udaipur. जिसके भीतर वात्सल्य, सरलता वनम्रता है वह महान है। आपस में सौहाद्र्र व अनुराग रखना चाहिये। झुकता वही है जिसमें जान हैं। वरना अकडऩा तो मुर्दों की पहचान हैं। उक्त विचार आचार्य सुकुमालनन्दी ने सेक्टर 11 स्थित आदिनाथ भवन में आयोजित प्रात:कालीन धर्मसभा में व्यक्त किये।
आचार्यश्री ने कहा कि हमें सदैव जीभ की तरह नम्र रहना चाहिये दांत के समान कठोर नहीं। साधुओं को भी आपस में सौहार्द्र व वात्सल्य भाव रखने चाहिये क्योंकि जब तक सभी सम्प्रदाय व जाति व धर्म के संतगण एक मंच पर नहीं आएंगे तब तक विश्व में शान्ति की स्थापना करना मुश्किल है।
सभी आचार्यों से वात्सल्य मिलन: इससे पूर्व आचार्य सुकुमालनन्दी समता दिवस समारोह के बाद शुक्रवार प्रात: 5 बजे टाऊल हॉल प्रांगण से शोभा यात्रा के रूप में रवाना हुए उदयपुर में चातुर्मास कर रहे अन्य आचार्यों से भेंट की। आचार्यश्री तेलीवाड़ा स्थित हुमड़ भवन पहुंचे जहां अभिनन्दन सागर, विपुल सागर के साथ ही रवि सागर, अनुभव सागर आदि साधुओं से वात्सल्य मिलन किया और सभी की कुशलक्षेम पूछी।
सभी मन्दिरों में भी किये दर्शन:- इसी दौरान आचार्यश्री ने मण्डी की नाल स्थित सरावगी मंदिर, खण्डेलवाल मंदिर व अन्य मंदिरों में जाकर भी प्रभु के दर्शन किये। इसके पश्चात शोभा यात्रा के साथ आदिनाथ भवन पहुंचे।