राजस्थानी भाषा दिवस पर कार्यक्रम
Udaipur. अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर शहर में भी विविध आयोजन हुए। राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने को लेकर भी कार्यक्रम हुए। सुविवि के कला महाविद्यालय में राजस्थानी विभाग में राजस्थानी भाषा पर विस्तृत चर्चा हुई वहीं मोहनसिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट की ओर से भी संवाद का आयोजन हुआ।
डॉ. मोहनसिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस विषयक संवाद में राजस्थान मोट्यार परिषद के प्रदेशाध्यक्ष शिवदानसिंह जोलावास ने कहा कि पिछले 10 वर्षों में कैलेण्डर के पन्ने बदलते गए किन्तु सरकार की उदासीनता से इस बड़े प्रदेश की आत्मा अपनी मायड़ भाषा और उसका गौरव प्राप्त करने से वंचित रही है। यह नेतृत्व क्षमता की असफलता नहीं है वरन् आम आदमी के मानवीय मूल्यों पर तुषारापात है। उन्हों ने कहा कि मातृभाषा आदमी के संस्कारों की संवाहक है। यह दुखद है कि राजस्थानी भाषा को मान्यता नहीं मिलने से आज भी इस वीर प्रसूता धरती पर माताएं, शहीदों की विधवाएं यहां की माटी से दूर देश के औद्योगिक विकास व प्रगति में योगदान करने वाले प्रवासी राजस्थानी और राजस्थान गौरवशाली इतिहास को लेखन व सृजन से दुनिया के समक्ष राजस्थानी रखने वाले वरिष्ठ साहित्यकार कन्हैयालाल सेठिया, रानी लक्ष्मी कुमारी चुण्डावत की आत्मा उन्हें आज के दिन कचोटती व दुख देती होगी।
गांधीवादी सुशील दशोरा ने राजस्थानी भाषा की मान्यता की जरूरत बताते हुए कहा कि ‘धन खोयो, खोयो धरम, खोई कुल री लाज परभाषा परनार रो, चूम चूम मुख आज’ भाषा और भूषा दोनों ही संस्कृति के वाहक हैं। इन्हें संजोने की महती आवश्यकता है। विद्याभवन पॉलीटेक्निक कॉलेज के प्राचार्य अनिल मेहता ने कहा कि मातृ भाषा बालक की अपनी मेधा को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं। मातृ भाषा के बिना, अपने देश की संस्कृति की कल्पना बेमानी है। चांदपोल नागरिक समिति के अध्यक्ष तेजशंकर पालीवाल ने बतलाया कि हमारी मातृभाषा हमें राष्ट्रीयता से जोड़ती हैं और देश प्रेम की भावना उत्प्रेरित करती हैं। मातृभाषा आत्मा की आवाज हैं तथा देश को माला की लडिय़ों की तरह पिरोती है।
ट्रस्ट सचिव नन्दकिशोर शर्मा ने कहा कि मां के आंचल में पल्लावित हुई भाषा बालक के मानसिक विकास को शब्द व पहला सम्पे्रषण देती हैं। मातृ भाषा ही सबसे पहले इंसान को सोचने-समझने और व्यवहार की अनौपचारिक शिक्षा और समझ देती हैं। मातृभाषा का सम्मान जिन प्रदेशों, देश ने किया है वे साहित्य, समाज व आर्थिक रूप से सम्पन्न, संगठित रहें है। बालक की प्राथमिक शिक्षा मातृ भाषा में ही करानी चाहिए। संवाद का संयोजन करते हुए ट्रस्ट के नितेश सिंह कच्छावा ने अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर प्रकाश डालते हुए मातृभाषा के संरक्षण और उसके साहित्य को आमजन तक पहुंचाने की महती जरूरत बतलाई।
सुविवि में हुए कार्यक्रम में राजस्थानी विभाग के प्रभारी डॉ. सुरेश सालवी ने राजस्थानी लोककला एवं उनके महत्त्व पर प्रकाश डाला। पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. लक्ष्मणसिंह राव ने राजस्थानी की प्राचीन विधाओं पर चर्चा करते हुए इनका साहित्यिक योगदान उजागर किया। डॉ. लोकेश राठौड़ ने आधुनिक गद्य साहित्य की विभिन्न विधाओं के विकास के बारे में जानकारी दी। डॉ. नीता कोठारी ने लोकजीवन में राजस्थानी के सांस्कृतिक एवं साहित्यिक स्वरूप की महती भूमिका को प्रतिपादित किया। शोध छात्र महिपाल गरासिया ने वागड़ी संस्कृति और वागड़ के लोक साहित्य पर प्रकाश डाला।