udaipur. जमीन सिर्फ एक है, रहने के तरीके अलग- अलग हैं। पानी की धार एक है, लेकिन उसके बहने के तरीके अलग-अलग है। दर्द सिर्फ एक है लेकिन उसे सहन करने के तरीके अलग- अलग हैं और बात भी सिर्फ एक है लेकिन उसके कहने के तरीके अलग-अलग हैं।
उक्त मार्मिक उद्गार आचार्य सुकुमालनन्दी महाराज ने समता दिवस के उपलक्ष में आयोजित टाऊन हॉल प्रांगण में विशाल धर्मसभा में व्यक्त किये। आचार्यश्री ने कहा कि मनुष्य को हमेशा आत्म चिन्तन करना चाहिये क्योंकि आत्मा ही परमात्मा है। हर व्यक्ति को धार्मिक कार्य और अनुष्ठान करते रहना चाहिये और इनसे प्रेरणा लेनी चाहिये।
आचार्य ने कहा कि हमें अपन दृष्टि बदलने की जरूरत है क्योंकि जैसी दृष्टि होगी नजर भी वेसा ही आएगा। आचार्य ने इस विचार को दृष्टान्त को यूं समझाया कि एक गुरू ने शिष्य से पूछा कि तुम्हें संसार कैसा लगता है, शिष्य ने कहा, गुरूजी संसार अन्धकारमयी है। इसमें एक दिन प्रकाश रहता है और अन्धकार की पूरी दो रातें रहती हैं। गुरूजी ने दूसरे शिष्य से पूछा- तुम बताओ तुम्हें संसार कैसा लगता है- उसने कहा गुरूजी संसार प्रकाशमयी है। चारों और प्रकाश ही प्रकाश नजर आता है। संसार में पूरे दो दिन प्रकाश रहता है और एक रात अन्धकार मयी रहती है। आचार्य ने कहा कि जो जैसी दृष्टि रखता है उसे वैसा ही दिखता है। उसी तरह जब श्रीराम, माता सीता और भक्त हनुमान एक साथ बैठे थे तो सीता माता ने कहा- मुझे अशोक वाटिका में सारे फूल सफेद ही नजर आ रहे थे। इतने में हनुमानजी ने कहा- वाटिका में एक भी फूल सफेद नहीं सारे लाल थे। दोनों की बातों का समाधान श्रीराम ने यह कह कर किया कि आप दोनों की दृष्टि में फर्क था इसलिए दोनों को फूलों के रंग अलग- अलग दिखाई दे रहे थे। आचार्यश्री ने कहा कि संसार सागर है, संसार जंगल है जिस रंग का चश्मा आप लगाएंगे उसी रंग का आपको नजर भी आएगा। किसी को संसार सुखमय लगता है तो किसी को दुखमय, किसी को अंधकारमय लगता है तो किसी को प्रकाशमय, किसी को संस्कारमयी लगता है तो किसी को कुसंस्कारमय लगता है। आचार्यश्री ने कहा कि संसार सुखमयी और प्रकाशमयी तभी लगेगा जब इंसान संकीर्ण विचारों का त्याग करेगा और अपनी दृष्टि को बदलेगा।
उदयपुर वाकई में है धर्म नगरी
आचार्यश्री ने टाउन हॉल में आयोजित धर्मसभा में कहा कि आज कोई छुट्टी का दिन भी नहीं है, बारीश का मौसम है, सभी तरह से अनुकूलताएं भी नहीं होने के बावजूद हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं का एकत्रित होना इस बात का गवाह है कि उदयपुर वाकई में धार्मिक नगरी है। लोग कहते हैं कि आज इंसान धर्म मार्ग से भटक रहा है, पापा चार बढ़ रहा है, लेकिन आज की स्थिति देखते हुए तो उन्हें लगता है कि इन सब बातों का उदयपुर नगर में कोई असर नहीं है और यहां पर तो धर्म की गंगा बहती है और लोग सभी धार्मिक हैं।
समता दिवस का शुभारम्भ मंगलाचरण और दीप प्रज्वलन के साथ हुआ। इस दौरान विभिन्न मंगलक्रियाएं सम्पन्न हुई। समारोह में भंवरलाल मुण्डलिया, बसन्तीलाल थाया, प्रमोद चौधरी, रतनलाल बेड़ा आदि ने विशेष सहयोग प्रदान किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. मोहन नागदा ने किया। आचार्यश्री का पाद प्रक्षलन प्रमोद चौधरी और उनके परिवार द्वारा किया गया।
34वां समता दिवस और 34 झांकियां
इससे पूर्व सेक्टर 11 स्थित आदिनाथ भवन से समता दिवस के उपलक्ष में भव्य शोभा यात्रा निकली जो टाऊन हॉल में बने विशाल पाण्डाल में खत्म हुई। शोभा यात्रा में 34वें समता दिवस के उपलक्ष में 34 विभिन्न झांकियों को शामिल किया गया जिनमें प्रमुख रूप से माता के 16 सपने, भगवान नेमीनाथ की बारात, सर्प का भगवान को डसना, सर्वधर्म समभाव और महाराणा प्रताप का युद्ध में जाना, ऊंट गाड़ी में जन्मोत्सव की आकर्षक झांकी वाला पालना, समवत्सरण की झांकी, गुरू से आचार्य पद की दीक्षा लेते हुए, जंगल में तपस्या वाली झांकी, बेटी बचाओ की झांकियों सहित 34 झांकियां आकर्षण का केन्द्र थीं।
हजारों श्रद्धालु चले 4 किलोमीटर
शोभा यात्रा सेक्टर 11 से चलती हुई 4 किलोमीटर का सफर तय करते हुए टाउन हॉल पहुंची। पूरी शोभा यात्रा मार्ग में जगह- जगह स्वागत द्वारा बनाये गये थे। कई जगह पर आचार्यश्री का स्वागत किया गया। बैण्डबाजे, ट्रेक्टर और ऊंट गाडिय़ों में सजी झांकियां ऐसा अहसास करा रही हो मानो स्वयं भगवान ही धरती पर उतर आये हों। शोभा यात्रा में कई श्रद्धालु धार्मिक भजनों पर नृत्य कर रह थे। विभिन्न महिला मण्डलों की महिलाएं विशेष परिधानों में सज-धज कर शोभा यात्रा की शोभा बढ़ाती चल रही थी। शोभा यात्रा में 5 सफेद घोड़े भी शामिल थे।