शहर की राजनीति को जाने किसकी नजर लग गई है। हर कोई अपना कद बड़ा करने में लगा है। कांग्रेस में देखें तो जिलाध्यक्ष अपने ही पदाधिकारियों से जूझ रही हैं वहीं भाजपा अपने ही पूर्व जिलाध्यक्ष से लोहा ले रही है।
ताजा किस्सा भाजपा के पूर्व जिलाध्यंक्ष और भाजयुमो जिलाध्यक्ष का है। दोनों के बीच पदाधिकारियों की नियुक्ति का प्रसंग चल ही रहा था कि भाजयुमो जिलाध्यसक्ष ने भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष के लिए कहा कि भगवान उन्हें सद्बुद्धि दे। इससे बौखलाए भाजपा के पूर्व जिलाध्यजक्ष भाजयुमो जिलाध्यक्ष पर शनिवार को पार्टी के संस्थापक पं. दीनदयाल उपाध्याय जयंती पर हुए एक कार्यक्रम में पिल पडे़। कहा कि अगर उन्होंने सदबुद्धि देने वाला ऐसा कोई इंस्टीट्यूशन खोल रखा हो तो वे भी उसमें प्रवेश ले लें!
उधर कांग्रेस के विवाद को शांत करने के लिए गत दिनों मुख्यमंत्री ने सांसद को नियुक्त किया था कि मामले को निपटाएं लेकिन शायद सांसद महोदय की कोई सुनता ही नहीं इसीलिए जन अभाव निराकरण आयोग के अध्यक्ष और जिला प्रभारी के आगमन पर कांग्रेस कार्यकारिणी का पूरा नाम आ गया लेकिन जिलाध्यक्ष का कहीं कोई नाम तक नहीं। मीडिया सेंटर चलाने वाले भैया का आलम भी यह कि जिला प्रभारी और आयोग के अध्यक्ष के आगे पीछे घूमते रहे लेकिन जिलाध्यक्ष साहिबा को याद तक नहीं किया। और तो और मीडिया सेंटर के प्रेस नोट में जिलाध्यक्ष का नाम तक नहीं लिखा। यानी जब जरूरत महसूस हो तो जिलाध्यक्ष के पीछे दीदी.. दीदी.. और जब बडे़ नेता आ जाएं तो ये दीदी भी साइड में ….।
अपनी पत्रिका के नाम पर बडे़ साहब से भवन का शिलान्यास भी करवा लिया। यह किसी ने नहीं सोचा कि कांग्रेस के इन पदाधिकारी भैया ने भाजपा के राज में अपनी पत्रिका के लिए जमीन कैसे आवंटित करा ली। मतलब सभी को राजी रखने में इनका कोई सानी नहीं… अरे कुछ सीखो नौजवान युवा कार्यकर्ताओं… सिर्फ पीछे खडे़ रहकर भी कितना कुछ किया जा सकता है… उन सीखने वालों के लिए ये आदर्श हैं।