हरियाली अमावस्या पर लगा मेला
बहुत कमी खली बारिश की
उदयपुर। शहर सूना रहा, सड़कें खाली रहीं.. आज हर सड़क मानों फतहसागर को ही मिल रही थीं। मौका था हरियाली अमावस्या के मौके पर फतहसागर व सहेलियों की बाड़ी में लगे मेले का।
हालांकि बारिश नहीं होने की निराशा हर मेलार्थी के चेहरे पर दिखी लेकिन फिर भी मेले का आनंद लेने में कोई पीछे नहीं रहा। हालांकि शहरवासियों का रूझान अब शनै: शनै: वर्ष दर प्रतिवर्ष कम होता जा रहा है। लोगों से बात करने पर सामने आया कि महंगाई इतनी हो गई है कि मेले का क्रेज ही नहीं रहा है।
हर वर्ष भर में कई बार आयोजक मेले सा माहौल पैदा कर देते हैं कि मेले में जाने का मन ही नहीं करता वहीं इसके विपरीत ऐसे युवा भी थे जिनका कहना था कि मेले में जाने का तो साल भर से इंतजार करते हैं। चारों ओर शोर, हर कोई अलमस्तर अपने ही अंदाज में मेले में घूमता है, खाता-पीता है, डोलर में झूलता है। ये सब अब छोटे शहरों में ही रह गए हैं। जैसे जैसे महानगर की ओर बढेंगे, वैसे वैसे यह संस्कृति भी धूमिल होती जाएगी। इसलिए जब तक है, इसका आनंद लो।
चाहे वह फतहसागर की पाल हो या सहेलियों की बाड़ी में लगे फव्वा़रे, हर कोई पानी की नजाकत महसूस करना चाहता था। सभी को बारिश का इंतजार है। फतहसागर ओवरफ्लो की ओर लोगों की नजरें ताकती रही.. कि कब ओवरफ्लो होगा…। आइसक्रीम, पिज्जा , गोलगप्पे , आलू की टिकिया, गर्मागर्म पकौडे़, आलूबडे़, कचौरी, जलेबी, इमरती जैसे खाने-पीने के स्टॉएल्सं पर तो भीड़ रही ही, बच्चेर भी अपने खिलौने लेने के लिए मचल उठे। श्रृंगार प्रसाधन सामग्री के स्टॉोल्स पर हर बार की तरह महिलाओं की भीड़ ही रही। कोई चूडि़यां तो कोई कांच के कडे़ देख रही थीं।
ग्रामीण युवाओं के मुंह से पुंपाडि़यों का शोर तो कहीं बांसुरी की बेसुरी तानें हर किसी को आकर्षित कर रही थीं। शुक्रवार को सिर्फ महिलाओं के लिए मेला आयोजन होगा।