली सुख शांति इनमें नहीं है, तो फिर सुख-शांति है कहां। सुख शांति अगर कहीं है तो वह धर्म में है, परोपकार में है, पर पीड़ा को समझने में हैं।
आचार्यश्री ने कहा कि आत्म ध्यान तो रोज करने वाली चीज है। एक दिन आत्मध्यान कर लिया और फिर महीनों तक उसका नाम नहीं लिया। ऐसी आत्मसाधना से कोई भला होने वाला नहीं है। जिस तरह से हमको शरीर को चलाने के लिए रोजाना भोजन की जरूरत होती है,उसी तरह से आत्मा के कल्याण के लिए उसकी रोजाना साधना की जरूरत होती है। इच्छाओं से अपने मन को बत बान्धो। इस शरीर को साधना के तप से तपाना है। यह शरीर जितना साधना से तपेगा उतने ही कर्मबन्धन से मुक्ति मिलेगी और आत्मा निर्मल बनेगी।
युवाचार्यश्री महेन्द्रऋषि ने कहा कि हम एके दूसरे को भला क्या दे सकते हैं। अगर कोई यह अहंकार करता है कि मैंने उसे ये दिया है, धन से उसकी मदद की है। अरे वह आपने नहीं दिया है,यह तो आप पर उस त्रिलोकीनाथ की कृपा बरसी है कि आपको इस काबिल बनाया कि आप स्वयं तो कमाओ खाओ और इतना भी दिया समय आने पर दीन दुखियों की मदद भी कर सको। यहतो प्रभु की कृपा है आज आप है तो कल उस दीन पर भी हो सकती है जिसकी आपने मदद की है। कभी ऐसा अहंकार मत करना। समयबदलते देर नहीं लगती। जिसकी आज आपने मदद की है, हो सकता है कल परमात्मा की कृपा उस पर बरस जाए और आपको उससे मदद लेने की जरूरत पड़े। इसलिए कोई भी काम करो अहंकार मुक्त हो कर करो, निःस्वार्थ और निर्मल भावना से करो।
तपस्वी का स्वागत एवं पारणाः धर्मसभा में आचार्यश्री शिवमुनिजी के सानिध्य में श्रीमती नीता डूंगरवाल की 9 वीं मासखमण की तपस्या पूर्ण होने पर चातुर्मास संयोजक विरेन्द्र डांगी, अध्यक्ष औंकार सिंह सिंह सिरोया,गणेशलाल मेहता आदि ने श्रीसंघ की ओर से स्वागत किया गया। स्वागत के बाद उनका पारणा हुआ। धर्मसभा में ही 15 उपवास, 21 उपवास एवं 51 खुले- खुले उपवास की तपस्याएं ली गईं।