छठे राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव अल्फ़ाज़ 2018
नाट्यांश सोसाइटी ऑफ ड्रामेटिक एंड परफोर्मिंग आर्ट्स और भारतीय लोक कला मंडल के संयुक्त तत्वावधान में छठे राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव अल्फाज 2018 के दुसरे दिन दिल्ली के कलाकारों ने नाटक ‘महुआ चरित’ का मंचन किया।
पिछले छः वर्षो से पुर्णतया नारी शक्ति के विषय पर केन्द्रित राजस्थान का एक मात्र नाट्य महोत्सव अल्फ़ाज़, इस वर्ष भारतीय लोक कला मंडल के संस्थापक पद्मश्री देवीलाल सामर की पुण्यतिथि के अवसर पर उन्हें समर्पित है। कार्यक्रम की शुरूआत मंच के बाहर खुले प्रांगण मे आउटडोर परफॉरमेंस के साथ हुई। जिसमे नाट्यांश के तीन कलाकार क्रमशः धर्मेन्द्र टिलावत, जतिन भरवानी और कुमुद द्विवेदी ने तीन अलग-अलग मोनोलोग प्रस्तुत कर दर्शको का मनोरंजन किया। यह तीनों मनोलोग नाट्य विद्या के तीन अलग-अलग रस और भावों को व्यक्त करते है।
अल्फाज़ 2018 के दुसरे दिन पर सुप्रसिद्ध उपन्यासकार काशीनाथ सिंह द्वारा लिखित उपन्यास पर आधारित नाटक ‘महुआ चरित’ का मंचन हुआ। महुआ चरित जीवन के अपार अरण्य में भटकती इच्छाओ का वाख्यान है। मध्यवर्गीय नारी की मनोस्थिति को दर्शाती महुआ अकेलेपन मे छत को सहेली बनाती है, जहां वह खुलती है, खिलती है और खेलती है। छत महुआ के द्वंदों की साक्षी बनती है। स्त्री एवं पुरुष के मानसिक और शारीरिक मांगों की असमान्यता को सामने लाते हुए महुआ आर्थिक मजबूती और स्वाभिमान के साथ प्रेमी से पति बने हर्षुल के सामने खड़ी होती है।
स्त्री देह है या मन, यह गुत्थी सदियों से उलझी है। कभी समाज उसके मन को चरित्र कि चारदीवारी में बांधना चाहता है तो कभी प्रेम कि छुअन से देह बनाकर वासना मिटाता है। स्त्री खुद क्या है, कैसी है, क्यों है, और क्या चाहती है, जैसे सवाल कभी पूछे नहीं जाते, समझे नही जाते। स्त्री जब देह होती है तो उसके प्रति आतुरता रहती है, लेकिन वही देह जब कभी प्रेम चुनती है तो घृणा का कारण हो जाती है।
वृद्ध स्वतंत्रता सेनानी की पुत्री महुआ की देहसक्ति से विवाह तक की यात्रा और फिर उसमें जागता अस्मिता-बोध सामाजिक संदर्भों के साथ सामने आता है। बड़े-बड़े मंचों एवं संगठनो से उठने वाली स्त्री-विमर्श की अनुगूँज के साथ यह प्रश्न आकार लेता है ‘‘ऐसा क्या है देह में कि उसका कुछ नही बिगड़ता? लेकिन मन का सारा रिश्ता-नाता, तहस-नहस हो जाता है।
दिल्ली के प्रस्ताव नाट्य समुह द्वारा प्रस्तुत नाटक ‘महुआ चरित’ में मंच पर महुआ के किरदार में तृप्ति जौहरी, पापा के किरदार में देवेन्द्र प्रताप सिंह, माँ के किरदार में अनुराधा गौतम, छत के किरदार में शिल्पा वर्मा के साथ-साथ मोहन यादव, मोहित चुग, आस्था गुप्ता, विनय शर्मा, गौरव ढिंगरा ने अपने अभिनय से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। मंच पार्श्व में वस्त्र विन्यास रेणु दीक्षित, ध्वनि व संगीत परिकल्पना सैंडी, रूपसज्जा रशीद भाई, विजय हक्कू और विजय सिंह का भी अमुल्य सहयोग रहा। इस नाटक का निर्देशन राज नारायण दीक्षित ने किया।
नाटक समाप्ति के बाद लोक कला मण्डल के निदेशक डॉ. लईक हुसैन, वरिष्ठ रंगकर्मी दिपक जोशी, वरिष्ठ रंगकर्मी विलास जानवे और नाट्यांश के अध्यक्ष अशफ़ाक़ नुर ख़ान ने कलाकारों को प्रशस्ति पत्र प्रदान कर सभी का उत्साहवर्धन किया।