युद्ध स्वाभिमान का प्रतीक
उदयपुर। ’हल्दीघाटी युद्व दिवस‘ पर आयोजित संगोष्ठी में आलोक संस्थान के निदेशक डॉ. प्रदीप कुमावत ने इतिहास को नये शोध की आवश्यलकता बताते हुए कहा कि जिन लोगों ने अपनी मर्जी से इतिहास को तोड़-मरोडक़र लिखने की कोशिश की, वे सब भी इस बात से एक रूप से सहमत है कि निश्चित रूप से हल्दीघाटी युद्व महाराणा प्रताप ने जीता।
उन्होंने कहा कि इस युद्व के बारे में अब तक अनिर्णित ही लिखा गया। वास्तव में हल्दीघाटी का युद्व महाराणा प्रताप ने जीता। सामरिक दृष्टि से और कूटनीतिज्ञ दृष्टि से भी। मुगल सैनिकों को दो महीने बाद गोगुन्दा क्षेत्र से कच्चे आम और घोड़ों का मांस खाकर जीवन यापन करना पड़ा। अंततोगत्वा उनको वहाँ से भागना पड़ा। यह इस बात का द्योतक है कि लम्बे अंतराल के बाद हल्दीघाटी युद्व भले ही तीन घंटे में समाप्त हुआ लेकिन उसके परिणाम दो महीने बाद जब गोगुन्दा गांव से मुगल सेनाएं भागी यानि उस समय प्रताप उस युद्व में विजय हुआ और इस विजय का द्योतक इस बात से भी पता चलता है कि मानसिंह की ड्योढ़ी अकबर ने बंद कर दी थी।
उन्होंाने कहा कि विश्व में थर्मापोली युद्व के समान प्रसिद्व युद्ध जो तीन घंटे में हुआ वह हल्दीघाटी युद्व जो खमनोर के युद्व के नाम से भी जाना जाता है। विश्व इतिहास में इसे दो शासकों के बीच नहीं बल्कि भारत के गौरव व स्वाभिमान के युद्व के रूप में माना जाना चाहिये।
डॉ. कुमावत ने कहा कि मूलत: यह युद्व दो सेनाओं के बीच ऐसी सेनाओं के बीच जो असंतुलित थी एक तरफ काफी सैनिक थे वहीं मुट्ठी भर तीन हजार मेवाड़ी सैनिकों ने मुगल सेना से जो लोहा लिया और तीन घंटे में जो रक्तपात हुआ वो विश्वह इतिहास में अपने आप एक मिसाल है।
अध्यक्षता संस्थान के चेयरमैन श्यािमलाल कुमावत ने की। आलोक संस्थान के टेक्नीकल निदेशक निश्चमय कुमावत, महाराणा प्रताप फिल्म में प्रताप का अभिनय करने वाले नारायण सिंह सिसोदिया, द क्रु के संजय सोनी, आलोक सी. सै. स्कूल हिरण मगरी के उप प्राचार्य शशांक टांक सहित अनेक कार्यकर्ता उपस्थित थे।