राजस्थान उज्ज्वल प्रदर्शनी में उमड़ी विद्यार्थियों की भीड़
उदयपुर। भारत सरकार की ओर से होटल इंदर रेजीडेंसी में चल रही राजस्थान उज्जवल प्रदर्शनी-2023 दूसरे दिन भी विद्यार्थियों, किसानों और आम जनता की खूब भागीदारी रही।
प्रदर्शनी संयोजक मीतू पाल ने बताया कि सभी ने प्रदर्शनी में लगे स्टॉल्स पर जाकर बारीकी से उनके उत्पादों और नई-नई जानकारियों का बारीकी से गहन अध्ययन किया। दो दिनों में ही दस हजार से ज्यादा लोग प्रदर्शनी का अवलोकन कर चुके हैं।
प्रदर्शनी में स्पाईस बोर्ड मिनिस्ट्री ऑफ कॉमर्स एण्ड इण्डस्ट्री भारत सरकार की ओर से आये सीनियर फील्ड ऑफिसर डॉ. श्रीशैल एवं गौतम सेठिया ने बताया कि स्पाईस यानि मसालों के उत्पाद में राजस्थान देश ही नहीं पूरे विश्व में सबसे आगे हैं। राजस्थान में 11 तरह के मसालों का उत्पादन प्रचूर मात्रा में होता है जिनमें मुख्य रूप से जीरा, लहसून, राई, सौंफ, खसखस, ईसबघोल, धनिया, मिर्च जैसे मसाले मुख्य रूप से हैं। इनका उत्पादन देश में सबसे ज्यादा राजस्थान में ही होता है। पूरे देश का 60 प्रतिशत राजस्थान में उत्पादित होता है जो कि अपने आप में एक रिकार्ड है। पूरे भारत की अगर बात करें तो 75 प्रकार के मसाले भारत में होते हैं। मसालों में राजस्थान के मसालों की मांग देश ही विदेशों में भी सबसे ज्यादा होती है।
उन्होंने बताया कि मसाले खाते तो सभी हैं लेकिन कईयों को इनका नाम तक नहीं पता होता है। यह कहां- कहां पैदा होते हैं, कैसे पैदा होते हैं इनसे कौन-कौन से फायदे होत हैं। इसकी जानकारी न बच्चों को होती है और ना ही बड़ों को। यहां तक कि किसानों को भी नहीं पता होता है कि कौनसे मसाले कब और कैसे बोये जाते हैं तथा इनसे उन्हें कैसे फायदा होता है। इन सभी की जानकारी वह अपने स्टॉल्स पर हर आने वालों को प्रदान कर रहे हैं।
केन्द्रीय भेड़ एवं अनुसंधन संस्थान से से आये डॉ. रंगलाल मीणा ने बताया कि वे किसानों को भेड़ पालन के प्रति जागरूक करना, उनकी बीमारियों से लेकर भेड़ों में प्रजनन कैसे बढ़े इसकी जानकारी प्रदान कर रहे है। उन्होंने बताया कि उनके संस्थान ने वेस्टबंगाल, राजस्थान और गुजरात की मिलाकर भेड़ों की एक मिक्स नस्ल तैयार की है। यह भेड़ दो से चार बच्चों को एक साथ जन्म दे सकती है। दो साल में तीन बार यह बच्चे पैदा करती है। किसान भेड़ पालन करता है लेकिन भेड़ों द्वारा बच्चों को जन्म देने की क्षमता कम होने से वह भेड़ पालन व्यवसाय से दूर होते जा रहे हैं। ऐसे किसानों को वह इस नई नस्ल के बारे में बता कर जागरूक कर रहे हैं। इसके साथ ही उनके पास वेस्ट वूलन से तैयार किया गया एक ऐसा उत्पाद है जिसे वूल शेपलिंग बेग कहा जाता है। इसमें कोई भी पौधे उगा सकता है। प्लासस्टिक की थैली में पौधे उगाने से उनकी ग्रोथ भी कम होती है। बार- बार पानी देना पड़ता है। दूसरा जब पौधों को जमीन में लगाना होता है प्लास्टिक की थैली को अलग गरना पड़ता है। जबकि वूल शेपलिंग बेग सहित पौधे को जमीन में लगा सकते हैं। इसमें नमी भी रहती है और यह अपने आप ही गल जाता है।