आर्गेनिक महोत्सव: देशभर में जैविक खेती करने वाले 3000 से अधिक किसान पहुंचे उदयपुर: जैविक खेती का दिखा नया रूप
उदयपुर। आर्गेनिक फार्मिंग एसोसिएशन आफ इंडिया एंव पेसिफिक यूनिवर्सिटी के साझे से शिल्पग्राम में शुक्रवार से तीन दिवसीय आर्गेनिक महोत्सव की शुरूआत हुई। इस महोत्सव में 25 राज्यों के 3000 से अधिक जैविक खेती करने वाले किसान, विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया और जैविक खेती के लिए किया जा रहे अपने प्रयोगों को साझा किया।
महोत्सव में विशिष्ट अतिथि जैविक खेती के साधक कहे जाने वाले पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित झालावाड़ निवासी हुकम चंद पाटीदार ने कहा कि देश में फूड सिक्योरिटी खाद्यान सुरक्षा पर बड़ी-बड़ी सरकारी एजेंसी और संगठन काम कर रहे हैं, लेकिन वे सफल नहीं हो पा रहे हैं, इसका कारण यह है कि हम इसमें सप्लाई पर तो ध्यान दे रहें, लेकिन उत्पादन पर नहीं। स्वस्थ जीवन के लिए एक सुरक्षित आहार जरूरी है। ऐसे में फूड सिक्योरिटी तभी सफल होगा जब अनाज उत्पादन पर ध्यान दिया जाए, कि अनाज का उत्पादन कैमिकलयुक्त है या आॅर्गेनिक। आॅर्गेनिक खेती से फूड, हेल्थ, एनवायमेंट की परिकल्पनाएं पूरी होंगी।
विशिष्ट अतिथि पेसिफिक यूनिवर्सिटी के चैयरमेन राहुल अग्रवाल ने बताया कि हमने जब चार साल पहले एग्रीकल्चर काॅलेज शुरू किया था, तभी हमने यह सोच लिया था कि आॅर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने के लिए आने वाले युवाओं को इससे जोड़ना और उनके रोजगार का साधन इसे बनाना जरूरी है। हम प्रयास कर रहे हैं कि हमारे यहां पढ़ने वाला बच्चा आॅर्गेनिक फार्मिंग के महत्व को समझे और इसमें अपना कॅरियर बनाए।
महोत्सव में विशिष्ठ अतिथि मोटीवेशनल स्पीकर और वरिष्ठ पत्रकार एन रघुरामन, स्वराज यूनिवर्सिटी से जुड़कर उदयपुर में आॅर्गेनिक खेती के बढ़ावा पर काम कर रहे मनीष जैन, विषिष्ठ अतिथि स्टेट इंटीट्यूट आॅफ एग्रीकल्चर एंड मैनेजमेंट के डायरेक्टर डाॅ शरद गोधा, नीदरलैंड में आॅर्गेनिक खेती पर काम कर रही इंटरनेशन एसोसिएशन आॅफ आॅर्गेनिक फार्मिंग एंड मैनेजमेंट की मेंबर एडिथ वान वाॅल्सम, कोस्टारिका से आए फ्रांसिस्को, 40 साल से आॅर्गेनिक खेती पर काम कर रहे क्लाउड अलवर्स और किसानों ने अपने अनुभव, प्रयोग साझा किए।
केस स्टडी से लोग जागरूक होंगे: विशिष्ट अतिथि मोटीवेशनल स्पीकर और वरिष्ठ पत्रकार एन रघुरमन ने कहा कि आॅर्गेनिक खेती के महत्वपूर्ण को जन-जन तक पहुंचाने के लिए महत्वपूर्ण है कि ऐसे केस स्टडी मीडिया के जरिए लोगों तक पहुंचाए जाएं, जो किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित थे, लेकिन फिर उन्होंने आॅर्गेनिक खेती के उत्पादों को सौ प्रतिषत अपनी जीवन शैली में शामिल किया