udaipur. ग्रामीण क्षेत्रों में भूजल पुनर्भरण की समस्याओं से जूझ रहे किसानों एवं जल ग्रहण क्षेत्र प्रबंध कार्यों में जुटी संस्थाओं को भू एवं जल संरक्षण तथा प्रबंधन की नवीनतम तकनीकों की जानकारी दी जाए तो कम लागत में प्रभावी कार्य किए जा सकते हैं। ये विचार CTAE के अधिष्ठाता डॉ. नरेन्द्र एस. राठौड़ ने सीटीएई ने विजनवास ग्राम में कृषि में जल उत्पादकता बढ़ाने के लिए लगाए गये कृषक प्रशिक्षण शिविर के समापन समारोह में मंगलवार को बतौर मुख्य अतिथि व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में सामुदायिक स्तर पर जल संग्रहण नाड़ी एवं कम लागत के सूखे पत्थरों का तालाब बनाकर वर्षा जल का संग्रहण किया जाना चाहिए। जिससे क्षेत्र में भू जल के गिरते स्तर को प्रभावी रूप से रोका जा सकता है तथा संग्रहित जल का समुचित उपयोग कर उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है। भू एवं जल अभियांत्रिकी विभाग के सह—प्राध्यापक डॉ. एच.के. मित्तल ने बताया कि राजस्थान में 87 प्रतिशत पानी का उपयोग कृषि में हो रहा है। अगर किसान सिंचाई के लिए धोरे बनाकर पानी ले जाने के बजाय पाइप से पानी ले जायें तो 50 प्रतिशत पानी की बचत हो सकती है।
प्रशिक्षण समन्वयक डॉ. पी. के. सिंह ने किसानों को मृदा एवं जल संरक्षण की परम्परागत एवं नवोन्मुखी तकनीकियों की जानकारी दी तथा किसानों को जलग्रहण क्षेत्र के आधार पर वर्षा जल के संरक्षण के लिए प्रेरित किया। डॉ. के. के. यादव ने मिट्टी की उत्पादकता बढ़ाने तथा पानी की गुणवत्ता सुधारने के लिए किसानों को महत्वपूर्ण जानकारी से लाभान्वित किया। इस प्रशिक्षण में किसानों को आजीविका बढ़ाने हेतु कृषि में जल उत्पादकता बढ़ाने के लिए वर्षा जल संरक्षण, भूजल पुनर्भरण, सिंचित क्षेत्र प्रबंधन विषयक विभिन्न तकनीकों की जानकारी से लाभान्वित किया जाएगा।