श्रोताओं ने की संगीत की कालजयी जीवनी यात्रा
udaipur. रोटरी क्लब उदयपुर की ओर से आज कृषि महाविद्यालय के नूतन सभागार में आयोजित ‘सुन मेरे बंधु रे..’ नामक कार्यक्रम के जरिये संगीत के पितामह सचिनदेव बर्मन द्वारा हिन्दी व गैर हिन्दी फिल्म जगत को दिये गये भारतीय संगीत के उस शीर्ष दौर का आनन्द लिया।
कार्यक्रम की कॉमेन्ट्री करते हुए टीवी.एंव फिल्म कलाकार अशोक बांठिया व रंगकर्मी गुरमीतसिंह पुरी उर्फ रोमी ने बताया कि 1 अक्टूबर 1906 को जन्मे सचिनदेव बर्मन की संगीत यात्रा कालजयी रही। उन्होनें अपनी इस संगीतमय जीवन यात्रा में हर कलाकार,गायककार, संगीतकार को न केवल सहयेाग दिया वरन् उन्हें साथ ले कर चले। उनके साथ काम करके उन्होनें भारतीय संगीत को उस मुकाम पर पहुंचाया जो अन्य देशों के लिये प्रेरणास्पद बना। सचिन दादा के नाम से विख्यात सचिनदेव बर्मन की संगीत यात्रा का सफर बंाग्ला फिल्मों से हुआ। बाल्यकाल से ही संगीत उनकी रंगो मेंं बसा हुआ था। पाठशाला से आने के बाद वे संगीत सुना करते थे और पुन: पाठशाला जाकर वे अपने मित्रों को संगीत सुनाते थे। कृष्णचन्द्र डे के शिष्य बने दादा को टेनिस से बहुत प्रेम था लेकिन अपने गुरू से मिली सीख ने उनका जीवन ही बदल दिया।
1924 में सचिन दा का प्रथम गाना कलकत्ता ऑल इंडिया रेडियो पर रिकॉर्ड हुआ। 1947 से पूर्व उन्होनें 95 बंगला व 25 हिन्दी व गैर हिन्दी फिल्मों के लिये संगीत दिया व गीत गाये। 1935 में दादा नेे इलाहाबाद संगीत सम्मेलन में भाग लिया और उन्हें श्रेष्ठ संगीत के लिये सम्मानित हुए। 1941 में आयी ताजमहल फिल्म में गाये गीतों ने दादा को एक नयी पहिचान दी। 1946 में दादा ने बतौर संगीतकार हिन्दी फिल्म शिकारी में कदम रखा लेकिन वह फिल्म सफल नहीं हुई। 1947 में आयी फिल्म दो भाई के गीत ‘मेरा सुन्दर सपना बीत गया मैं सब कुछ हार गयी..’का संगीत बहुत प्रसिद्ध हुआ। उनकी यह सोच थी कि गीत के ऐसे बोल होने चाहिये जो जनता की जुंबा पर आसानी से चढे। फिल्म ‘मशाल’ की संगीत रचना के समय उनका बम्बई से मोह भ्ंाग होने लगा लेकिन 1950 में रिलीज हुई इस फिल्म ने दादा के संगीत को मन्ना डे के मधुर आवाज में गाये गीतों ने काफी ख्याति दिलाई।
सचिन दा ने जहां गुरूदत्त की फिल्म प्यासा में गंभीर गानों को संगीत दिया वहीं, किशोर कुमार की फिल्म चलती का नाम गाड़ी में मस्ती भरे नगमों को संगीत देकर अपनी एक नई पहिचान बनायी। सचिन दा की फिल्मों हाऊस नं.44,मेरे घर के सामने,प्रेम पुजारी ने नई बुलंदिया छुई। उनके संगीतबद्ध गीतों ‘सुन आज की रात पिया मान लो..’, ‘आंखो मे ंचाबी,यू पहा बादल,बादल में क्या जी, खुशी का आंचल..’, ‘दुखी मन मेरे कहना..’, ‘हम है राही प्यार के , हमसे कुछ न बोलिए..’, ‘जाएं तो जाएं कहंा..’, ‘मुझे तुमसे मुहब्ब्त है,मुहब्बत की आदत है..’, ‘फूलों के रंग में,रंग की कलम से..’, ‘तकदीर से बिगड़ी तदबीर मिला ले..’ को नई पहिचान दी।
उनके द्वारा संगीतबद्ध 1954 में आयी टेक्सी ड्राईवर नामक फिल्म को प्रथम फिल्म फेयर पुरूस्कार मिला। फिल्म काला बाजार फिल्म को संगीत ने नयी पहिचान दिलायी। सचिन दा ने देवानंद,विजय आनन्द व चेतन आनन्द तीनों भाईयों के साथ खूब काम किया। इनकी फिल्मों में सचिन दा के संगीत व गीतों ने फिल्म जगत को बुलन्दियों तक पहुंचाया। फिल्म गाईड ने देवानन्द को ऊचाईयों तक पहुंचाया। आज भी सचिन दा के गाये गीत व उनके संगीतबद्ध गीतों ‘गाता रहे मेरा दिल..’ ‘कांटो को खींच के ये आंचल..’, ‘आज फिर जीने की तमन्ना है..’, ‘तेरे मेरे सपने एक रंग है..’, ‘पिया तो से नैना लागे रे..’,लोगों की जुंबा पर चढक़े बोलते है। 65 वर्ष की उम्र में उनकी संगीतबद्ध फिल्म आराधना ने राजेश खन्ना के सुपर स्टार बनाया। 31 अक्टूबर 1975 को इस दुनिया से विदा लेने से पूर्व वे अपने पुत्र आर.डी.बर्मन को इस फिल्म जगत में संगीत को आगे बढ़ाने के लिए छोड़ गये। उनका अंतिम गीत ‘बड़ी सूनी-सूनी..’रहा।
इस अवसर पर क्लब अध्यक्ष सुशील बांठिया ने अतिथियों का स्वागत किया व कार्यक्रम के सन्दर्भ में जानकारी दी। सचिव ओ.पी. सहलोत, पूर्व प्रान्तपाल यशवन्तसिंह कोठारी,निर्मल सिंघवी,सहायक प्रातंपाल रमेश चौधरी,रोटरी सर्विस ट्रस्ट के चेयरमेन महेन्द्र टाया, क्लब की क्लचरल कमेटी के चेयरमेन डी. पी. धाकड़ व को-चेयरमेन राजेनद्र कुमार सुखवाल ने अतिथियों अशोक बंाठिया, गुरमिन्दर ङ्क्षसह पुरी व रंगकर्मी महेश नायक का माल्यार्पण कर व स्मृतिचिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया।