शिल्पग्राम उत्सव—2012
खरीददारी और लोक कलाओं में रमें कला प्रेमी
जुम्मे खां ने रंगत बिखेरी, सीमा कालबेलिया ने रिझाया
Udaipur. पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र की ओर से आयोजित ‘‘शिल्पग्राम उत्सव—2012’के नवें दिन शिल्पग्राम में लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी तथा लोगों ने हाट बाजार में खरीदारी के साथ-साथ लोक कलाकाओं का आनन्द उठाया। रंगमंच पर पाईका, कालबेलिया तथा भपंग वादक ने अपना रंग जमाया।
झंकार में दो दर्जन लोक वाद्यों ने अपनी गूंज से अरावली की उपत्यकाओं को गुजायमान कर दिया। दस दिवसीय उत्सव का समापन रविवार को होगा। लोक कला एवं शिल्प परंपरा के प्रोत्साहन के ध्येय से आयोजित दस दिवसीय शिल्पग्राम उत्सव के समापन के पूर्व दिवस पर शिल्पग्राम में लागों की भीड़ इकट्ठी हो गई तथा लोगों नेे हाट बाजार में जम कर खरीददारी की। शनिवार को दोपहर से ही बड़ी संख्या में लोगों का शिल्पग्राम में आगमन प्रारम्भ हो गया जो शाम तक चलता रहा। शाम को समूचे हाट बाजार में लोगों के झुण्ड व हुजूम देखा गया। हाट बाजार में लागों ने वस्त्र संसार, अलंकरण, धातुधाम, काष्ठ शिल्प, विविधा, दर्पण बाजार में जम कर खरीददारी की। उत्सव में आन वाले ज्यादातर लोगों में सैण्ड आर्ट के प्रति रूणन देखा गया तथा हर कोई रेत के बने कला नमूनों को निहारने के साथ उसकी तस्वीर अपने कैमरे, मोबाइल में कैद करते नजर आये। हाट बाजार में ही लोक कला प्रस्तुतियों ने लोगों का मनोरंजन किया वहीं लागों ने खान—पान की चीजों का रसास्वादन किया। मेले में ही बहुरूपिया कलाकारों ने लोगों का मनोरंजन किया। शाम ढलते ही लोगों की भीड़ ‘‘कलांगन’’ की दर्शक दीर्घा में जमा होनी प्रारम्भ हो गई।
रंगमंच पर झंकार के अंतर्गत कार्यक्रम की शुरूआत आंध्रप्रदेश के लम्बाड़ी से हुई दसके बाद गोवा के कलाकारों ने समई नृत्य पेश किया जिसमें नर्तकियों ने सिर पर दीप स्तम्भ धारण कर संतुलन के साथ विभिन्न मुद्राएँ संरचित की। हास्यमेल में मुंबई के श्रीकांत साठे ने कारगिल युद्ध को अपने मुख से मंच पर साकार किया।
झंकार’ में लोगों को विभिन्न राज्यों के लोक वाद्य यंत्रों को देखने का अवसर मिला। कार्यक्रम अधिकारी तनेराज सिंह सोढ़ द्वारा रचित फोक सिम्फनी में खड़ताल, मोरचंग, कमायचा, मुरली, रावणहत्था, भपंग, शंख, ढोला, ढोल, मुगरवान, मसींडो, पुंग, ढोल, शहनाई आदि वाद्य लोक यंत्रों से अलंकृत सिम्फनी की शुरूआत पहले धीमी गति से तथा बाद में शनै: शनै: उसकी गति बढ़ गई। आखिर में तीव्र लय पर एक साथ वाद्य यंत्रों की धमचक ने दर्शकोंं को भाव विभोर कर दिया।
इससे पूर्व जुम्मे खां मेवाती ने अपने चिरपरिचित अंदाज में गीत ‘‘ बिन बाट तराजू ले के केाई कमी नहीं प्यार में सुनाया। इसके बाद जुम्मे खां ने जैसे ही अपना लोकप्रिय गीत ‘‘टर्र’’ सुनाया तो दर्शक झूम उठे। कार्यक्रम में इसके अलावा किन्नोरी नाटी, ढोल चोलम की प्रस्तुतियों को सराहा गया वहीं सीमा कालबेलिया ने अपनी दैहिक लोच तथा करिश्माई नृत्य से समां बांध दिया। झंकार में ही सिदिगोमा कलाकारों की प्रस्तुति को दर्शकों द्वारा पसंद किया गया। कार्यक्रम का संयोजन विलास जानवे तथा हिमानी दीक्षित द्वारा किया गया। दस दिवसीय उत्सव का समापन रविवार को होगा। इस अवसर पर विशेष सांस्कृतिक सध्या ‘‘माटी के रंग’ का आयोजन किया जायेगा।