udaipur. समता लेखक सम्मेलन का आरंभ कविता गांव के गवरी दल की गवरी नृत्य प्रस्तुति से हुआ। दीपक दीक्षित निर्देशित गवरी फिल्म का प्रदर्शन करते हुये उन्होंने कहा कि गवरी आदिवासियों की परम्परागत नृत्य अनुष्ठान है जो दक्षिणी राजस्थान को संस्कृति का अभिन्न अंग है। इसके बाद आयोजित संवाद में समाजवादी चिन्तक डॉ. कालीचरण यादव ने कहा कि आत्म सम्मोहन के बोझ तले दबा हुआ मध्यम वर्ग परम्परागत संस्कृति को भूलता हूआ बाजारू संस्कृति का पोषक बनता जा रहा है बाजारू संस्कृति का पोषण करते हुये सामाजिक संस्कृति को क्षति पहूँचाती है जिसका मानवीय सरोकारों से कोई सम्बन्ध नही है।
वे १२ वें राष्ट्रीय समता लेखक सम्मेलन में डॉ. मोहन सिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट तथा गांधी मावन कल्याण सोसायटी द्वारा आयोजित ‘‘ हाशिए पर जन संस्कृति और मुख्याधारा की बाजारू संस्कृति के बढ़ते प्रहार’’ विषयक संवाद को संबोधित कर रहे थे।
चिन्तक प्रो. नारायण कुमार ने कहा कि मध्यम वर्ग ने वैश्वीकरण के पश्चात् बाजार को ब्रह्यï और लाभ को मोक्ष समझ लिया है। लाभ पर आधारित सोच ने परम्परागत संस्कृति को बहुत विकृत किया है। रंगकर्मी दीपक जोशी ने कहा कि घर और परिवार के संस्कार बालक को बनाते थे किन्तु अब बालक का निर्माण बाजारू पाठशालाओं में होने से जन संस्कृति का ह्यïास हुआ है। चिन्तक सुरेश पडित ने कहा कि उदारीकरण के दौर मे वैश्विक गांव का जो मॉडयूल हिंस मार्ग पर आधारित है। जयपुर फेस्ट का हवाला देते हुए कहा कि आम आदमी कि जींदगी और संस्कृति पर मिडिया की भुमिका भी अनुकुल नही है। शिक्षा शास्त्री नन्द चतुवेंदी ने कहा कि गांधीवादी चिन्तन से दूर होने से राष्ट्र में जन संस्कृति की मुख्य धारा प्रभावित हुई है।
अध्यक्षता करते हुये वास्तुकार बी.एल. मंत्री ने कहा कि संस्कृति मानव का जीवनमूल्य है। घर के वातावरण में हुये बदलाव से बाहल संस्कृति हावी होती जा रही है। घर वास्तव में संस्कारों की पाठशाला है। स्वागत गांधी मानव कल्याण सोसायटी के निदेशक मदन नागदा ने किया। धन्यवाद ट्रस्ट सचिव नन्दकिशोर शर्मा ने ज्ञापित किया। संचालन मलय पानेरी ने किया।