भूमि दोहन पर नियंत्रण नहीं तो भविष्य अंधकार में : माथुर
विधि निर्माण में अधिवक्तांओं की भूमिका अहम्
अधिवक्ता परिषद की बैठक में कहा वक्ताओं ने
udaipur. पूर्व केन्द्रीय मंत्री जगदीप धनकड़ ने विधि निर्माण में अधिवक्ताओं की भूमिका को आवश्यक बताया वहीं राजस्थान उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता आर. एन. माथुर ने भू संरक्षण को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि अगर भूमि दोहन पर नियंत्रण नहीं हुआ तो भविष्य् अंधकारमय होगा। ये यहां काया स्थित राजेन्द्र शांति विहार में अधिवक्ता परिषद के दो दिवसीय अधिवेशन के उदघाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे।
धनकड़ ने कहा कि देश में वर्षों से समान आचार संहिता की मांग की जा रही है जिसकी अत्यन्त आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि जहां पूर्व से ही कानून के निर्माण हेतु संसद, विधान सभाएं हैं, अध्यादेश भी इसका एक माध्यम है तो नेशनल एडवाईजरी कमेटी जैसी संस्थाओं की क्यों आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि ऐसी संस्थाओं में विधिवेत्ताओं को नहीं लिया गया और विधि के अज्ञानी कानून बना रहे हैं। सरकारी तंत्रों का पूर्ण दुरुपयोग किया जा रहा है।
समारोह में भू संरक्षण-चुनौतियां और समाधान विषय पर राजस्थान उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता आर. एन. माथुर ने चिन्ता जताई कि यदि जिस गति से भूमि दोहन किया जा रहा है, अगर इस पर नियंत्रण नहीं हुआ तो भविष्य अंधकारमय होगा। माथुर ने कहा कि पृथ्वी पर भूमि का सीमांकन सीमित है। रामचरित मानस में भी कहा गया है कि राजा का प्रथम कर्तव्य पृथ्वी की रक्षा करना है। उन्होंबने कहा कि भूमि संरक्षण के लिये सर्वप्रथम कानून में बदलाव लाना आवश्यक है और कृषि योग्य भूमि के अधिग्रहण पर रोक लगाने हेतु ठोस कानून की आवश्यकता है। उन्होनें कहा कि भूमि संरक्षण के लिये यह भी आवश्यक है कि भूमि की उर्वरक क्षमता को बढा़या जाए। श्री माथुर ने कहा कि प्रदुषण मंडल जैसे विभाग में वैज्ञानिकों को लगाना चाहिये ताकि वास्तविक प्रदूषण का पता लगाया जा सके और तदनुसार कार्यवाही की जा सके। माथुर ने कहा कि एक नदी या नाले को समाप्त करना हजारों लोगों को मारने के समान है, किंतु इस देश में ऐसा कोई आपराधिक कानून नहीं है जिससे नदी, नालों में अवरोध पैदा करने वाले वाले लोगों को सजा दिलाई जा सके।
अपनाएं बहुमंजिली इमारतों को
उन्होंने कहा कि चूंकि भूमि सीमित है। ऐसे में व्यक्ति को भवन का मोह छोड़कर बहुमंजिली इमारतों में निवास प्रथा को अपनाना चाहिये साथ ही बिल्डर के लिये यह नियम होना चाहिये कि जितनी भूमि पर भवन का निर्माण करे उतनी ही भूमि पर वृक्षारोपण करें। उन्होंने अनियंत्रित और गैर जिम्मेदाराना खनन से बचाव का उपाय देते हुए कहा कि खनन केवल स्थानीय रूप में कार्य में लिया जाना चाहिये ताकि प्रकृति का संतुलन नहीं बिगडे़। उन्होंने उद्बोधन में वन संरक्षण पर भी जोर दिया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए पूर्व विधानसभा अध्यक्ष शांतिलाल चपलोत ने कहा कि देश हर क्षेत्र में द्रुत गति से गिरावट की ओर है जिसे बचाने की जिम्मेदारी अब अधिवक्ताओं की है। उन्होंने कहा कि अब वह समय आ गया है कि अधिवक्ता अपने स्वयं के हित को छोड कर जनहितार्थ मुद्दों को कानून के जरिये निपटाने में आमजन का सहयोग करे। चपलोत ने संसद, विधानसभाओं में बढ़ते बहिर्गमन पर चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा कि गत कई समय से ऐसी घटनाओं से बिना चर्चा के बिल पास हो जाता है जिसका खामियाजा आमजन को उठाना पड़ता है। अधिवेशन के संयोजक अरूण शर्मा, उदयपुर इकाई के महामंत्री कमलेश दाणी ने भी विचार व्य क्तक किए। कार्यक्रम में अधिवक्ता परिषद् का परिचय प्रदेश महामंत्री बसन्त छाबा ने दिया। धन्यवाद उदयपुर इकाई के अध्यअक्ष राजेन्द्र सिंह राठौड़ ने ज्ञापित किया। संचालन ब्रजेन्द्र सेठ ने किया। उद्घाटन सत्र से पूर्व अधिवक्ता परिषद्, राजस्थान के चुनाव संपन्न हुए जिसमें सर्वसम्मति से जगदीशसिंह राणा को प्रदेश अध्यक्ष और बसन्त सिंह छाबा को महामंत्री चुना गया। चुनाव अधिकारी बार कौंसिल ऑफ राजस्थान के सदस्य डॉ. पुष्पेन्द्रसिंह भाटी थे।