और फिर वे धीरे-धीरे स्वस्थ होने लगे और ठीक हो गए। स्वराज यूनिवर्सिटी से जुड़कर उदयपुर में आॅर्गेनिक खेती के बढ़ावा पर काम कर रहे मनीष जैन ने बताया कि आज एजुकेशन सिस्टम ऐसा हो गया है, जिसमें किसानों का मर्डर हो रहा है। बच्चे एजुकेशन लेकर नौकरी तो करते हैं, लेकिन घर में खेत होने के बावजूद खेती करना पसंद नहीं करते, उन्हें खेती करने में शर्म आती है। ऐसे में आॅर्गेनिक खेती के महत्व को समझने और जीवन में ढालने के लिए एजुकेशन सिस्टम में बदलाव की भी जरूरत है।
111 स्टाॅल्स पर जैविक खेती के उत्पाद प्रदर्शित: आॅर्गेनिक फार्मिंग एसोसिएषन आॅफ इंडिया के सचिव रोहित जैन ने बताया इस तीन दिवसीय महोत्सव में देश के 25 राज्यों से आए किसानों ने 111 स्टाॅल्स लगायी हैं। इन स्टाॅल्स पर इन्होंने जैविक खेती के बीज, फसल, उत्पादों का प्रदर्शन किया है। ये सभी सफल प्रयोग हैं, जो संचालित हो रहे हैं। छह चैपाल बनायी गयी हैं, जहां अलग-अलग राज्यों के किसान अपने आॅर्गेनिक खेती को लेकर प्रयोग और अनुभव एक-दूसरे के साथ साझा कर रहे हैं।
विशिष्ट अतिथि स्टेट इंटीट्यूट आॅफ एग्रीकल्चर एंड मैनेजमेंट के डायरेक्टर डाॅ शरद गोधा ने बताया कि मेरी 33 साल की नौकरी में हमने सरकारी तंत्र में रहकर सिर्फ इस बात की चिंता की कि ज्यादा से ज्यादा उत्पादन हो, कैमिकलयुक्त खेती करते चले गए। स्थिति यह हुई कि आज पंजाब से राजस्थान कैंसर पीड़ित मरीजों के लिए ट्रेन चलानी पड़ रही है। आज छींक भी आती है तो हम डर जाते हैं किसी गंभीर बीमारी के अंदेशे से। हम डरे हैं, क्योंकि हमने खुद अपने हाथों से अपने अंगों में जहर डाला है। लेकिन अब सरकारें आॅर्गेनिक खेती के महत्व को समझ चुकी है। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से इस बार बजट में आॅर्गेनिक खेती के लिए एक बड़ा बजट अलाॅट किया, जिसकी शुरूआत हमने तीन जिलों से कर दी है।
विदेशों में आॅर्गेनिक खेती के अनुभव बताए: नीदरलैंड में आॅर्गेनिक खेती पर काम कर रही इंटरनेशन एसोसिएशन आॅफ आॅर्गेनिक फार्मिंग एंड मैनेजमेंट की मेंबर एडिथ वान वाॅल्सम ने अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने बताया कि वे नीदरलैंड के एक गांव में जन्मी, ऐसे में किसानों के सामने की चुनौतियों को उन्होंने समझा। उन्होंने बताया खेती उपयोगी भूमि के लिए विश्व में इंडिया दसवें स्थान पर है, लेकिन आॅर्गेनिक खेती कुछ प्रतिशत हिस्से में ही हो रही है। अधिकांश हिस्से में कैमिकल युक्त फर्टीलाइजर से खेती हो रही है, जिससे मृदा काफी खराब हो चुकी है। कार्यक्रम में कोस्टारिका से आए फ्रांसिस्को ने भी अपने अनुभव साझा किए। इसके बाद 40 साल से आॅर्गेनिक खेती पर काम कर रहे क्लाउड अलवर्स और किसानों ने पेप्सीको केस में अपनी जीत के अनुभव साझा किए।