आरोप-प्रत्यारोप में ही बिगाड़ा समय
झील हस्तांतरण के प्रस्ताव को सिरे से नकारा
आयुक्त को भी सुनाई खरी-खोटी, प्रतिपक्ष ने फिर कहा- बोर्ड में है भ्रष्टाचार
उदयपुर। नगर परिषद बोर्ड की बुधवार को हुई बैठक में सभी सदस्यों ने अपनी हंगामे और आरोप- प्रत्यारोपों की परम्परा को बखूबी निभाया और हर बार की तरह इस बार भी आरोप-प्रत्यारोप और हंगामे में ही समय बिगाड़ा।
बैठक की खास बात यह रही कि प्रतिपक्ष पूरे जोश में था और एकजुट दिखाई दिया लेकिन सत्ता पक्ष के सदस्य कुछ ठण्डे दिखे और प्रतिपक्ष के हंगामे और आरोपों का न तो ज्यादा विरोध किया और ना ही हंगामा।
बैठक प्रारम्भ करने से पूर्व सभापति रजनी डांगी के आव्हान पर गत दिनों दिवंगत हुए कांग्रेसी पार्षद माणक कुमावत और हाल ही में सीमा पर शहीद हुए तरूण गुप्ता को दो मिनिट का मौन रख कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।
इसके बाद सभापति औपचारिक तौर पर बैठक प्रारम्भ की और सभी सदस्यों से गत बैठक की पुष्टि का प्रस्ताव रखा। सत्ता पक्ष ने तो स्वीकृति दे दी लेकिन प्रतिपक्ष ने इसे अस्वीकार करते हुए कई सवाल खड़े किये और सभापति के सामने एक के बाद एक सवालों की झड़ी के बीच राजेश सिंघवी ने पूछा कि गत बैठक की पुष्टि कैसे हो सकती है जबकि पिछली बैठक के एक भी निर्णय की पालना ही नहीं हुई। प्रतिपक्ष नेता दिनेश श्रीमाली ने तय समय पर बोर्ड बैठक नहीं बुलाने पर सभापति को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि साढ़े पांच महीने बाद बैठक बुलाने के पीछे सभापति की हठधर्मिता और उनकी मनमानी बताया।
प्रतिपक्ष के सभी सदस्यों ने श्रीमाली की बात से सहमति जताते हुए एकजुट हो गए और सीधे सभापति के आसन के पास पहुंच गये और उन पर आरोपों की बौछारें कर दी। काफी हंगामे और हो-हल्ले के बाद सभापति ने सफाई दी कि हमारे पार्षद माणक कुमावत के निधन और चुनाव के कारण आचार संहिता लग जाने से बैठक तय समय पर करना सम्भव नहीं हो पाया। फिर भी प्रतिपक्ष सन्तुष्ट नहीं हुआ और गत बैठक की पुष्टि नहीं करने पर अड़ गया और सदन में मुद्दा उछाला कि गत बैठक में अतिक्रमणों पर ठोस कार्यवाही करने, अवैध निर्माण पर शक्ति, शहर को होर्डिंगलैस सिटी बनाने का प्रस्ताव लिया गया था लेकिन न तो अतिक्रमण हटे हैं, न अवैध निर्माण रुके और ना ही होर्डिंग्स लैस सिटी पर काम हुआ है। अभी तक तो यह भी तय नहीं हो पाया है कि कितने अवैध निर्माण हैं, कितने अतिक्रमण हैं और कितने अवैध होर्डिंग्स हैं, इसकी सूची भी सदस्यों के पास नहीं है। लेकिन सभापति प्रतिप्रक्ष के आरोपों का कोई सन्तोषप्रद जवाब नहीं दे पाईं लेकिन उनका साथ सत्ता पक्ष के सदस्यों ने बाराबर दिया और उन्हें एजेण्डे के अनुरूप बैठक सुचारू करने की अपील की।
इसके बाद एक के बाद धड़ाधड़ प्रस्ताव पास होते रहे। न तो नाराज प्रतिपक्ष उन प्रस्तावों पर चर्चा करने को तैयार था और ना ही सत्ता पक्ष को कोई चर्चा की गरज थी। उल्टे प्रतिपक्ष हर प्रस्ताव पर पास कर दो, पास कर दो के ताने देता रहा और सत्ता पक्ष उन्हें धड़ाधड़ पास करता रहा।
बैठक में प्रतिपक्ष के अजय पोरवाल, मोहम्मद अयूब, प्रतिभा राजोरा, मनीष श्रीमाली जैसे पार्षदों ने रिटायर्ड कर्मचारियों की पीएफ की राशि, होर्डिंग्स, अवैध निर्माण और अतिक्रमण जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे उठाते रहे लेकिन सभापति ने कभी एजेण्डे के अनुरूप बैठक को चलाने तो कभी कानून का हवाला देते हुए प्रतिपक्ष को कोई खास तवज्जो नहीं दी। यह सारा घटनाक्रम शहर विधायक गुलाबचन्द कटारिया और शहर ग्रामीण विधायक सज्जन कटारा की मौजूदगी में हुआ। इस दौरान श्रीमती कटारा तो बिल्कुल ही मूक बन कर आसन पर बैठी रहीं, हालांकि कटारिया ने तो कुछ समय के लिए सभापति का साथ भी दिया और उनकी ओर से सफाई भी पेश की। इस दौरान जब-जब भी सभापति प्रतिपक्ष के सदस्यों से घिरीं, उन्हें इससे निकलने के गुर भी बताये।
सभापति और आयुक्त की हुई फजीती
सत्ता पक्ष खासकर सभापति और आयुक्त की उस समय सारे सदन में फजीती हुई जब उन्होंने झील हस्तान्तरण मुद्दे का प्रस्ताव सदन में रखा। हालांकि वह प्रस्ताव था तो आयुक्त सत्यनारायण आचार्य का लेकिन उसे सदन में रखा सभापति डांगी ने। प्रस्ताव में तीन बिन्दू थे जिनमें झीलों का मालिकाना हक जल संसाधन विभाग (एरिगेशन) के पास रहेगा, यूआईटी और नगर परिषद पर इनके रखरखाव की जिम्मेदारी रहेगी। लेकिन झीलों का रखरखाव और साफ-सफाई का काम परिषद के जिम्मे रहेगा, यूआईटी पर क्या जिम्मेदारी रहेगी यह स्पष्ट नहीं। सबसे बड़ी बात यह थी कि झीलों से जो भी आय होगी उस पर परिषद का कोई अधिकार नहीं होगा, परिषद सिर्फ खर्चा करेगी। इस प्रस्ताव पर सुझाव मांगे तो सबसे पहले सत्ता पक्ष की पार्षद वन्दना पोरवाल ने इसका विरोध किया और कहा कि झीलों पर जब परिषद का कोई अधिकार नहीं रहेगा, सिर्फ साफ-सफाई और रख-रखाव ही करना है तो ऐसे में परिषद को फायदा क्या। एरीगेशन और यूआईटी क्या करेगी, इसलिए इस प्रस्ताव को खारिज किया जाए। उनके सुझाव का सत्ता पक्ष के ही पारस सिंघवी, उप सभापति महेन्द्रसिंह शेखावत के साथ ही प्रतिपक्ष ने भी समर्थन किया और प्रस्ताव को खारिज करने की मांग की। पारस सिंघवी ने तो आयुक्त से ही सवाल किया कि आपने इस प्रस्ताव को पढऩे के बाद भी सदन में कैसे पेश करवा दिया। सम्भागीय आयुक्त और कलक्टर की ओर से बार-बार झीलों के रख-रखाव और साफ-सफाई के लिए आने वाले दबाव पर सदस्यों ने टिप्पणी की कि परिषद कलक्टर और सम्भागीय आयुक्त की गुलाम नहीं है और ना ही वो हमें गुलाम समझने की भूल करें क्योंकि हम चुने हुए जन प्रतिनिधि हैं। इसी तरह बीपीएल के राशन कार्ड बनाने में हो रही परेशानी पर भी पक्ष-प्रतिपक्ष में जमकर नोकझोंक हुई।