udaipur. आज के युग में भौतिकता की चकाचौंध बढ़ गई है। अध्यात्म की पहचान दिनों-दिन घटती जा रही है। फिर भी इस देश में शिक्षा व शिक्षक का महत्व कम नहीं हुआ है। शिक्षक का स्थान सर्वोपरी है।
ये विचार आचार्य सुकुमालनन्दी ने सेक्टर 11 स्थित आदिनाथ भवन में आयोजित धर्मसभा में शिक्षक दिवस के उपलक्ष में व्यक्त किये। आचार्यश्री ने कहा कि गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागू पायं, बलिहारी गुरू आपने, गोविन्द दियो बताय। अर्थात गुरू का स्थान भगवान से भी बढ़ कर है। इसका कारण यह है कि भगवान को प्राप्त करने का मार्ग गुरू द्वारा ही प्राप्त होता है।
आचार्यश्री ने कहा कि एक लौकिक शिक्षक होता है और एक परलौकिक, लेकिन दोनों का अपना- अपना महत्व होता है। शिक्षक को भी चाहिये कि वो अपनी शिक्षण प्रणाली से सबको इतना प्रभावित करे कि लोगों की शिक्षा व शिक्षण प्रणाली के प्रति नकारात्मक भावनाएं हट जाएं। शिक्षक इस जगत को प्रकाशित करने वाले वो दीपक हैं जो खुद जल कर दूसरों को प्रकाशित करते हैं। शिक्षक ज्ञान के दुकानदार नहीं, ज्ञान के दीपक होते हैं। शिक्षक देश के सिरमोर होते हैं। ज्ञान जैसी अनमोल वस्तु को प्रदान करने वाले शिक्षक का सम्मान करना प्रत्येक देशवासी का कर्तव्य है। आचार्यश्री ने कहा कि जिस देश में शिक्षा व शिक्षकों का सम्मान नहीं होता है वह देश अज्ञान रूपी गर्त में डूब जाता है।