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उदयपुर. गुनगुनी ठण्ड भरी शाम, चारों ओर कोलाहल भरे वातावरण में यकायक जाने किसी बच्चे को डांटा और वो चुप हो गया. पिन ड्रॉप चुप्पी. और फिर जब पं. शिव कुमार शर्मा के हाथों की कलम संतूर पर थिरकी और पं. हरि प्रसाद चौरसिया की साँसों का जादू बांसुरी पर बिखरा तो चारों ओर सिर्फ तालियाँ ही बज रही थी.
मौका था वेदान्त ग्रुप के हिंदुस्तान जिन्क लिमिटेड और पं. चतुरलाल मेमोरिअल सोसायटी के तत्वावधान में शिल्पग्राम में आयोजित स्मृतियाँ कार्यक्रम का जहाँ इन्होंने प्रस्तुतियाँ दी. आरम्भ प्रकाश संगीत के शास्त्रीय गायन से हुआ. उनके साथ तबले पर सुधीर पांडे और हारमोनियम पर जयंत फडके ने संगत की.
पं. शर्मा ने संतूर पर राग झिंझोटी में आलाप की शुरुआत की. उन्हें तानपुरे पर जापानी शिष्य और तबले पर योगेश शम्सी ने संगत दी.
पं. चौरसिया ने राग किरवानी में बांसुरी पर आलाप के बाद ताल और रूपक में रचनाएँ पेश की. उन्होंने पं. चतुरलाल के पौत्र प्रांशु के तबला वादन की भी तारीफ की.
अंतिम दौर में वारसी बंधुओं ने श्रोताओं को अंत तक बांधे रखा. नजीर अहमद खां और नसीर अहमद खां वारसी ने अमीर खुसरो के कलाम से शुरुआत की. फिर कबीरदास का भजन सूफी गायकी में प्रस्तुत किया.
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