उदयपुर। स्वामी अग्निवेश ने वैदिक संस्कृति के बारे में बताते हुए यह कहा कि पृथ्वी और पर्यावरण को बचाने में हमें हमारी परंपरागत संस्कृति का पालन करना होगा। वे आज डॉ. दौलत सिंह कोठारी शोध एवं षिक्षा संस्थान द्वारा विज्ञान समिति में पृथ्वी दिवस पर आयोजित तीन दिवसीय ‘‘सस्टेन मदर अर्थ’’ अन्तर्राष्ट्रीय सेमिनार के दूसरे दिन बोल रहे थे।
उन्होंने यह भी कहा कि संस्कृत में सभी तरह के सिद्धांत की व्याख्या अच्छी तरह से करी गई है। इस दौरान वेरान नेप्पे ने और उनके सहयोगी वैज्ञानिक एडवर्ड क्लोज ने अमेरिका से ज़ूम पर प्रथ्वी रक्षण के बारें में बताया। दोनों का मुख्य जोर एसटीसी यानि स्पेस, टाइम और कान्शियशनेस पर था। नेप्पे ंने गीमेल के बारे में बताया और क्लोज ने गणितीय पद्धतियों और अध्यात्म के मेल के बारे में जानकारी दी।
साध्वी प्रांशुश्री और डॉ. वंदना मेहता का व्याख्यान हुआ। साध्वी प्र्रंाशुश्री का व्याख्यान भी डॉ. वंदना मेहता ने ही प्रस्तुत किया था। उन्होंने भारतीय दर्शन के परिप्रेक्ष्य में महात्मा गांधी के चिंतन के बारंे विस्तार से बताया। सुधीर शेट्टी ने जलवायु परिवर्तन के बारें में जानकारी देते हुए कहा कि समाज को आगे आना होगा और आम आदमी को जिम्मेदारी लेनी होगी और खपत को सीमित करना होगा।
संदीप शर्मा ने कहा कि हमें अपने संसाधनों का उपयोग सीमित करना होगा और धरती के रहस्य को जानना होगा और संसाधनों का उपयोग संतुलन तरीके से करना होगा। उन्होंने कहा कि हमें प्रकृति के साथ सह अस्तित्व रखना होगा।
इस अवसर पर चैतन्य संघाणी ने कहा कि प्रकृति परंपरा जीवन शैली को अपनाकर ही हम प्रकृति और पृथ्वी को सुरक्षित कर सकते हैं। प्रसिद्ध न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. सुधीर शाह ने खुशी का रहस्य बताया कि अगर हम खुश रहना चाहें तो खुश रह सकते हैं। हमें देने का सुख अपनाना होगा और इस बात पर जोर दिया कि सुख और दुख का भाव हमारे अंदर ही छुपा हुआ है। सुषमा सिंघवी ने अपरिग्रह पर जोर दिया और कहा कि पृथ्वी ही जीवन है और जीवन ही पृथ्वी है और सहयोग और देने की भावना से ही हम सह अस्तित्व में रह सकते हैं। डॉ. आर.एम. पांड्या ने बताया कि प्रकृति से सहयोग करके ही और संसाधनों का सही उपयोग करके ही हम प्रकृति और पर्यावरण की रक्षा कर सकते हैं।
इसके साथ ही शोधार्थी छात्रों के लिए अलग से एक समानांतर सत्र का भी आयोजन किया गया जिसमें पृथ्वी प्रकृति और पर्यावरण के बचाने के बारे में लेख प्रस्तुत किए गए।
कनकजी मादरेचा ने दुबई से उनके विश्व शांति संघ की गतिविधियों के बारे में बताया, जो पचास देशों में चल रहा है और जिसके 200 से ऊपर सदस्य हैं।
ईसरो के वैज्ञानिक डॉ. हरिश सेठ ने जलवायु परिवर्तन के पृथ्वी और मनुष्यों पर होने वाले प्रभावों के विषय पर अपने विचार व्यक्त किये। श्रीमती शकुन्तला पगारिया ने ज्ञान पंचमी के महत्व और उस के बाद हर माह पंचम को उपवास करने से उनके व्यक्तिगत जीवन में शिक्षा के क्षेत्र में होने वाले परिवर्तन पर अपने अनुभव बतायें।