इतिहासकारों ने माना, संगोष्ठी में छाया प्रताप के अध्याय का मसला
उदयपुर। जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ के साहित्य संस्थान में प्रताप जयंती की पूर्व संध्या पर हुई संगोष्ठी् में भी प्रताप के अध्याय को लेकर इतिहाकारों एवं साहित्यकारों ने आक्रोश जताया। पाठ्यचर्या का निर्धारण करने वाली कमेटी या मंडल को जिम्मेदार ठहराते हुए इन साहित्यकारों ने पाठयक्रम में तुरंत प्रभाव से फेरबदल करने की बात कही।
मुख्य अतिथि सुखाडिया विवि के इतिहास विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो के. एस. गुप्ता ने कहा कि 16 वीं शताब्दी में विशाल साम्राज्य की स्थापना हुई। सांगा ने अपने 15 से 20 साल के कार्यकाल में उत्तर भारत को समस्त शक्तियों प्रदान करने का बीडा उठाया, वहीं मनोहरसिंह राणावत ने कहा कि प्रताप पर नए ग्रंथ का आयोजन होना चाहिए। प्रताप के दर्शन पर प्रो गुप्ता और डॉ. पांडेय द्वारा एमल्स एंड एंटिक्यूटिज ऑफ राजस्थान के द्वारा प्रताप की महत्ता बताई गई। डॉ. राणावत ने कहा कि हल्दीघाटी पर युद्ध खमनोर के पश्चिम में हुआ था। इस समय भूख एवं प्यास से भी कई योद्धा मारे गए।
डॉ. राजशेखर व्यास ने कहा कि प्रताप का कृतित्व एवं व्यक्तित्वह बहुआयामी है। उन्होंने बताया कि दिल्ली का बादशाह अकबर संपूर्ण भारत पर अपना आधिपत्य तथा वैवाहिकी संबंध चाहता था। यह केवल मेवाड के सूर्यवंशी महाराणा प्रताप को स्वीकार नहीं था।
पुस्तक का विमोचन
संगोष्ठीम के दौरान डॉ कुलशेखर व्यास द्वारा राजस्थानी भाषा में लिखित कीका री कीरव पुस्तक का विमोचन किया गया। संचालन डॉ कुलशेखर व्यास ने किया।