शहर की राजनीति में भी नया भूचाल आने की आशंकाएं बढ़ गयी हैं. जहाँ एक ओर भाजपा में शहर विधायक कभी खुद की ही रही कथित शिष्या के बढते हुए कथित कद की आशंका से जूझ रहे हैं तो कॉंग्रेस में शहर अध्यक्ष अपनी मर्जी के विरुद्ध कथित घोषित कार्यकारिणी से. उधर रही सही कसर नगर परिषद सभापति के यहाँ पूरी हो गयी. खुद की ही पार्टी के अग्रिम संगठन के पूर्व में रहे पदाधिकारी ने अपने भूखंड रूपांतरण को लेकर सभापति पर आरोप लगा दिया कि सभापति के पति उन पर उक्त भूखंड बेचने के लिए दबाव डाल रहे हैं. उल्लेखनीय है कि उक्त भूखंड करोड़ों की मिल्कियत का है. पार्टियां अपने ही कार्यकर्ताओं से जूझ रही हैं.
उल्लेखनीय है कि गत दिनों शहर विधायक गुलाबचंद कटारिया ने कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण के नाम पर तीन दिन तक मीटिंग ली थी. उसमें कार्यकर्ताओं को जनता से जुड़े रहने ओर अपना प्रभाव बढाने का प्रशिक्षण दिया गया.
अटलजी के जन्मदिन पर दोनों गुटों ने अपना-अपना कार्यक्रम किया. अगर पार्टी सूत्रों की मानें तो निस्संदेह कटारिया समर्थक ट्रस्ट का कार्यक्रम ज्यादा सफल रहा. ओर वे एक बार फिर विरोधी को पटखनी देने में सफल रहे.
उधर कॉंग्रेस की शहर जिला कार्यकारिणी की कथित तौर पर घोषणा कर दी गयी है हालांकि शहर जिलाध्यक्ष नीलिमा सुखाडिया तो इससे नकारती हैं. उनका कहना है कि मेरे पास इस सम्बन्ध में प्रदेश कार्यकारिणी से कोई सूचना नहीं है। सिर्फ अख़बारों ओर टीवी पर ही मैंने भी सुना है। इसी सम्बन्ध में रविवार (8-01-12) को उनके निवास पर वरिष्ठ कार्यकर्ताओं की एक बैठक भी होने वाली है. जिसमें कथित रूप से इस घोषित कार्यकारिणी का पुरजोर विरोध किया जायेगा. बताया गया कि सुखाडिया की भेजे हुए नामों में से एक भी नाम कार्यकारिणी में शामिल नहीं है। बताया गया है कि उक्त कार्यकारिणी में कई पदाधिकारी तो देहात के शामिल किये गए हैं जो शहर की कार्यकारिणी के लिए बिलकुल उचित नहीं हैं.
अगर इस कथित कार्यकारिणी को सत्य मान भी लिया जाये तो आश्चर्य की बात यह कि इसमें उपाध्यक्ष पद ऐसे व्यक्ति को दिया गया है जो कॉंग्रेस के नाम पर अपने निवास से मीडिया सेंटर चलाते रहे हैं. उक्त मीडिया सेंटर में पड़े सामान को लेकर कई बार कौंग्रेस के कार्यकर्ताओं ने आपत्ति भी की थी कि उक्त सामान कॉंग्रेस का है तो इसे क्यूँ नहीं कौंग्रेस कार्यालय में रखा जाये? इनका नाम कार्यकारिणी में शामिल होने के मुद्दे पर पार्टी सूत्रों का मानना है कि ये बिलकुल बिना पैंदे के लोटे जैसे हैं, किसी भी तरफ गिर जाएँ, तो कोई आश्चर्य नहीं. कभी मैडम तो कभी भाई साब. तो कभी हाईकमान तक को राजी रखने के सारे तरीके इन्हें आते हैं.
फिलहाल कौंग्रेस में कई धुर हो गए हैं. एक ओर गिरिजा समर्थक हैं तो दूसरी ओर सी.पी. जोशी समर्थक. पूर्व अध्यक्ष को तो कुलपति बनाकर कोटा भेज दिया गया लेकिन उनकी कार्यकारिणी के पदाधिकारी बेचारे इधर-उधर घूम रहे हैं. उन्हें कोई पूछ भी नहीं रहा है. ये अपने आका की तलाश कर रहे हैं. इसी तरह कई समर्थक यह उम्मीद लगाकर चुप बैठे हैं कि यूआईटी के न्यासियों में अपना नंबर पक्का है. खैर, राजनीति है ही ऐसी चीज साहब, उम्मीद पर ही तो दुनिया कायम है. अभी नहीं तो अब, लेकिन उन्हें नहीं शायद नहीं मालूम कि अभी नहीं तो कभी नहीं.
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gulab ji ho ya sukhadiya pariwar inhone jo boya hai wahi kat rahe hai. wese bhi aage bhadne ke liye jo raste inhone liye the wo hi ab dusere le rahai hai. ye to ab keval apne astittiav to banaye ya u kanhe ke bachaye rakhane ke liye hai bas. wese bhi mewar ki rajneet me bjp ne jain wad bhadhakar punjiwad ko bhadhaya to congrees ne bharmin wad ko nakarne ke karan aapsi sangharsh ko badhakar adarshwad ko khoya hai.
शहर की क्या बात करते हो, राजनीति और राजनीतिज्ञों का तो भारत के किसी भी शहर या प्रांत में कुछ नही हो सकता।
आज किसी और पार्टी में, तो कल किसी और में। ऐसे दोगले चरित्र वालों पर तो क्या विश्वास किया जाए।
ये भ्रष्टाचार पर नहीं, भ्रष्टाचार इन पर हावी होता है।