क्रान्तिकारी परिवर्तन के लिये सघर्ष व सृजन जरूरी
udaipur. क्रान्तिकारी परिवर्तन के लिये संघर्ष तथा नवसृजन दोनों आवश्यक है। देश की शिक्षा के नवनिर्माण में यही रणनीति होनी चाहिये। शिक्षा में सार्वजनिक निवेश घट रहा है, आज भी हमारे देश में सफल घरेलू उत्पाद का मात्र साढ़े तीन प्रतिशत शिक्षा के लिये मिलता है। ये विचार जाने माने शिक्षाविद् प्रो. अनिल सदगोपाल ने डॉ. मोहनसिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट, विद्याभवन तथा सेवामन्दिर द्वारा साझे में आयोजित, शिक्षा का अधिकार और जन विकल्प की लड़ाई विषयक व्याख्यान में व्यक्त किये।
उन्होंने वर्तमान में शिक्षा के व्यापारीकरण की दिशा में होने वाले बदलावों को घातक बताते हुए कहा कि वह दिन दूर नही जब भारत के स्वतत्रंता का इतिहास, महापुरूषों, क्रान्तिकारी समता मूलक संस्कृति एवं नागरिकता को बाजार नये रूप में परिभाषित करें। सरकारें शिक्षा को बिकाऊ बनाने पर तुली हैं। बेलगाम बढ़ती फीसों, बढ़ता मुनाफा तथा असम्मानजनक वेतन व अप्रशिक्षित व अल्प प्रशिक्षित अध्यापकों की व्यवस्था से पूंजीपतियों को अमीर बनाने का दुष्च्क्र चल रहा है। पीपीपी के नाम पर सरकार सार्वजनिक पूंजी को भी इन ताकतों को देने की व्यवस्था कर रही है। शिक्षा का अधिकार कानून भी अधुरा झुनझुना है। इसका असली ध्येय बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के लिये मजदूर अथवा शिक्षित गुलाम बनाना है। उन्होने आश्चर्य किया कि मोटर गैराज के ऊपर दो कमरों में इंजीनियरिंग, बीएड और नर्सिंग प्रशिक्षण जैसे संस्थान चलते है।
विद्याभवन के अध्यक्ष रियाज तहसीन ने स्वागत भाषण देते हुये कहा कि समता मूलक शिक्षा के बिना समता मूलक समाज का निर्माण संभव नही है। व्याख्यान पश्चात् प्रश्नोत्तआर कार्यक्रम में, सेवामन्दिर की मुख्य संचालक प्रियंका सिंह, शिक्षाविद् ए. बी. फाटक, प्रो.एस.बी.लाल., समाजिक चिंतक हेमराज भाटी, सुमन आदि ने प्रश्न पूछे।
धन्यवाद देते हुये ट्रस्ट अध्यक्ष विजय मेहता ने शिक्षा की चुनौतियों को वर्तमान दौर की महती चुनौती बतलाया।
संयोजन करते हुयें ट्रस्ट सचिव नन्दकिशोर शर्मा ने कहा कि उदयपुर में संवाद की बड़ी पुरानी परम्परा है तथा यहां शिक्षा की बेहतरी के लिये बहुत चिन्तित है।