udaipur. रक्षाबंधन मात्र भाई-बहिन का ही पर्व नहीं है। देव-शास्त्र-गुरु के ऊपर कोई आपत्ति आए तो उनकी रक्षा करने की शिक्षा देता है यह पर्व। एक छोटे से धागे का बहुत बड़ा महत्त्व है जब वह कलाई में बांधा जाता है तो उसका महत्त्व ओर भी बढ़ जाता है।
यही एक ऐसा पर्व है जो विभिन्न प्रांतों में विभिन्न तरीकों से मनाया जाता है और इस श्रावण सुदी पूर्णिमा से जुड़ी अनेक कथाएँ भी है जो देश की एकता का प्रतीक है।
उक्त उद्गार समता शिरोमणी, अध्यात्म योगी, ज्ञान रत्ïनाकर आचार्य 108 श्री सुकुमाल नंदी महाराज ने आदिनाथ भवन में हजारों की संख्या में उपस्थित जनसमूह के समक्ष कहीं।
उन्होंने कहा कि रक्षाबंधन महोत्सव मनाने एवं पूज्य आचार्य श्री की पिच्छी में राखी बांधने के लिए जन सैलाब उमड़ पड़ा। इस दौरान सर्व प्रथम श्री जी का अभिषेक-शांतिधारा की गई। अनेक मुनियों, अकम्पनाचार्य व विष्णुकुमार मुृनि की पूजा करने के बाद अर्पित किए गए 700 श्रीफलों से तो एक पहाड़ ही बन गया। तदुपरान्त आचार्य श्री की पिच्छि में स्वर्ण राखी बांधी गई। उसके बाद सभी श्रावकों ने राखी बांधकर रक्षाबंधन पर्व मनाया।
मंदिर के पास बनें सम्मेद शिखर पर्वत पर 11 किलो का निर्वाण लाडू श्रेयांस नाथ भगवान की टोंक पर चढ़ाया गया। सबसे अंत में खीर की परसादी सभी गरीबों को वितरित की गई, रात्रि में रक्षाबंधन की नाटिका पाश्र्वनाथ युवा मंच द्वारा की गई। इस तरह आचार्य श्री सुकुमालनंदी के सान्ïिनध्य में सामुहिक रक्षाबंधन पर्व मनाया।