udaipur. भारत सरकार की जल पर जारी राष्ट्रीय जल नीति २०१२ ड्राफ्ट पर झील संरक्षण समिति तथा डॉ. मोहनसिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा गुरूवार को सेमिनार आयोजित हुई। मुख्य अतिथि पूर्व विदेश सचिव झील संरक्षण समिति के अध्यक्ष जगत सिंह मेहता ने कहा कि जल संसाधनों के प्रबन्धन में नागरिकों की प्रभावी सहभागिता आवश्यक है।
केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा समुदाय की भागीदारी को स्वीकार करना स्वागत योग्य है। अध्यक्षता हिन्दूस्तान जिंक के पूर्व निदेशक एच.वी. पालीवाल ने की।
जल नीति के प्रावधानों पर प्रसार डालते हुए विद्या भवन, पोलिटेक्निक के प्राचार्य अनिल मेहता ने कहा कि इसमेन्ट एक्टर को समाप्त करना भूजल के अति दोहन को नियंत्रित कर देगा। मेहता ने बताया कि एक निश्चित सीमा, जिसमें मानव की मूलभूत आवश्यकता तथा प्रकृति का संरक्षण सम्मिलित है उससे परे पानी को आर्थिक मूल्य के रूप से देखने का सुझाव भी नीति में है लेकिन समग्र जल संसाधन प्रबन्धन केी अवधारणा के अनुरूप देश, राज्य शहर व गांव के पानी को संरक्षण प्रबन्ध की रीति—नीति व व्यवस्था क्या होगी, यह भी जल नीति में स्पष्ट होना चाहिए।
पर्यावरण विद डॉ. एस. बी. लाल तथा डॉ. अरूण जकारिया ने कहा कि जल की कितनी उपलब्धता है, इसकी स्पष्टता व सही आंकड़ों के बिना प्रबन्धन ठीक प्रकार से नही हो सकता है।
गांधी मानव कल्याण समिति के निदेशक मदन नागदा तथा ट्रस्ट सचिव नन्द किशोर शर्मा ने कहा नीति में जल के नियत्रंण व प्रबन्धन में पंचायतों व समुदायों की सहभागिता की व्यवस्था व प्रणाली को सुपरिभाषित करना होगा।
पूर्व पार्षद अब्दूल अजीज खान तथा चांदपोल नागरिक समिति के तेज शंकर पालीवाल ने प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा अधिनियम की पृष्ठभूमि में कम पानी में अधिक खाद्य उत्पादन के स्पष्ट तौर तरीकों को जल नीति में स्पष्ट प्रावधान होने चाहिए।
मत्स्य विभाग के पूर्व निदेशक इस्माइल अली दुर्गा तथा शिक्षाविद प्रो. अरूण चतुर्वेदी ने प्रस्तावित नीति की निरन्तर समीक्षा का सुझाव दिया।
अध्यक्षीय उद्बोधन में एच.वी. पाली वाल ने कहा कि प्रस्तावित नीति के साथ साथ इसकी क्रियान्वयन नीति भी बननी चाहिए ताकि नीति एक्शनेबल बन सके।