udaipur. भगवान की जय-जयकार का गूंजायमान करने मात्र से ही हम सच्चे भक्त नहीं बन सकते। उसके लिए भगवान ने जो कहा है हमें उसका अनुसरण करना पड़ेगा। उनके गुणों को अंगीकार करना पड़ेगा,तभी हम सच्चे भक्त बन सकते हैं।
उक्त विचार आचार्य सुकुमालनन्दी महाराज ने सेक्टर 11 स्थित आदिनाथ भवन में आयोजित चातुर्मासिक प्रवचन में व्यक्त किये। उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण के विराट व्यक्तित्व के बारे में बताते हुए कहा कि पूर्णावतार थे श्रीकृष्ण। भगवान श्रीकृष्ण दुर्जनों के लिए वज्र की तरह कठोर थे, सज्जनों के लिए पुष्प की तरह कोमल थे। उन्होंने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व में विचारशीलता, विनम्रता और व्यवहार कुशलता का समन्वय है। उनका व्यक्तित्व आज भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना कि 5000 वर्ष पहले था। श्रीमद्भागवत में लिखी हुई बातें इतनी सारगर्भित, प्रेरणास्पद है कि उन्हें महात्मा गांधी व वैज्ञानिक आइन्स्टीन ने भी स्वीकार किया। हमें उनके गुणों को अंगीकार करने का पुरूषार्थ करना चाहिये तो ही हम उनके भक्त कहला सकते हैं। जन्माष्टमी के अवसर पर विशेष मंगलाचरण सुकुमाल बाल मण्डल द्वारा प्रस्तुत किया गया। दिनभर कई भक्तों का आदिनाथ भवन में तांता लगा रहा। पाद प्रक्षालन कैंकड़ी से आये सुशील पाटनी परिवार ने किया।
अहमदाबाद, बैंगलोर, पांडिचेरी, कैंकड़ी, अजमेर, जयपुर, भीलवाड़ा, सलूम्बर, निवाई, दिल्ली, बांसवाड़ा, संतरामपुर, मुम्बई, सूरत, जोधपुर से अनेक अतिथिगण शुक्रवार की धर्मसभा में उपस्थित हुए। धर्मसभा में भगवान श्री कृष्ण के बाल रूप की कई झांकियां भी प्रस्तुत की गई।