खूब जमा रंग, देर तक बैठे रहे श्रोता
udaipur. गुलाबी ठंड के अहसास के साथ जब युवाओं और रोमांस के कवि डॉ. कुमार विश्वास ने अपनी चिर परिचित कविताएं सुनानी शुरू कीं तो अर्द्धरात्रि के बाद समय करीब डेढ़ बज चुका था लेकिन पूरे माहौल को देख कहीं लग नहीं रहा था कि इतना समय हो गया है।
मेहमानों के स्वागत सत्कार के बाद करीब 9.30 बजे शुरू हुआ कवि सम्मेलन रात 2.30 बजे समाप्तो हुआ। काफी इंतजार के बाद आए डॉ. कुमार विश्वास ने अपनी चिर परिचित कविताओं कोई दीवाना… के अलावा कई नई श्रृंगार की कविताएं भी सुनाई। हालांकि श्रोता उन्हें देर तक सुनना चाहते थे लेकिन उन्होंअने स्वरयं ही कवि सम्मेलन का समापन कर दिया। उनसे पहले वीर रस के वेदव्रत वाजपेयी ने शहीदों और देश पर मर मिटने वालों की याद में वीर रस की उम्दा कविताएं सुनाई और खूब तालियां पिटवाईं।
लखनऊ के वेदव्रत वाजपेयी ने घोषणा की कि अगर यहां भी कोई शहीद या उसकी विधवा किसी तरह की मदद चाहते हैं तो वे अपने पिता के नाम से चलाए जा रहे ट्रस्टध से हरसंभव मदद का प्रयास करेंगे। इस बारे में उनसे सीधे संपर्क किया जा सकता है।
शुरुआत कांकरोली के संपत सुरीला ने पैराडियों से की। इस बीच कुमार विश्वािस पहुंचे और मंच संचालन संभाला। हालांकि डॉ. विश्वाास ने इनकार किया कि आज संचालन जैसा कुछ भी नहीं है। फिर भीलवाड़ा के ओम तिवाड़ी ने अपनी छोटी छोटी फुलझडि़यों से हास्यल से सराबोर किया। भीलवाड़ा के ही हास्या कवि दीपक पारीक ने अपनी हास्यु व्यं ग्यिकाओं से खूब हंसाया। भीलवाड़ा से हास्य के कवि दीपक पारिक ने अपनी कविताओं से जनता को गुदगुदाया। उन्होंने मंच पर आकर ‘चोर ने कहा मैं हुं इसलिए पचास रूपए में जा रहा हूं, वरना सारी दुनिया जानती है, पुलिस आ जाने के बाद हजार पंद्रह सौ से कम में नही मानती है…’, ‘जीने का आधार गजल है, डूबो तो मझधार गजल है, शब्द शब्द में घोटाले हैं, लगता है सरकार गजल है…’सुनाकर लोटपोट किया। इनके बाद जयपुर से आए वीर रस के अशोक चारण ने देशभक्ति गीतों से देशभक्ति का ज्वालर मानो हिलोरे लेने लगा। उन्होंने ‘सरहद पर सैनिक की सांसे वंदे मातरम बांच रही, दिल्ली अमेरिका के आगे मुन्नी बनकर नाच रही, ये रामायण और कुरान में जंग कराने निकले हैं, मंत्री बनकर भंवर के संग इश्क लडाने निकले हैं…‘, भोपाल से आई शृंगार की कवियत्री संगीता सरल ने ‘मां की दुआएं जब से महरबान हो गई, सारे जमाने भर में मेरी शान हो गई…’ ‘मेरा दिल ले गया थानेदार, भीलवाड़ा (शकरगढ़) से आए हास्य कवि राजकुमार बादल ने ‘ज्याने ज्याने पट्टा मिलग्या स्याल्या बणग्या नार, भूखां मरे बाहरू खिल्लया के दूधा की धार, हाथी ने खरगोश खा गया उन्दर खा गया ऊंट, हीरण रीछ का बाल कूतरगय्या माची लूटमलूट, गण्डका की भसवाड गाया नीलाम हेारी है, सब जाणे है मुन्नी क्यों बदनाम हो री है…’, ‘बाजण लाग्या मंगलया ढोल अब क्यों माथा फोडे है नेणां सू मत •र नोबाल दुनिया मूण्डा जोडे है, लेग स्टम्प पर आती जाती मिडल स्टम्प क्यो तोडे़ है… सुनाकर श्रोताओं को खूब हंसाया। फालना से आई शृंगार की कवियत्री कविता किरण ने ‘तुम्हारे हो के भी हम तो तुम्हारे हो नहीं पाए, तुम्हारे बाजुओं में सर छुपा•े रो नहीं पाए, उड़ाई इस •दर नींदे जमाने की जफाओं ने, उधर तुम सो नहीं पाए, इधर हम सो नहीं पाए…’, ‘जब फूलों में हो जाता है डाली के प्रति आदर कम, गुलशन की आंखों में खटके जब जब पतझड के मौसम, तब खुलते हैं गांव गली और नगर नगर में वृद्धाश्रम…’ उदयपुर के राव अजात शत्रु ने कुर्सिया रूठे रूठे तो बोझ हम ढोते नहीं है हम कवि है हम किसी के पालतु तोते नहीं है…’, ‘गठबंधन की राजनीति है, ठंग बंधन की राजनीति है, तेल कहीं का दीया कहीं की बाती है ऐसे कोई जोत जाती है सुनाया। उदयपुर के प्रकाश नागौरी ने ‘इस समय बाजार में दो के भाव बढ़े, एक जमीन के दूसरा कमीनों के और दो के भाव घटे हैं एक हसीनों के दूसरा पसीनों के…’, ‘उस स्कीम में इनवेस्ट ही क्यों करू जिसका रिफण्ड ही न हो, उस जुर्म को करने से क्यु डरूं जिसका दण्ड ही न हो, उस बीमार बाप के नखरे भी कौन उठाये यार, जिसके किसी खाते में कोई फण्ड ही न हो. सुनाकर श्रोताओं को सोचने पर मजबूर कर दिया।