कल से अन्न त्याग देंगे
उदयपुर. बड़ी मेहनत एंव खून पसीने से कविता गांव में एक छोटे से भूखण्ड पर करीब २७ वर्ष पूर्व मन्दिर बनाया और उसे दानदाताओं के सहयोग से एक ऐसा रूप दे कर अन्य समाज एंव धर्मानुयायियों के लिये चितंन का विषय बना दिया कि जैन धर्मावलम्बी होने के बावजूद सुधर्म सागर महाराज ने अपने पल्लवित होते पुष्परूपी इस मंदिर में वैष्णव धर्म की भी स्थापना की। मुनि सुधर्म सागर कहते हैं कि यह उनके किसी भी धर्म, समाज एंव पंथ से बंधन मुक्त होने का प्रमाण है।
वे आगामी ११ नवम्बर को संथारा लेने की घोषणा करने के बाद अनुयायियों के लिये एक ऐसा धाम छोड़ेगें जिसे बनाना हर किसी के बस की बात नहीं थी। वे २ नवम्बर से अन्न तथा ११ नवंबर से जल, दवा व हर प्रकार का त्याग कर समाधि की ओर अग्रसर होंगे.
मंदिर में पहले उन्होंने हनुमानजी का बाल स्वरूप स्थापित किया और अब उस स्थान पर उन्हीं का विशाल रूप देखने को मिलता है। यहीं भगवान गणेश की दोमुखी छोटी प्रतिमा, भगवान विष्णु-लक्ष्मी का जोड़ा, नाकोड़ा भगवान की प्रतिमा भी स्थापित की हुई है ताकि आने वाले समय में यह प्रत्येक धर्म के लिये यह एक धाम बन सके।
मंदिर के साथ प्रशिक्षण केंद्र भी
सुधर्म सागर महाराज ने इस धाम को मात्र एक धाम ही बने नहीं रहने दिया वरन् इसमें सिलाई प्रशिक्षण केन्द्र की भी स्थापना की ताकि बालिकाएं सिलाई प्रशिक्षण प्राप्त कर अपने पैरों पर खड़ी हो सके। इस धाम में देश में बड़े-बड़े उद्योगपतियों, समाज सेवियों, आचार्य महाश्रमण, जैन श्वेताम्बर मूर्ति पूजक श्रीसंघ के आचार्य ने यहाँ पदार्पण कर इस धाम को धन्य किया. सुधर्म सागर महाराज ने इस धाम में पीजन कॉम्पलेक्स की स्थापना कर एक साथ 108 कबूतरों के दाना चुगने का प्रबन्ध किया हुआ है। कविता गांव से निकलने वाले साधओं एंव अन्य व्यक्तियों के लिये भोजनशाला की भी स्थापना कर रखी है ताकि यहाँ आने वाला कोई भी व्यक्ति या साधु इस स्थान से भूखा नहीं जाय.
भावी योजना
सुधर्मसागर महाराज ने इस धाम को नया रूप देने के लिये अनेक भावी योजनायें बनाई हुई है. जिसके तहत मंदिर के ऊपर एक क्लॉक टॉवर स्थापित किया जायेगा ताकि दूर से ही राहगीर को समय का पता चल सके। इनके बाद इसका कार्य साध्वी एंव उत्तराधिकारी समणी आनन्दी की देखरेख में पूर्ण होगा।
समाधि स्थल का चयन
सुधर्म सागर महाराज ने संथारा लेने के पश्चात देह त्याग के बाद उनकी समाधि के लिये धाम के सामने ही स्थापित बीएसएफ मैदान का चयन किया है। वहीँ हनुमानजी के बाल स्वरूप की मूर्ति स्थापित की जायेगी जिसकी पूजा अर्चना बीएसएफ के जवानों द्वारा की जायेगी। इसकी सूचना बीएसएफ अधिकारियों, साध्वी समणी आनन्दी एंव अन्य अनुयायियों को दे दी गई है.
सुधर्म सागर महाराज कहते हैं कि उन्हें किसी से कोई शिकवा-गिला नहीं है। उन्हें प्रसन्नता है कि २७ वर्ष पूर्व गुजरात से यहाँ आकर साधु जीवन व्यतीत करने वाले इस साधु को हर समाज, धर्म एंव व्यक्ति ने भरपूर सहयोग दिया. जिस समाज ने उन्हें इतना प्यार व अपनत्व दिया वे वापस उसे समाज को ११ नवबंर को सौंप देंगे.
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