उदयपुर. हर तरह का सीज़न आता है. शादी-ब्याह के समय टेंट, हलवाई, बैंड, गार्डन का जिस तरह प्रचार-प्रसार होता है, ठीक उसी प्रकार अभी एक सीज़न चल रहा है रिज़ल्ट्स का सीज़न. एक्जाम हो चुके हैं और रिज़ल्ट्स आ रहे हैं. नया स्कूल सत्र भी शुरू होने वाला है.
हाल ही में आईआईटी सहित अन्य कई रिज़ल्ट्स आये थे, कोचिंग इंस्टिट्यूट वालों ने अपना जो प्रचार-प्रसार किया, धन्य है. एक बच्चा जो मेरिट में आया, उसको तो राज्य के दो बड़े-बड़े कोचिंग इंस्टिट्यूट ने अपना बता दिया यानी समाचार पत्रों में एक-एक पेज के विज्ञापन दिए गए जिनमें खुद की तारीफ़ करते हुए उस बच्चे को भी उन्ही के यहां कोचिंग करना बताया गया. यही नहीं, उस बच्चे से भी लिखवा कर विज्ञापन में प्रकाशित कराया गया कि उसने इन्ही के यहां से कोचिंग की है.
आखिर प्रतिस्पर्धा की इस दौड में कौन कहाँ जाकर रुकेगा, इसका संभवतः अंदाज़ा भी नहीं लगाया जा सकता. होड़ा-होड़ी के इस दौर में वे कोचिंग इंस्टिट्यूट भले ही अगले सत्र के लिए एक बार वापस नए छात्रों को अपनी और आकर्षित कर छात्रों को बुलाने में कामयाब हो जाएँगे लेकिन वाकई में क्या उन बच्चों के साथ इन्साफ होगा, यह सोचने की बात है. क्या उन अभिभावकों के साथ इन्साफ होगा जो विज्ञापन देखकर अपने बच्चों की उस कथित इंस्टिट्यूट में कोचिंग करने की फरमाइश पूरी करने के लिए भारी-भरकम राशि का इंतजाम करने में लग जाएंगे जिसके पीछे भले ही उन्हें कितनी ही आवश्यक जरूरतों का त्याग करना पड़ेगा.
क्या जरुरत नहीं महसूस होती है इस जगह ऐसे सिस्टम की, ऐसे निगेहबान की जो इन कथित फर्जी इंस्टिट्यूट्स पर निगाह रख सके, नज़र रखे जो इस तरह के ओछे हथकंडे अपना कर छात्रों को भुलावे में लेकर उनकी जेब खाली करवाने में लगे रहते हैं.
उदयपुर निश्चय ही एजुकेशन हब बन रहा है लेकिन उसका नाजायज लाभ उठाना कहाँ तक वाजिब है? इंस्टिट्यूट के हालात यहां तक बिगड़ गए हैं कि राज्य के प्रमुख शहरों में अपनी शाखाएं तक खोल ली है और वहां तक न सिर्फ आसपास के शहरों बल्कि गाँवों के भोले-भाले लड़कों तक को ठगने से बाज नहीं आ रहे.