जल्द ही सुन और बोल सकेगी उर्मिला
उदयपुर। मधुर संगीत या फिर घंटी की आवाज, मां और पिता के प्यार से बोलने की आवाज कैसी लगती होगी। मूक-बधिर बच्चों के लिए शायद ये आवाज सुन पाना मुश्किल है,लेकिन ऐसे बच्चे के लिए कॉकलियर इम्प्लांट सर्जरी किसी चमत्कार से कम नहीं है। इस सर्जरी के बाद मूक बधिर बच्चे न केवल सुनकर समझ रहे, बल्कि अपनी भावनाएं भी अभिव्यक्त कर पा रहे है, और आज नए साल पर पेसिफिक मेडिकल कॉलेज एण्ड हॉस्पिटल में सुनने और बोलने में अक्षम 6 बर्षीय बालिका का कॉकलियर इम्पांट कर सफल ऑपरेशन किया गया।
पीएमसीएच के डीन डॉ. एमएम मंगल ने बताया कि इस सफल ऑपरेशन में ईएनटी सर्जन डॉ.सत्यप्रकाश दूबे की देखरेख में डॉ. पीसी अजमेरा, डॉ. राजेन्द्र गोरवाड़ा, डॉ. एसएस कौशिक, डॉ. महेश वी. के., डॉ. कश्मीरा, निश्चेतना विभाग के डॉ. प्रकाश औदिच्य एवं टीम का योगदान रहा।
दरअसल खमनोर तहसील के दडवल गॉव निवासी 6 बर्षीय उर्मिला जन्म से सुनने और बोलने में अक्षम थ़्ाी। कई जगह दिखाया लेकिन इलाज महॅगा होने एवं आर्थिक परिस्थिति के कारण उपचार कराने में असर्मथ थे। परिजनो ने पेसिफिक हॉस्पिटल के ईएनटी विभाग के डॉ.पी,सी.अजमेरा के दिखाया तो कान से सम्बन्धित सभी जॉच करने के बाद पता चला की बच्ची के कोक्लेयर नर्व में दिक्कत है जिसके चलते वह सुन और बोल नहीं पा रही है। जिसका की कॉकलियर इम्प्लांट द्वारा ही उपचार सम्भव है।
कान. नाक एवं गला रोग विशेषज्ञ डॉं.एसएस कौशिक ने बताया कि यह इम्प्लांट 21 दिनों के अंतराल में अच्छी तरह से स्थापित हो जाता है। इम्प्लांट के स्थापित होने के बाद विशेषज्ञ चिकित्सकों द्धारा इस इम्प्लांट को स्वीच आँन किया जाता है इस सबके बाद आगामी 6 माह तक इन बच्चों को स्पीच थैरेपी के माध्यम से प्रशिक्षण देकर इन्हें बोलने और सुनने मे सक्षम बनाया जाता है, साथ ही बच्चो के अभिभावकों को भी कांउसिंलिग के माध्यम से प्रशिक्षित करतें है।
पीएमसीएच के चेयरपर्सन राहुल अग्रवाल ने बताया कि पीएमसीएच विगत बर्षो मे 70 से ज्यादा बच्चों को सुनने और बोलने में अक्षम बच्चों को काँकलियर इम्प्लांट के माध्यम से सुनने की सौगात दी है।
गौरतलब है कि इस तकनीक के आँपरेशन का 6 लाख से 12 लाख रुपये तक का खर्च आता हैं। लेकिन आशापुरा माता ट्रस्ट लोसिंग के संरक्षक मॉगीलाल लौहार,कन्हैयालाल लौहार,लक्ष्मीलाल लौहार के साथ साथ दिनेशचन्द्र लौहार,रामचन्द्र लौहार और मुकेश लौहार के आर्थिक सहयोग से यह काँकलियर यूनिट प्रत्यारोपित की गई हैं जिससे उर्मिला जल्द ही सुन और बोल सकेगी।
कैसे उपयोगी है काँकलियर इम्प्लांट तकनीक – काँकलियर इम्प्लांट तकनीक में आँपरेशन के दौरान कान के अंदर कोकलिया पार्ट पर सर्जरी की जाती हैं। सर्जरी में मस्तिष्क से इम्प्लांट जोडा जाता है इसका दूसरा भाग प्रोसेसर कान के पीछे फिट किया जाता है। इम्प्लांट के इलेक्टोड का सम्बन्ध कान के बाहर लगाये जाने वाले प्रोसेसर से होता है। दोनों चुम्बक से जुडे रहते है। प्रोसेसर से ध्वनि उर्जा इम्प्लांट में पहुंचती है यहां इलेक्टोड इस उर्जा को इलेक्टोनिक उर्जा में बदल कर इम्पल्स मस्तिष्क का भेजता है जिससे बच्चों में सुनने की क्षमता का विकास होता है साथ ही स्वीच थैरेपी के माध्यम से वे बोलने लगते हैं।