कृत्रिम सम्मेद शिखर पर्वत पर 23 किलो का निर्वाण लड्डू चढ़ाया, हजारों श्रद्धालुओं का उमड़ा रैला, जयकारों से गूंजा पूरा सेक्टर 11
उदयपुर। तपती धूप, माथे से टपकती पसीने की बून्दें, हजारों की भीड़ में पांव धरने की जगह तलाशते और भीड़ में धक्के खाते श्रद्धालुओं के उत्साह में रत्तीभर भी कमी नहीं थी। आचार्य सुकुमालनदी महाराज के सानिध्य में प्रात: भगवान पार्श्वनाथ के जयकारे और धार्मिक भजनों और संगीत की मधुर स्वरलहरियों से पूरे चार घंटे तक गूंजता रहा सेक्टर 11 और आदिनाथ भवन के पास बना सम्मेद शिखर पर्वत।
उदयपुर के इतिहास में पहली बार इतना विशाल सम्मेद शिखर पर्वत का निर्माण हुआ जिस पर 24 टोंक व विशाल जल मन्दिर स्थापित किया गया है। बुधवार को इस प्रतीकात्मक कृत्रिम सम्मेद शिखर पर भव्य धार्मिक आयोजन के साथ हजारों श्रद्धालुओं की साक्षी में 23 किलो का निर्वाण लड्डू चढ़ाया गया। इसके अलावा 1-1 किलो के 23 लड्डू और अन्य 3000 लड््डू विभिन्न श्रावकों द्वारा चढ़ाये गये।
शोभा यात्रा पहुंची सम्मेद शिखर- इस कार्यक्रम से पूर्व सेक्टर 11 स्थित आदिनाथ भवन से विशाल शोभा यात्रा निकाली गई जो विभिन्न मार्गों से होती हुई सम्मेद शिखर पर्वत पहुंची। शोभा यात्रा में उदयपुर शहर के साथ ही देश के विभिन्न भागों से आये हजारों श्रद्धालू शामिल हुए। शोभा यात्रा के दौरान भगवान पाश्र्वनाथ के जयकारे और संगीत की मधुर स्वर लहरियों से वातावरण धर्ममयी हो गया था।
सम्मेद शिखर पर्वत का महत्व-इस अवसर पर आचार्य सुकुमालनन्दी महाराज ने बताया कि सम्मेद शिखर पर्वत झारखण्ड में स्थित है। यह 20 तीर्थंकरों की निर्वाण स्थली है। यह जैन धर्म के लोगों के लिए विशेष धार्मिक स्थान हैं और देश ही नहीं विदेशों से भी श्रदलु वहां दर्शन करने जाते हैं।
मात्र दो दिन में बना सम्मेद शिखर-आचार्यश्री ने बताया कि सेक्टर 11 स्थित आदिनाथ भवन के पास इस विशाल सम्मेद शिखर पर्वत का निर्माण मात्र दो दिनों में ही किया गया। इसके लिए कारीगरों व समाज के लोगों ने दिनरात मेहनत करके प्रतीकात्मक सम्मेद शिखर पर्वत को ऐसा बना दिया जैसे कि हूबहू हो।
समता बिना मुक्ति नहीं: आचार्य सुकुमाल नन्दी
श्री आदिनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर सेक्टर 11 में आयोजित प्रात:कालीन चातुर्मासिक धर्मसभा के दौरान बुधवार को आचार्य सुकुमालनन्दी ने कहा कि जीवन मे मनुष्य को समता के बिना मुक्ति नहीं मिल सकती। अगर मनुष्य वास्तव में मुक्ति की ओर अग्रसर होना चाहते हैं तो उसे समता भाव अपनाना ही होगा।
आचार्यश्री ने कहा कि भगवान पाश्वनार्थ में समता कूट-कूट कर भरी थी, वह समता के धनी थे। भगवान ने 10 भवों तक समता और सहनशीलता दिखाई और दुनिया में वह समता की मूरत के रूप में प्रतिष्ठापित हो गये। आज हर मानव मात्र को राग, द्वेष और वैर को समाप्त कर समता व क्षमा के गण्ुा को धारण करना चाहिये ताकि मुक्ति का मार्ग प्रशस्त हो सके।
आचार्यश्री के गृहस्थ अवस्था की मां भी आईं- बुधवार को सेक्टर 11 में आयोजित सम्मेद शिखर पर्वत पर 23 किलो का निर्वाण लड्डू चढ़ाने के दौरान आचार्य सुकुमालनन्दी के गृहस्थी अवस्था की माताश्री सरोज देवी भी दर्शन करने आईं। इस दौरान श्रद्धालुओं ने उनका भावभीना स्वागत किया। सभी की आंखें नम हो गईं। आचार्यश्री के माता- पिता दोनों सप्तम प्रतिमाधारी हैं।