कलश यात्रा में श्रद्धालु उमड़े
उदयपुर। गट्टानी फाउण्डेशन की ओर से आयोजित सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथावाचन के लिये 29 वर्षीय गोवत्स राधाकृष्ण महाराज आज दोपहर में ढ़ाई बजे डबोक हवाईअड्डे पहुंचे। जहां गट्टानी परिवार की ओर से उनका भव्य स्वागत किया गया। डबोक हवाई अड्डे से लेकर सुभाषनगर स्थित पाठेश्वर मंदिर तक बीच राह में उनका विभिन्न स्थानों पर फूल-मालाओं से हार्दिक स्वागत किया गया। जनता हाथों में फूल-मालायें लेकर उनके दर्शन के लिये पलक पावडे बिछाये खड़ी थी।
गट्टानी फाउण्डेशन के संस्थापक के. जी. गट्टानी ने बताया कि राधाकृष्ण महाराज के पाठेश्वर मंदिर पंहुचने के बाद उनके स्वागत में फाउण्डेशन की ओर से कलश यात्रा निकाली गई जो सुभाषनगर के अन्दुरूनी इलाकों में होती हुई पांच बजे कथा स्थल पर पहुंची। बैण्डबाजों के साथ निकली कलश यात्रा में महिलाएं स्वर्णरूपी कलश लिये लाल चूनड़ की साड़ी पहने मंगल गीत गाती हुई चल रही थी जबकि पुरूष सफेद कुर्ता-पायजामा में थे। राधाकृष्ण महाराज के पहुंचने पर सुभाषनगर में माहौल भक्तिमय हो गया। चारों ओर राधाकृष्ण महाराज के जयकारे लग रहे थे। कलश यात्रा में सैकड़ों महिला-पुरूष सम्मिलित थे। पाठेश्वर महादेव मंदिर पहुंच कर महाराज ने दर्शन किये। मंदिर के पुजारी अनिल उपाध्याय ने महाराज का स्वागत किया।
श्रीमद्भागवत कथा प्रारम्भ करते हुए प्रथम दिन गोवत्स राधाकृष्ण महाराज ने भागवत कथा का मर्म समझाते हुए कहा कि भगवत का स्मरण ही भागवत कथा है। भक्ति के लिए शरीर नहीं मन चाहिये क्योंकि जब तक मन आपका भक्तिमय नहीं होगा तब तक शरीर की भक्ति का कोई मोल नहीं है। उन्होंने कहा कि अभी उष्णकाल चल रहा है। कृष्ण की गोपियां कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए एक विशेष कार्य करती थी। वह रात में कोरे मटके में दूध रख कर जावन डालती है। रातभर उसके जमने का इन्तजार करती है। सवेरे जब वो दही के जम जाने पर उस मटके को लेकर वन में जाती और यही सेचती की अभी कान्हा आएगा और मेरी मटकी को उसके हाथों से छीनकर उसमें से दही खाएगा तो मैं धन्य हो जाऊंगी। यदि आपको भी कान्हा को दही खिलाना है तो अपने मन को कोरे मटके की तरह बनाओ, उसके भक्ति का दूध डाल कर स्नेह का जावन मिलाओ तब वो जाकर कहीं प्रेम का दही बनेगा और वो ही दही पीने कान्हा आपके पास आएगा।
उन्होंने कहा कि धन-दौलत से भागवत कथा नहीं मिलती यह तो कृपा और करूणा के फल से ही प्राप्त होती है। ठीक उसी तरह जिस तरह हिमालय पर जमी बर्फ सूर्य के ताप से पिघल कर करूणा की गंगा के रूप में निकलती है ठीक उसी तरह सन्त भी जब जगत के ताप से पिघलता है तब उसके भीतर से करूणा की कथा प्रकट होती है।
महाराज ने कहा कि यूं तो जगत में सभी ज्ञानी हैं लेकिन जब कथा का श्रवण करें तब अपनी सारी विशिष्टताओं का विस्मरण कर देना चाहिये। जब तक आप के मन में कोई भी पद रहेगा या कोई भी विशिष्टता रहेगी, हम इतना जानते हैं, हम ये कर सकते हैें तब तक आपमें अहंकार बना रहेगा हम वैष्णव नहीं बन पाएंगे। प्रभु आपके मन में तभी वास करेंगे जब आपका मन कोरा होगा। उन्होंने कहा कि जगत को आपके शरीर की जरूरत है उसे दे दो, लेकिन ठाकुरजी को आपका शरीर नहीं मन चाहिये, मन उनमें लगाओ।
उन्होंने चुटकी ली कि उदयपुर वाले बहुत भाग्यशाली हैं कि वो ठाकुरजी के पड़ोस में रहते हैं। आप चाहें यहां रहें लेकिन आपका मन नाथद्वारा में होना चाहिये। कथा सुनना अलग बात है उसे मन में उतारना अलग बात है। इस सात दिवसीय कथा सुनने के बाद भक्तों में अगर मींरा जैसी भक्ति आ जाए तो समझना कि हमारा कथा सुनाना और आपका सुनना सार्थक है। उन्होंने कहा कि मैं भी अज्ञानी ही हूं। आपने तो कई कथाएं सुनी होंगी लेकिन मैंने तो कुछ ही कथाएं कहीं होंगी। इसलिए कहता हूं कि जब तक आपका मन कोरा नहीं होगा तब तक इसमें प्रभु का वास नहीं हो पाएगा।
कथा प्रारम्भ से पूर्व के.जी.गट्टानी फाउण्डेशन की श्रद्धा गट्टानी ने कथा के उद्देश्य के बारे में बताया। स्वागत उद्बोधन में के.जी. गट्टानी ने कहा कि आज से उदयपुर की धरा कृष्णमयी हो गयी है। हम तीर्थ करने तीर्थस्थल पर जाते हैं लेकिन आज तीर्थ खुद चल कर हमार बीच आ गया है। कथा में महन्त सुरेश गिरी,अस्थल मन्दिर के रासबिहारी शरण शास्त्री, ब्रजमोहन गट्टानी, मांगीलाल जोशी, समाजसेवी मनोहरसिंह सच्चर आदि उपस्थित थे। कथा में महाराज कुमार लक्ष्यराजसिंह मेवाड़ भी उपस्थित हुए जिन्होंने व्यास पीठ पर महाराज का माल्यार्पण कर स्वागत किया।