मुनि तरुण सागर : मार्ग में 108 द्वार बने तो 1008 गुब्बारे छोडे़
इससे पूर्व हुए समारोह में मुनि तरुण सागर ने कहा कि जब-जब मेरे संघ में चातुर्मास की बात चलेगी तो उदयपुर का नाम पहले आएगा। आप भले ही मुझे भूल जाना लेकिन मेरे विचारों को जरूर याद रखना। उन्होंने युवाओं से कहा कि तीन और तीन छह होते हैं लेकिन आप ऐसा करना कि तीन और तीन तैंतीस हो जाएं। बुजुर्गों के लिए कहा कि आप बुढ़ापे को गुनगुनाते हुए बिताएं। माताओं से कहा कि आप बच्चों को अपने आंचल का दूध तो पिलाएं, साथ ही संस्कारों की घुट्टी भी पिलाएं। सास के लिए कहा कि आप अपनी बहू से ऐसी विनम्रता और प्रेम का व्यवहार करें कि वह अपने पीहर के फोन नम्बर भूल जाए। पति के लिए कहा कि आप अपनी पत्नी को ऐसा प्रेम दें कि वह भगवान से यही प्रार्थना करे कि मुझे अगले जन्म में भी ऐसा ही पति मिले।
समस्याएं तो रहेंगी : मुनिश्री ने कहा कि कोई इस भ्रम में नहीं रहे कि जीवन में आई समस्या खत्म होगी तभी यह काम करूंगा। जीवन में प्रतिकूलताएं तो बनी ही रहेंगी। एक समस्या खत्म हुई और दूसरी सामने खड़ी मिलेगी। इसलिए जो भी काम करना हैं प्रतिकूलता में ही करना शुरू कर दीजिये, क्योंकि जब तक अनुकूलता आएगी तब तक काफी देर हो जाएगी।
अन्ना का स्मरण : मुनिश्री ने अन्ना हजारे की देशभर में चलाई जा रही भ्रष्टाचार की मुहिम को याद करते हुए कहा-अन्ना ने खोला भ्रष्टाचार का पन्ना, भ्रष्टाचारियों को करने चौकन्ना। सत्य का रास्ता परमात्मा की ओर जाता है। आप दिमाग का कहा मत करना, आत्मा का कहा करना क्योंकि दिमाग में शैतान बसता है और आत्मा में परमात्मा का वास होता है। मुनिश्री ने अंत में सभी को हाथ जोडऩे के लिए कहा। उपस्थित सभी जनों ने अपने हाथ जोड़ लिए तो मुनिश्री ने पुन: दोहराया ‘हाथ जोड़ो पीछा छोड़ो’ और यह कहते ही वे सिंहासन से उतर गये। मुनिश्री के विदाई समारोह में उनके भक्तों की आंखें छलछला गईं।
विशिष्ट अतिथि के रूप में सांसद रघुवीर मीणा, विधायक गुलाबचंद कटारिया, जिला प्रमुख मधु मेहता, सभापति रजनी डांगी, नानालाल बया, ताराचंद जैन, धर्मनारायण जोशी आदि उपस्थित थे। इसी दौरान चातुर्मास में प्राप्त भाग्योदय कूपन का ड्रा निकाला गया जिसमें भाग्यशाली विजेता को मुनिश्री द्वारा पुरस्कृत किया गया।
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