इच्छाएं बढऩे से होता हैं संयुक्त परिवारों का विखंडन
सात दिवसीय श्रीमद्भावगत कथा का समापन
उदयपुर। इच्छाओं का कोई अंत नहीं लेकिन इच्छाओं की अति कभी-कभी जीवन में ऐसा नुकसान दे जाती है जिसकी भरपाई असंभव होती है। इच्छाओं के कारण ही संयुक्त परिवारों का खडंन होता आया है और यदि इस पर अंकुश नहीं लगा तो ऐसा आगे भी होता रहेगा। वे के. जी. गट्टानी फाउण्डेशन द्वारा ओरियंटल पैलेस के कृष्णधाम में आयोजित सात दिवसीय श्रीमद्भगवत कथा के अंतिम दिन कथा वाचन करते हुए उक्त बात कही।
उन्होंने कहा कि भगवान के प्रति अनुराग होगा तभी उनके प्रति सहजता से ध्यान हो पायेगा। भगवान का ध्यान करना आसान नहीं है। भगवान को गोपियों के साथ-साथ कंस ने भी प्रीत की लेकिन जो प्रीत गोपियों में थी वह कंस में नहीं। भगवान ने बहुत सादगीपूर्वक विवाह किया क्योंकि संसार के लिए विवाह जीवन लाभ की तरह है किन्तु भगवान के लिए विवाह स्वभाव है। भगवान के लिए विवाह भोग नहीं है। शरणागति का भाव मुख्य है।
उन्होंने कहा कि कृष्ण ने 16 हजार 108 विवाह किए। ये सभी 16 हजार 108 कन्याएं त्रेता युग के वो ऋषि थे जो भगवान राम व सीता के बीच अटूट प्यार को देखकर उन्हें भी पति के रूप में चाहा। उस समय भगवान राम ने उन्हें इस जन्म में नहीं वरन् अगले जन्म में उनहें अपनी पत्नियां बनाने का वादा किया और कृष्ण युग में उन्होने ऐसा करके दिखाया। राधाकृष्ण महाराज ने कहा कि कृष्ण युग में भारत गौ माता से परिपूर्ण था तभी तो कृष्ण गोकुल में प्रतिदिन 13 हजार 84 गांयों का दान करते थे। भूमि उपयोग का अधिकार उसी को है जो गो माता की पूजा व सेवा करे।
महाराज को भावभीनी विदाई
संत राधाकृष्ण महाराज को विदाई के दौरान महिलाओं के साथ बच्चों की भी अश्रुधारा बह निकली। कृष्ण नाम की रे गोपाल नाम की, मैंने माला बनाई रे कृष्ण नाम की. . जिस पर पूरा पांडाल झूम उठा। कृष्ण-सुदामा मिलन की कथा वर्णन में भक्तों की अश्रुधारा बह निकली।
पाण्डाल के समस्त भक्त, गट्टानी परिवार, साधु-संतों ने व्यासपीठ की पूजा की। गट्टानी परिवार ने यज्ञ किया। महाराज ने कहा कि व्यसन छोडक़र सिर्फ हरि नाम का स्मरण करो। फाउण्डेशन की ऋद्धा गट्टानी ने बताया कि आज अंतिम दिन कथा में समाजसेवी जोधराज लोढ़ा, अजमेर के सत्यनारायण झंवर, अहमदाबाद के शरद गट्टानी, अरूण माहेश्वरी उपस्थित थे। आरंभ में श्रद्धा गट्टानी ने स्वागत गीत प्रस्तुत किया।